कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा ने कहा कि पिछले लगभग पांच सालों से किसानों की आय दोगुनी करने की बात जोर-शोर से कही जाती रही है कि वर्ष 2022 तक इस मंज़िल को हासिल करने की सरकार की योजना है, लेकिन बजट में इस बहुप्रचारित ‘दावे’ पर चुप्पी साध ली गई है. उन्होंने कहा कि अगर देखा जाए तो नरेगा सहित तमाम मदों में कमी ही की गई है और कृषि प्रणाली में जान फूंकने जैसा कोई प्रयास नहीं दिखता है.
नई दिल्ली: बजट को निराशाजनक बताते हुए प्रमुख कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा ने कहा है कि बजट किसानों के हितों और उनकी आय दोगुनी करने के बारे में मौन है.
शर्मा ने बताया, ‘पिछले लगभग पांच सालों से किसानों की आय दोगुनी करने की बात जोर-शोर से कही जाती रही है कि वर्ष 2022 तक इस मंजिल को हासिल करने की सरकार की योजना है, लेकिन बजट में इस बहुप्रचारित ‘दावे’ पर चुप्पी साध ली गई है.
उन्होंने आगे कहा, ‘कम से कम सरकार को यह बताना चाहिए था कि इस लक्ष्य को पाने की दिशा में और कितना समय लगेगा या कहां तक आगे बढ़ पाए हैं, आगे और कितना समय लगेगा और इस लक्ष्य को हासिल करने में क्या समस्या आ रही है.’
उन्होंने कहा कि हमें किसी बड़ी घोषणा की उम्मीद थी, लेकिन इस बारे में बजट ने मौन धारणा किया हुआ है.
उन्होंने कहा कि हाल ही में दिल्ली में किसानों का जो लंबा आंदोलन चला, उसके बाद सरकार की ओर से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर एक समिति के गठन की बात की गई थी. बजट में सरकार को कम से कम उस समिति के बारे में उसके गठन की ही औपचारिक घोषणा कर देनी चाहिए थी और बताना चाहिए था कि इस समिति की कितने दिन में रिपोर्ट आ जाएगी. लेकिन इस दिशा में भी कोई पहल नहीं की गई है.
उन्होंने कहा, ‘महामारी के इस बुरे वक्त में कृषि क्षेत्र ने न सिर्फ जीजिविषा को प्रदर्शित किया बल्कि अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी साबित हुआ. ऐसे वक्त में सरकार को आगे बढ़कर किसानों की मदद करनी चाहिए थी. पीएम किसान सम्मान निधि के तहत उन्हें दी जाने वाले 6,000 रुपये की वित्तीय मदद को बढ़ाकर 12,000 रुपये सालाना करना चाहिए था और कृषि मजदूरों को भी 6,000 रुपये सालाना की वित्तीय मदद करनी चाहिए थी. तब शायद किसानों को लगता कि सरकार हमारी मदद के लिए आगे आई है.’
उन्होंने कहा कि किसानों ने तो न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी रूप देने की मांग की थी, लेकिन देखा जाए तो कृषि के तमाम और मदों में कमी के अलावा एमएसपी की राशि को इस बजट में गेहूं-धान के लिए 2.37 लाख करोड़ निर्धारित किया गया है, जबकि पिछले साल एमएसपी के लिए आवंटन 2.48 लाख करोड़ था.
उन्होंने कहा कि बजट में किसान ड्रोन की बात की गई है, लेकिन क्या ड्रोन से किसानों की आय बढ़ जाएगी? देश में एक भी कोई ऐसा स्टार्टअप नहीं दिखता, जो किसानों से एमएसपी पर उनकी पैदावार खरीद रहा हो तो फिर इन स्टार्टअप और आढ़तियों में क्या फर्क है?
उन्होंने कहा कि बजट में रसायन मुक्त खेती की बात की गई है लेकिन आवंटन तो बहुत कम है. से सारी बातें दर्शाती हैं कि कृषि सरकार की प्राथमिकता सूची में नहीं है.
उन्होंने कहा कि अगर देखा जाए तो नरेगा सहित तमाम मदों में कमी ही की गई है और कृषि प्रणाली में जान फूंकने जैसा कोई प्रयास नहीं दिखता है.
मालूम हो कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बीते एक फरवरी को आम बजट में घोषणा की थी कि केंद्र सरकार ने 2022-2023 के महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम (मनरेगा) के लिए 73,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं. यह मौजूदा वित्त वर्ष के लिए संशोधित अनुमान से 25.51 फीसदी कम है.
पिछले साल के बजट में भी इस योजना के लिए 73,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे. बाद में काम की अधिक मांग को देखते हुए इसे संशोधित कर 98,000 करोड़ रुपये कर दिया गया था. हालांकि, आवंटन तभी से स्थिर बना हुआ है.
नरेगा संघर्ष मोर्चा सहित कई संगठनों ने मनरेगा योजना के लिए इतनी कम धनराशि का आवंटन किए जाने को लेकर सरकार की आलोचना की है.
इस संगठन ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना के लिए कम बजट आंवटन को लेकर सरकार की आलोचना को लेकर बयान जारी किया है.
इस बयान में कहा गया, ग्रामीण संकट के बावजूद नरेगा को लागू करना केंद्र सरकार का कानूनी दायित्व है. हालांकि, इस एक्ट की मांग संचालित प्रकृति को बार-बार दबाया गया. इतनी सख्ती से धनराशि का आवंटन करने से यह योजना आपूर्ति संचालित कार्यक्रम बन गई है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)