एफबीआई की ओर से कहा गया है कि उसने इज़रायली निगरानी कंपनी एनएसओ ग्रुप द्वारा बनाए गए एक हैकिंग टूल को प्राप्त कर और उसका परीक्षण किया था. एजेंसी ने कहा कि उसने किसी भी जांच के लिए इसका इस्तेमाल नहीं किया है. उसका कहना है कि पेगासस ख़रीदने के पीछे उसकी मंशा ‘उभरती प्रौद्योगिकियों के साथ क़दम मिलाकर चलना था.
वॉशिंगटन: अमेरिका के संघीय जांच ब्यूरो (एफबीआई) ने बीते बुधवार को इजरायल के एनएसओ ग्रुप से स्पायवेयर ‘पेगासस’ खरीदने की पुष्टि की है. आरोप है कि इसका इस्तेमाल पत्रकारों, विरोधियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर नजर रखने के लिए लंबे समय से किया जा रहा है.
एफबीआई के अनुसार, उसने इजरायली निगरानी कंपनी एनएसओ ग्रुप द्वारा बनाए गए एक हैकिंग टूल को प्राप्त कर और उसका परीक्षण किया था, हालांकि लेकिन अमेरिकी कानून प्रवर्तन एजेंसी ने कहा कि उसने किसी भी जांच के लिए इसका इस्तेमाल नहीं किया है.
एफबीआई का कहना है कि ‘पेगासस’ खरीदने के पीछे उसकी मंशा ‘उभरती प्रौद्योगिकियों के साथ कदम मिलाकर चलना था.’
समाचार एजेंसी एपी/पीटीआई के मुताबिक, हालांकि आलोचकों ने आश्चर्य व्यक्त किया कि अगर उसकी रुचि इतनी सीमित थी तो प्रमुख अमेरिकी कानून प्रवर्तन एजेंसी को एक कुख्यात निगरानी उपकरण तक पहुंच के लिए भुगतान करने की आवश्यकता क्यों होगी, जिस पर सार्वजनिक हित से जुड़े साइबर जासूसों द्वारा बड़े पैमाने पर शोध किया गया है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, ‘पेगासस’ स्पायवेयर बनाने वाली निगरानी फर्म एनएसओ ग्रुप आईफोन को हैक करने के लिए सरकारों और अन्य एजेंसियों द्वारा इसके उपकरणों का दुरुपयोग किए जाने के खुलासे के बाद विवादों में घिर गई है.
आरोप है कि पेगासस स्पायवेयर का इस्तेमाल पत्रकारों, विरोधियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर नजर रखने के लिए लंबे समय से किया जा रहा है.
एनएसओ ग्रुप ने कहा है कि उसकी तकनीक का उद्देश्य आतंकवादियों, पीडोफाइल्स (Pedophiles- बच्चों के प्रति यौन रूप से आकर्षित होने वाला व्यक्ति) और कठोर अपराधियों को पकड़ने में मदद करना है.
कंपनी पर वर्तमान में आईफोन निर्माता एप्पल (Apple Inc) द्वारा उसके उपयोगकर्ता नियमों और सेवाओं के समझौते का उल्लंघन करने के लिए मुकदमा चलाया जा रहा है.
बीते साल नवंबर में तकनीकी कंपनी एप्पल ने उत्तरी कैलिफोर्निया अदालत में इजरायल के एनएसओ ग्रुप के खिलाफ यह मुक़दमा दायर किया था.
एप्पल ने एक बयान में कहा था कि एनएसओ ग्रुप ने अपने पेगासस स्पायवेयर के जरिये एप्पल यूजर्स की डिवाइसों को निशाना बनाया है. एप्पल का यह कदम अमेरिकी सरकार द्वारा एनएसओ ग्रुप को ब्लैकलिस्ट में रखने के कुछ हफ्तों बाद आया है.
बहरहाल एफबीआई द्वारा जासूसी उपकरण का परीक्षण किए जाने के संबंध में एनएसओ ग्रुप ने टिप्पणी के अनुरोध का तुरंत जवाब नहीं दिया है.
रिपार्ट के अनुसार, एफबीआई के एक प्रवक्ता ने द न्यूयॉर्क टाइम्स और ब्रिटेन के गार्जियन अखबार की रिपोर्ट की पुष्टि करते हुए एक बयान में कहा, एफबीआई ने केवल उत्पाद परीक्षण और मूल्यांकन के लिए एक सीमित लाइसेंस प्राप्त किया था, किसी भी जांच के संबंध में इसका उपयोग नहीं किया गया था.
एफबीआई ने कहा कि उसका लाइसेंस अब सक्रिय नहीं था.
वही लंबे समय से अपनी क्लाइंट सूची को गोपनीय रखने वाले एनएसओ ने कहता रहा है कि वह अपने उत्पादों को केवल ‘पुनरीक्षित और वैध’ सरकारी ग्राहकों को बेचता है.
एफबीआई की ओर से यह स्वीकारोक्ति ऐसे समय पर की गई, जब पिछले महीने ही अमेरिका के ‘नेशनल काउंटर इंटेलिजेंस एंड सिक्योरिटी सेंटर’ ने ट्विटर पर पोस्ट किए गए एक बयान में कहा था कि निगरानी फर्मों द्वारा मुहैया कराए जा रहे सॉफ्टवेयर का उन तरीकों से उपयोग किया जा रहा है, जो अमेरिकी कर्मचारियों और खुफिया कार्यक्रमों से संबंधित प्रणालियों के लिए गंभीर सुरक्षा जोखिम पैदा करते हैं.
