कोविड-19 से मौतों के आंकड़े सही नहीं, तकनीकी आधार पर मुआवज़ा ख़ारिज न करें: सुप्रीम कोर्ट

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि कोविड-19 से हुईं मौतों के आंकड़े सही और वास्तविक नहीं हैं, इसलिए ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि पीड़ितों के परिजनों द्वारा किए गए मुआवज़े संबंधी आवेदन फ़र्ज़ी हैं.

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(फोटो: पीटीआई)

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि कोविड-19 से हुईं मौतों के आंकड़े सही और वास्तविक नहीं हैं, इसलिए ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि पीड़ितों के परिजनों द्वारा किए गए मुआवज़े संबंधी आवेदन फ़र्ज़ी हैं.

(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्यों द्वारा जारी किए गए कोविड-19 से हुईं मौतों संबंधी आधिकारिक आंकड़े ‘सच नहीं’ थे और राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वे उन मृतकों के परिजनों को मुआवजा प्रदान करें, जिन्होंने मुआवजे के लिए आवेदन दिया है और तकनीकी आधार पर उनके दावों को खारिज न करें.

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के मुताबिक, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि कोविड-19 से हुई मौत संबंधी आंकड़े सही और वास्तविक नहीं हैं और ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि कोविड-19 पीड़ितों के परिजनों द्वारा किए गए मुआवजे संबंधी आवेदन फर्जी हैं.

बहरहाल, द वायर साइंस  ने भी इस संबंध में एक रिपोर्ट में बताया था कि अगर एक मरीज को कोरोना संक्रमण है तो उसकी मौत का कारण उसकी अन्य बीमारियों को बताना बेहद मुश्किल है.

इसका एक कारण यह है कि कोविड-19 मौजूदा बीमारियों को जानलेवा बना सकता है, जैसा कि अधिकांश संक्रामक रोग करते हैं. फिर भी इस मानदंड के चलते देश में कोविड-19 से हुई मौतों की संख्या में कई मौतों को कोविड के तहत नहीं गिना गया.

हाल ही में महामारी विशेषज्ञ प्रभात झा ने द वायर  को बताया था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भारत के कोविड-19 मौतों संबंधी आंकड़ों पर भरोसा नहीं करता है क्योंकि भारत में अन्य देशों की तुलना में मौतों की संख्या को कम गिना गया है.

झा ने 6 जनवरी 2022 को प्रकाशित एक अध्ययन का भी हवाला दिया, जिसमें अनुमान लगाया गया था कि कोविड-19 के कारण भारत में मरने वालों की संख्या आधिकारिक आंकड़ों से छह गुना अधिक हो सकती है.

उल्लेखनीय है कि 2020 से ही ऐसी आशंकाएं हैं कि भारत में महामारी से मौतों को कम करके दिखाया गया है. अगस्त 2021 में द वायर  पर प्रकाशित रिपोर्टर्स कलेक्टिव की एक खोजी रिपोर्ट में गुजरात के मृत्यु रजिस्टर के डेटा के हवाले से बताया गया था कि उस समय तक राज्य में कोविड से मौत का आधिकारिक आंकड़ा रजिस्टर से मिले डेटा से 27 गुना कम था.

बहरहाल उच्चतम न्यायालय ने सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (एसएलएसए) के सदस्य सचिव के साथ समन्वय करने के लिए समर्पित नोडल अधिकारी नियुक्त करें, ताकि कोविड-19 से जान गंवाने वालों के परिजनों को अनुग्रह राशि का भुगतान किया जा सके.

पीठ ने राज्य सरकारों को एक सप्ताह के भीतर संबंधित राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के पास नाम, पता और मृत्यु प्रमाण-पत्र के साथ-साथ अनाथों के संबंध में पूर्ण विवरण उपलब्ध कराने का निर्देश दिया और कहा कि इसमें विफल रहने पर मामले को बहुत गंभीरता से लिया जाएगा.

शीर्ष अदालत ने दोहराया कि मुआवजे की मांग करने वाले आवेदनों को तकनीकी आधार पर खारिज नहीं किया जाना चाहिए और यदि कोई तकनीकी गड़बड़ी पाई जाती है, तो संबंधित राज्यों को उन्हें त्रुटि ठीक करने का अवसर देना चाहिए क्योंकि कल्याणकारी राज्य का अंतिम लक्ष्य पीड़ितों को कुछ सांत्वना और मुआवजा प्रदान करना होता है.

इसने कहा कि राज्यों को दावा प्राप्त होने के 10 दिन की अधिकतम अवधि के भीतर पीड़ितों को मुआवजे का भुगतान करने के लिए सभी प्रयास करने चाहिए.

न्यायालय ने कहा कि इसने अपने पहले के आदेश में कहा था कि राज्य सरकारें अपने पोर्टल पर दर्ज कोविड-19 से संबंधित मौतों का पूरा ब्योरा देने के साथ ही उन व्यक्तियों का पूर्ण विवरण दें जिन्हें अनुग्रह राशि का भुगतान किया जा चुका है, लेकिन इसके बावजूद ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकतर राज्यों ने केवल आंकड़े दिए हैं और कोई पूर्ण विवरण नहीं दिया है.

