उत्तर प्रदेश के पीलीभीत, दुधवा और अमनगढ़ टाइगर रिज़र्व तथा कतरनिया घाट वन्यजीव अभयारण्य का मामला. याचिका में दिहाड़ी मज़दूरों के हवाले से कहा गया है कि पिछले 11 महीनों से उन्हें वेतन का भुगतान न करने के कारण उनके परिवार भुखमरी के कगार पर हैं.
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के पीलीभीत, दुधवा और अमनगढ़ टाइगर रिजर्व तथा कतरनिया घाट वन्यजीव अभयारण्य में काम कर रहे दिहाड़ी मजदूरों को पिछले 11 महीने से रुके वेतन के भुगतान की मांग को लेकर उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई है.
अधिवक्ता गौरव बंसल की ओर से दायर याचिका में केंद्र, उत्तर प्रदेश सरकार और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण को एक उच्च-स्तरीय समिति गठित करने के निर्देश देने की मांग की गई है, जो अपनी ड्यूटी के दौरान दिहाड़ी मजदूरों को हो रही दुश्वारियों से निपटने के लिए उपाय बता सके.
बंसल ने अपनी याचिका में कहा है कि इन टाइगर रिजर्व और वन्यजीव अभयारण्यों के 1200 से अधिक दिहाड़ी मजदूरों को वेतन का भुगतान न करके उत्तर प्रदेश सरकार ने इन मजदूरों के प्रति अपनी देयता से पल्ला छुड़ाया है, बल्कि टाइगर रिजर्व के संरक्षण के साथ समझौता भी किया है, क्योंकि ये मजदूर न केवल जैव विविधता, वनों और वन्यजीवों को संरक्षित करने में, बल्कि पारिस्थितिकी को भी संरक्षित करने में महती भूमिका निभाते हैं.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, याचिकाकर्ता ने कहा कि उन्होंने 20 से अधिक दिहाड़ी मजदूरों का साक्षात्कार लिया है और उन्होंने कहा है कि पिछले 11 महीनों से उन्हें वेतन का भुगतान न करने के कारण उनके परिवार बहुत ही दयनीय स्थिति में रह रहे हैं. यहां तक कि मज़दूरों ने कहा कि एक श्रमिक की पत्नी ने वित्तीय संकट के कारण आत्महत्या भी कर ली है.
याचिका में कहा, ‘सम्मानपूर्वक प्रस्तुत किया जाता है कि इन तीन टाइगर रिजर्व (पीलीभीत, दुधवा और अमनगढ़) में वेतन भुगतान न करने के परिणामस्वरूप तीव्र वित्तीय संकट के कारण दिहाड़ी मजदूरों के साथ-साथ उनके परिवार भुखमरी के कगार पर हैं.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)