2020 में समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने बताया था कि एफबीआई अमेरिकी निवासियों और कंपनियों पर संभावित हैक में एनएसओ की भूमिका की जांच कर रही थी. एफबीआई ने इस जांच की स्थिति पर तुरंत टिप्पणी नहीं की थी, जिसके बारे में समाचार एजेंसी का कहना था कि यह (जांच) कम से कम 2017 से चल रहा था.
आलोचकों का हालांकि कहना है कि अगर कोई खास मकसद नहीं था तो प्रमुख अमेरिकी कानून प्रवर्तन एजेंसी को एक कुख्यात निगरानी उपकरण खरीदने की जरूरत आखिर क्यों पड़ी.
समाचार एजेंसी एपी/पीटीआई के मुताबिक, एफबीआई के प्रवक्ता ने यह नहीं बताया कि एजेंसी ने एनएसओ समूह को कितना भुगतान किया या कब किया, लेकिन ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स ने पिछले सप्ताह एक खबर में दावा किया था कि 2019 में इसके परीक्षण के लिए 50 लाख डॉलर का भुगतान कर एक साल का लाइसेंस प्राप्त किया गया था.
मालूम हो कि एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया कंसोर्टियम, जिसमें द वायर भी शामिल था, ने पेगासस प्रोजेक्ट के तहत यह खुलासा किया था कि इजरायल की एनएसओ ग्रुप कंपनी के पेगासस स्पायवेयर के जरिये दुनियाभर में नेता, पत्रकार, कार्यकर्ता, सुप्रीम कोर्ट के अधिकारियों के फोन कथित तौर पर हैक कर उनकी निगरानी की गई या फिर वे संभावित निशाने पर थे.
इस कड़ी में 18 जुलाई से द वायर सहित विश्व के 17 मीडिया संगठनों ने 50,000 से ज्यादा लीक हुए मोबाइल नंबरों के डेटाबेस की जानकारियां प्रकाशित करनी शुरू की थी, जिनकी पेगासस स्पायवेयर के जरिये निगरानी की जा रही थी या वे संभावित सर्विलांस के दायरे में थे.
इस एक पड़ताल के मुताबिक, इजरायल की एक सर्विलांस तकनीक कंपनी एनएसओ ग्रुप के कई सरकारों के क्लाइंट्स की दिलचस्पी वाले ऐसे लोगों के हजारों टेलीफोन नंबरों की लीक हुई एक सूची में 300 सत्यापित भारतीय नंबर हैं, जिन्हें मंत्रियों, विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, न्यायपालिका से जुड़े लोगों, कारोबारियों, सरकारी अधिकारियों, अधिकार कार्यकर्ताओं आदि द्वारा इस्तेमाल किया जाता रहा है.
यह खुलासा सामने आने के बाद देश और दुनियाभर में इसे लेकर बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया था.
बता दें कि एनएसओ ग्रुप मिलिट्री ग्रेड के इस स्पायवेयर को सिर्फ सरकारों को ही बेचती हैं. भारत सरकार ने पेगासस की खरीद को लेकर न तो इनकार किया है और न ही इसकी पुष्टि की है.
हाल ही में अमेरिकी अखबार ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने अपनी एक रिपोर्ट में खुलासा किया था कि 2017 में भारत और इजरायल के बीच हुए लगभग दो अरब डॉलर के अत्याधुनिक हथियारों एवं खुफिया उपकरणों के सौदे में पेगासस स्पायवेयर तथा एक मिसाइल प्रणाली की खरीद मुख्य रूप से शामिल थी.
बता दें कि जुलाई 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इजरायल की यात्रा की थी, जो भारत के किसी भी प्रधानमंत्री की इजरायल की पहली यात्रा थी.
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में कहा गया था, ‘यह यात्रा ऐसे समय में की गई, जब भारत ने फिलिस्तीन और इजरायल संबंधों को लेकर नीति बनाई थी, जिसमें भारत ने फिलिस्तीन के साथ प्रतिबद्धता की अपनी नीति को कायम रखा है, जबकि इजरायल के साथ अपने संबंधों को अमैत्रीपूर्ण रखा.’
रिपोर्ट में कहा गया, ‘मोदी का दौरा हालांकि सौहार्दपूर्ण था. उन्हें और इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को नंगे पैर स्थानीय समुद्र तट पर चहलकदमी करते देखा गया. दोनों के बीच गर्मजोशी की वजह दोनों देशों के बीच दो अरब डॉलर के हथियारों का सौदा था, जिसमें पेगासस और मिसाइल सिस्टम भी शामिल थे.’
रिपोर्ट में कहा गया कि कई महीनों बाद नेतन्याहू ने भारत का दौरा किया. जून 2019 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक और सामाजिक परिषद में इजरायल के समर्थन में वोट किया, ताकि फिलिस्तीन मानवाधिकार संगठन को पर्यवेक्षक का दर्जा नहीं मिल सके.
उल्लेखनीय है कि अभी तक न तो भारत सरकार और न ही इजरायल सरकार ने यह स्वीकार किया है कि भारत ने पेगासस खरीदा था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)