वित्त मंत्रालय ने बजट से पहले पेश किए गए वार्षिक आर्थिक सर्वेक्षण में कहा कि बार-बार लगाए गए लॉकडाउन ने शिक्षा के क्षेत्र को काफ़ी प्रभावित किया है और इसके वास्तविक प्रभाव को आंकना मुश्किल है, क्योंकि इस बारे में उपलब्ध व्यापक आधिकारिक आंकड़े 2019-20 से पहले के हैं.
नई दिल्लीः बजट से एक दिन पहले सोमवार को लोकसभा में पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण में केंद्र सरकार ने शिक्षा पर कोविड-19 के प्रभाव के संबंध में सरकारी आंकड़ों में कमी को स्वीकार किया, विशेष रूप से देश के उन 25 करोड़ स्कूली बच्चों के संबंध में, जो लगभग दो सालों से स्कूल नहीं जा पाए हैं.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त मंत्रालय ने वार्षिक सर्वेक्षण में कहा, बार-बार लगाए गए लॉकडाउन का शिक्षा क्षेत्र पर काफी प्रभाव पड़ा है और इसके वास्तविक प्रभाव को आंकना मुश्किल है क्योंकि इसके लिए उपलब्ध व्यापक आधिकारिक आंकड़े 2019-2020 से पहले के हैं. इन आंकड़ों से कोरोना पूर्व के रुझान का पता चलता है लेकिन यह नहीं पता चलता कि कोरोना की वजह से लगाए गए प्रतिबंधों का इस रुझान पर क्या असर पड़ा.
बता दें कि कोरोना की वजह से देशभर में एहतियात के तौर पर स्कूल, कॉलेज और शैक्षणिक संस्थानों को बंद कर दिया गया था.
गैर सरकारी संगठन ‘प्रथम’ द्वारा किए गए शिक्षा की स्थिति पर वार्षिक रिपोर्ट (एएसईआर) जैसे गैर सरकारी सर्वे आकंड़ों का उल्लेख किया गया है, जिससे पता चला है कि लॉकडाउन के दौरान छात्रों की स्कूलों में भर्ती और उनके सीखने की क्षमता प्रभावित हुई है.
एएसईआर 2021 की रिपोर्ट में बताया गया कि स्कूलों में दाखिला नहीं लेने वाले छह से 14 साल की आयुवर्ग के बच्चों की संख्या 2018 में 2.5 फीसदी की तुलना में 2021 में दोगुनी होकर 4.6 फीसदी हो गई.
इस सर्वे में यह भी पता चला कि लॉकडाउन की वजह से माता-पिता के वित्तीय संकट की वजह से बच्चों का निजी स्कूलों के बजाय सरकारी स्कूलों में दाखिला कराया गया और कई परिवार गांव लौटने को मजबूर हुए.
10 में से लगभग छह ग्रामीण बच्चों को महामारी के दौरान किसी तरह की शिक्षण सामग्री नहीं मिली या वे किसी तरह की गतिविधियों में शामिल नहीं हो पाए.
एएसईआर की रिपोर्ट में कहा गया कि डिजिटल विभाजन ने शिक्षा तक पहुंच की असमानता को बढ़ा दिया.
रिपोर्ट में कहा गया कि स्मार्टफोन नहीं होने और इंटरनेट कनेक्टिविटी से जुड़े मुद्दों की वजह से बड़ी संख्या में ग्रामीण बच्चे ऑनलाइन शिक्षा से महरूम रहे. 10 में से लगभग छह ग्रामीण बच्चों को महामारी के दौरान किसी तरह की शिक्षण सामग्री नहीं मिली या वे किसी तरह की गतिविधियों में शामिल नहीं हो पाए.
सर्वेक्षण में कहा गया कि इन आकंड़ों की पुष्टि के लिए कोई सरकारी आंकड़ा उपलब्ध नहीं है.