तीन अक्टूबर को विविध भारती की स्थापना के 61 बरस पूरे हो गए. इतने बरस की विविध भारती की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि उसने हमारी ज़िंदगी को सुरीला बनाया है.
किसी भी रेडियो चैनल ने अगर देश में साठ बरस से ज्यादा का सफर तय किया है तो यह प्रसारण इतिहास की एक अहम घटना है. देश के इतिहास का साझीदार बनने के साथ-साथ ऐसा रेडियो चैनल हर कदम पर नई चुनौतियों का सामना भी करता है. इसकी वजह यह है कि आधी सदी से ज्यादा की अपनी सक्रियता के दौरान रेडियो चैनल निश्चित रूप से अपनी संस्कृति गढ़ता है. अपना मुहावरा रचता है और बदलते वक्त, श्रोताओं और जरूरतों के मुताबिक खुद को ढालता है.
आज यानी 3 अक्टूबर को विविध भारती की स्थापना के 60 बरस पूरे हो रहे हैं. विविध भारती की स्थापना ऐसे दौर में की गई थी जब भारत में मनोरंजन का कोई और केंद्र नहीं था और भारतीय जनमानस के मनोरंजन का बीड़ा उठाया था रेडियो सीलोन ने. हमारे पड़ोसी देश श्रीलंका की नियमित रेडियो सेवा के विदेश विभाग ने भारतीय श्रोताओं को पूरी तरह मोहित कर लिया था.
संगीत का यह वह दौर था जब अलग-अलग पीढ़ी के बेहद प्रतिभाशाली संगीतकार, गीतकार और गायक एक साथ सक्रिय थे. सबसे दिलचस्प बात यह है कि आज भी हमारे लिए पुराने गानों का मतलब इसी दौर के गानों से है. यह जिस समय की बात है तब प्रसारण की तकनीक आज की तरह उन्नत नहीं थी.
आज के स्टीरियो एफएम रेडियो स्टेशनों के बजाय तब मीडियम वेव और शॉर्ट वेव पर प्रसारण किया जाता था. प्रसारण के ये माध्यम भले ही उतने स्पष्ट और सहज नहीं थे, फिर भी इनके दीवानों की कमी नहीं थी. रेडियो सीलोन, बीबीसी की हिंदी और उर्दू सेवा या बाद में आए आकाशवाणी के राष्ट्रीय प्रसारण भी इसकी मिसाल हैं.
यह सच है कि रेडियो सीलोन के कार्यक्रम सुनना थोड़ा मुश्किल था. शॉर्ट वेव के प्रसारणों के लिए जाली वाला एंटीना लगाया जाता था और मीडियम वेव भी एरियल के सहारे ही आता था. इस सबके बावजूद प्रसारण काफी उतार-चढ़ाव भरा होता था.
वहीं रेडियो सीलोन का कंटेंट इतना शानदार होता था कि गली-मुहल्लों में लगातार उसकी आवाज सुनाई देती रहती थी. यानी अगर आप अपने शहर में टहलना शुरू करें तो घरों से आती रेडियो सीलोन की आवाजें लगातार आपका पीछा करती रहती थीं.
जब यह दिखाई दिया कि भारतीय कंपनियां अपने उत्पादों की बिक्री बढ़ाने के लिए इस रेडियो-स्टेशन का सहारा ले रही हैं और देश का पैसा बाहर जा रहा है तो भारत सरकार ने विविध भारती की परिकल्पना की.
विविध भारती की स्थाापना की एक और वजह थी. एक जमाने में भारत सरकार ने अनेक कारणों से आकाशवाणी पर फिल्मी गाने बजाने पर प्रतिबंध लगा दिया था. यह समझा जा रहा था कि फिल्मी दुनिया से आ रहे गाने लोगों को बिगाड़ते हैं. इसलिए केवल सुगम-संगीत पर आधारित गीत ही रेडियो पर बजाए जाते थे.
उसी दौर में रेडियो सीलोन ताजा फिल्मी गीतों के जरिये श्रोताओं के बीच पहुंचकर अपने ‘व्यावसायिक-हितों’ को पूरा भी कर रहा था. ऐसे दौर में केशव पांडे, पंडित नरेंद्र शर्मा, गोपालदास और गिरिजा कुमार माथुर जैसी साहित्य और रेडियो प्रसारण की कद्दावर हस्तियों ने विविध भारती की नींव रखी.
विविध भारती को किस मकसद से शुरू किया जा रहा था, इसका जवाब बस इस एक वाक्य से ही मिल जाता है-यह आकाशवाणी की ‘अखिल भारतीय मनोरंजन सेवा’ थी. वहीं आकाशवाणी के पंचरंगी कार्यक्रम का अर्थ यह था कि इसमें पांचों ललित कलाओं का समावेश होना था.
