शिक्षाविद और नीति-निर्माता उम्मीद कर रहे थे कि शिक्षा के क्षेत्र में सरकार कुछ अहम क़दम उठाएगी क्योंकि लाखों छात्रों ने कोरोना महामारी के चलते अपनी शिक्षा के अहम वर्षों का नुकसान उठाया है, हालांकि बजट से उन सभी को निराशा हुई है.
नई दिल्ली: पिछले कुछ सालों से शिक्षा मंत्रालय का बजट आवंटन करीब-करीब समान रहा है, उसमें कोई खास बढ़ोतरी नहीं देखी गई है. इसलिए, सुलभता से उपलब्ध गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की जरूरत को गति प्रदान करने के लिए कल्पना और इच्छाशक्ति की कमी, इस ओर इशारा करती है कि केंद्र सरकार इस क्षेत्र में अपनी जिम्मेदारियों को धीरे-धीरे निजी क्षेत्र पर स्थानांतरित करने पर जोर दे रही है.
2022-23 के आम बजट में पिछले बजट से कुछ भी अलग नहीं है, कुल आवंटन 1,04,277.72 करोड़ रुपये है जो उच्च शिक्षा विभाग और स्कूली शिक्षा व साक्षरता विभागों के बीच बंटा हुआ है.
केंद्र सरकार ने शिक्षा मंत्रालय के कुल आवंटन में मामूली वृद्धि की है. पिछले साल 88,000 करोड़ रुपये का आवंटन हुआ था.
बजट में 16,000 करोड़ रुपये की वृद्धि भी इसलिए हुई है क्योंकि महामारी के चलते अनिश्चितकाल तक स्कूल बंद हैं, इसलिए इन हालातों में डिजिटल शिक्षा के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने पर जोर देने की जरूरत है. शिक्षाविद और नीति-निर्माता उम्मीद कर रहे थे कि सरकार कुछ अहम कदम उठाएगी क्योंकि लाखों छात्रों ने महामारी के चलते अपनी शिक्षा के अहम वर्षों का नुकसान उठाया है, बजट से उन सबको निराशा हुई है.
Kudos to FM for recognising loss from 2 years of school closure but really one class one TV, e-content is NOT the answer. Opening schools is the and. Are we so blind to realities on the ground?
— Yamini Aiyar (@AiyarYamini) February 1, 2022
वित्त मंत्री ने महामारी के दौरान हाशिए पर पड़े समुदायों के बच्चों की शिक्षा पर पड़े दुष्प्रभावों के मद्देनजर बजट में घोषणा की कि पीएम ई-विद्या योजना लागू की जाएगी, जिसमें 12 से 200 टीवी चैनलों पर विभिन्न भाषाओं में कार्यक्रम प्रसारित किए जाएंगे.
इसमें ‘एक क्लास-एक टीवी चैनल’ के तहत कक्षा 1 से 12 तक के छात्रों को पूरक शिक्षा उपलब्ध कराई जाएगी, जो महामारी के दौरान पिछड़ी उनकी शिक्षा के लिए पूरक (सप्लीमेंट्री) शिक्षा का काम करेगी. साथ ही, उऩ्होंने घोषणा की कि आगामी वित्तीय वर्ष में विज्ञान और गणित में 750 वर्चुअल लैब और ‘सिम्युलेटेड लर्निंग एनवायरनमेंट’ के लिए 75 स्किलिंग ई-लैब शुरू किए जाएंगे.
साथ ही उन्होंने एक डिजिटल विश्वविद्यालय भी शुरू करने की घोषणा की, जिसे स्थापित करने में देश के सार्वजनिक विश्वविद्यालय मदद करेंगे.
हालांकि, शिक्षाविदों का मानना है कि सरकार को नई परियोजनाओं की घोषणा करने के बजाय मौजूदा स्कूलों और कॉलेजों में सुचारू शिक्षा के हालात बनाए रखने पर जोर देना चाहिए था.
Digital digital digital
It’s been TWO YRS
Why does #India have one of the longest school closures in the world?