अक्सर लोगों के मन में यह सवाल आता है कि विविध भारती पर पहला एनाउंसमेंट किसने किया होगा? आपको बता दें कि 3 अक्टूबर, 1957 को विविध भारती का आगाज शील कुमार शर्मा की आवाज में हुआ था. उन्होंने कहा था-‘यह विविध भारती है, आकाशवाणी का पंचरंगी कार्यक्रम’.
आगे चलकर ‘विविध भारती आकाशवाणी का पंचरंगी कार्यक्रम’ वाला जुमला हमारे संस्कारों का हिस्सा बन गया. हमारे घर-परिवारों में बातूनी लोगों को चुप करते हुए अमूमन कहा जाता है, ‘अब बस करो, क्यों विविध भारती की तरह चले जा रहे हो’.
एक बार फिल्मकार हृषिकेश मुखर्जी से मेरी बातचीत हो रही थी. बातों-बातों में उन्होंने कहा था कि विविध भारती भारतीय आम आदमी के जीवन का बैकग्राउंड म्यूजिक है. उनकी कई फिल्मों में भी विविध भारती की आवाज सुनाई देती है.
विविध भारती के आगाज के वक्त सबसे पहले-‘नाच रे मयूरा/ खोल कर सहस्न नयन/ देख सघन गगन-मगन/ देख सरस स्वप्न जो कि आज हुआ पूरा’ गाना सबसे पहले बजाया गया था. इसे इस अवसर के लिए विशेष रूप से पंडित नरेंद्र शर्मा ने लिखा था और अनिल विश्वास के संगीत निर्देशन में मन्ना डे ने गाया था.
एक मनोरंजन रेडियो चैनल के रूप में विविध भारती ने न केवल मुस्तैदी से अपनी भूमिका निभाई, बल्कि साहित्य, शास्त्रीय संगीत, नाटक, सिनेमा और फिल्म संगीत से जुड़ी तमाम महत्वपूर्ण बातों का दस्तावेजीकरण भी किया.
सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा, हरिवंश राय बच्चन जी से लेकर आज के जमाने के कवियों तक…उर्दू अदब में अली सरदार जाफरी, इस्मत चुगताई से लेकर शहरयार तक… शास्त्रीय संगीत में पंडित डीवी पलुस्कर और भीमसेन जोशी से लेकर आज के महत्वपूर्ण हस्ताक्षरों तक. इसी तरह सिनेमा में अशोक कुमार और लीला नायडू से लेकर शाहिद कपूर और प्रियंका चोपड़ा तक सभी नामी हस्तियों की आवाजें विविध भारती के संग्रहालय में सुरक्षित हैं.
संगीत के दीवानों को विविध भारती पर ही नौशाद से लेकर ओपी नैयर, शंकर जयकिशन, सी.रामचंद्र, रोशन, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल,कल्याणजी-आनंदजी….इतने नाम हैं जिन्हें गिनाते-गिनाते थक जाएं.
इन सभी के साक्षात्कार विविध भारती से ही सुनने को मिले हैं. कौन से गाने कैसे बने, रिकॉर्डिंग के समय कौन-कौन सी घटनाएं हुईं. कौन से राग पर बने, शूटिंग के दौरान का किस्सा क्या है… समझ लीजिए कि विविध भारती ने आधी सदी से ज्यादा वक्त में बड़ी लगन के साथ एक ‘ध्वनि-महाग्रंथ’ तैयार किया है इन सब बातों का.
विविध भारती ने रेडियो सीलोन के एकाधिकार को इस हद तक खत्म किया कि आगे चलकर उसका दायरा बहुत थोड़े श्रोताओं तक सिमटकर रह गया. विविध भारती ने बदलते वक्त के साथ अपनी उपलब्धता का अगाध विस्तार किया है.
ऑल इंडिया रेडियो लाइव’ नामक एप्प के जरिये विविध भारती एंड्रॉइड और आइओएस पर भी पूरी दुनिया में सुना जा सकता है. वेब पर भी विविध भारती दुनिया भर में उपलब्ध है. आपके ट्रांजिस्टर और डीटीएच पर तो खैर पहले से ही है.
साठ बरस की विविध भारती की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि उसने हमारी ज़िंदगी को सुरीला बनाया है.
(लेखक बीते दो दशक से विविध भारती से जुड़े हैं)
(यह लेख मूलतः दैनिक जागरण समाचार पत्र के 3 अक्टूबर 2017 के अंक में प्रकशित हुआ था. इसे लेखक की अनुमति से यहां प्रकाशित किया जा रहा है.)