Even Uganda opened schools. China of course is way ahead
Why are only our kids falling behind? This is a race to the bottom#BudgetSession2022@PMOIndia @dpradhanbjp pic.twitter.com/wGROwzrKSO— Tanya Aggarwal (@tanya_aggarwal1) February 1, 2022
शिक्षा का अधिकार (आरटीई) फोरम के समन्वयक मित्र रंजन कहते हैं, ‘केंद्रीय बजट न केवल भारत की शिक्षा की जरूरतों को कम करके आंकता है, बल्कि सभी जमीनी हकीकतों को भी नजरअंदाज करता है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘हमें पूछना चाहिए कि क्या उन 80 फीसदी छात्रों को इस बजट से लाभ होगा जिनकी पहुंच डिजिटल शिक्षा के ढांचे तक न के बराबर है या बिल्कुल ही नहीं है. मेरे हिसाब से यह बजट देश को गुमराह करने और शिक्षा के निजीकरण के लिए रास्ता खोलने की एक और कवायद है.’
शिक्षा के क्षेत्र के अधिकांश विशेषज्ञों का भी यही मानना है कि सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति शिक्षा के निजीकरण का सामान्यीकरण करने वाली है और इसने शिक्षा के अधिकार अधिनियम को किनारे कर दिया है.
बता दें कि संसद में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के हालिया बयान के अनुसार, पिछले 11 वर्षों में आरटीई अनुपालन, जब से योजना की शुरुआत हुई है, केवल 25.5 प्रतिशत रहा है.
इसके अलावा, इस समय लगभग 11 लाख शिक्षकों की नियुक्तियां लंबित हैं, इस संबंध में बजट में कोई उल्लेख नहीं है.
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि पीएम पोषण शक्ति निर्माण योजना, जिसे पहले मिड-डे मील योजना कहा जाता था, के बजट आवंटन में पिछले कुछ वर्षों में लगातार गिरावट आई है.
2020-21 में इसके लिए 12,900 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था, 2021-22 मे यह राशि 11,500 करोड़ रह गई और इस बार के बजट में इस मद में राशि 10233.75 करोड़ रुपये रह गई है. यह गरीब बच्चों के बीच प्राथमिक शिक्षा को हतोत्साहित करने का काम करेगा। गौरतलब है कि ऐसा तब हुआ है जब प्रधानमंत्री अपने कई भाषणों में बच्चों में बेहतर पोषण की जरूरत पर जोर दे चुके हैं.
रंजन कहते हैं, ‘डिजिटल शिक्षा पर जोर शिक्षा क्षेत्र में निजी खिलाड़ियों को लाने का एक और तरीका है, यह केवल असमानता को बढ़ावा देगा.’
उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि बजट में अनुसूचित जाति/जनजाति की छात्राओं के बीच शिक्षा को प्रोत्साहन देने संबंधी कोई प्रावधान नहीं है. पिछले साल इस संबंध में सरकार ने बजट में भारी कटौती की थी और 110 करोड़ रुपये से एक करोड़ रुपये पर आ गए थे. इस बार एक करोड़ का भी प्रावधान नहीं किया.
उनके मुताबिक, सरकार ने गरीब और कमजोर समुदायों के छात्रों को शिक्षा प्रदान करने संबंधी अपनी जिम्मेदारी को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया है.
बहरहाल, मोदी सरकार की हालिया राष्ट्रीय शिक्षा नीति और उससे पहले कोठारी आयोग की सिफारिशों को ध्यान में रखकर इस बात पर सहमति बन चुकी है कि शिक्षा का बजट जीडीपी के 6 फीसदी से कम नहीं होना चाहिए, लेकिन पूर्व और वर्तमान की सरकारें यह लक्ष्य हासिल करने में विफल रही हैं.
मोदी सरकार ने तो हर साल शिक्षा बजट में कमी करके इस मामले में सबसे खराब प्रदर्शन किया है. भाजपा शासन के दौरान शिक्षा बजट 3% या उससे कम रहा है.
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