पीठ ने कहा कि पूरा विवरण देने के पहले के आदेश का उद्देश्य कम से कम उन मामलों को देखना था, जो राज्य सरकारों के पास पंजीकृत हैं और जिनमें मुआवजे के लिए उपयुक्त अधिकारियों से संपर्क नहीं किया गया है.

पीठ ने कहा, ‘विधिक सेवा प्राधिकरण उन तक पहुंचेंगे और देखेंगे कि वे आवेदन करें और वे एक सेतु के रूप में कार्य करेंगे. इसी तरह अनाथों के संबंध में विवरण नहीं दिया गया है. हम सभी राज्य सरकारों को उनके नाम, पते, मृत्यु प्रमाण-पत्र आदि तथा अनाथों के संबंध में पूर्ण विवरण आज से एक सप्ताह के भीतर संबंधित राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को देने का निर्देश देते हैं. ऐसा नहीं करने पर मामले को बहुत गंभीरता से लिया जाएगा.’

शीर्ष अदालत ने कहा कि विधिक सेवा प्राधिकरण का प्रयास उन पीड़ितों तक पहुंचने का होगा, जिन्होंने अभी तक किसी भी कारण से संपर्क नहीं किया है.

पीठ ने कहा, ‘हम संबंधित राज्य सरकारों को एक समर्पित अधिकारी नियुक्त करने का भी निर्देश देते हैं, जो मुख्यमंत्री सचिवालय में उप-सचिव के पद से नीचे का नहीं हो, जो राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव के साथ लगातार संपर्क में रहेगा ताकि वह उसके साथ समन्वय कर सकें और यह देख सकें कि आवेदन पात्र व्यक्तियों से प्राप्त हुए हैं.’

साथ ही पीठ की ओर से कहा गया, ‘जब भी सत्यापन पर विवरण दिया जाता है, सदस्य सचिव को पता चलता है कि दर्ज मामलों में से कुछ परिजनों को अभी तक मुआवजा नहीं दिया गया है. सदस्य सचिव उन तक सचिव डीएलएसए/सचिव तालुका और कानूनी स्वयंसेवकों के माध्यम से पहुंचेंगे. उनकी भूमिका पीड़ितों और सरकार के बीच एक सेतु के रूप में लोकपाल की होगी. यदि सदस्य सचिव को कोई कठिनाई होती है तो वह तुरंत यहां संबंधित व्यक्ति से संपर्क कर सकते हैं और सभी को सहयोग करने का निर्देश दिया जाता है.’

शीर्ष अदालत ने मुआवजे की मांग के लिए ऑफलाइन आवेदनों को खारिज करने पर महाराष्ट्र सरकार को भी फटकार लगाई.

पीठ ने कहा, ‘ऑफलाइन जमा किए गए किसी भी आवेदन को अस्वीकार नहीं किया जाना चाहिए. आप दान नहीं कर रहे हैं. कल्याणकारी राज्य के रूप में यह आपका कर्तव्य है. आप लोगों को यहां-वहां क्यों भेज रहे हैं? इसे दिल की गहराई से करें.’

पीठ ने कहा, ‘इस आधार पर कोई अस्वीकृति नहीं होगी कि आवेदन ऑफलाइन दायर किया गया है. जहां भी आवेदन खारिज किए गए हैं, राज्य सरकार को एक सप्ताह के भीतर समीक्षा करने और मुआवजा देने का निर्देश दिया जाता है.

अदालत ने कहा, ‘महाराष्ट्र सरकार को राज्य विधिक सेवा सदस्य सचिव को कारणों के साथ खारिज किए गए दावों का विवरण देने का निर्देश दिया जाता है और यदि यह तकनीकी आधार पर पाया जाता है तो उन व्यक्तियों को गलतियां सुधारने का अवसर दिया जाए और आवेदनों पर पुनर्विचार किया जाए.’

मामले में अब अगली सुनवाई सात मार्च को होगी.

इस मामले में याचिकाकर्ता अधिवक्ता गौरव बंसल ने पीठ से कहा कि मीडिया में आईं कुछ खबरों में कहा गया है कि कर्नाटक के यादगीर जिले में कुछ पीड़ितों को दिए गए चेक बाउंस हो गए हैं.

शीर्ष अदालत ने इस पर राज्य सरकार के वकील से यह सुनिश्चित करने को कहा कि चेक बाउंस न हों.

राजस्थान के संबंध में शीर्ष अदालत ने उल्लेख किया कि उसने 10 करोड़ रुपये के बजटीय आवंटन के लिए आवेदन किया है और कहा कि राशि का भुगतान राज्य आपदा प्रबंधन कोष से किया जाना है.

गुजरात में 2001 के भूकंप के बाद गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश से संकेत लेते हुए शीर्ष अदालत ने पहले सभी राज्यों से कहा था कि वे कोविड महामारी की वजह से हुईं मौतों तथा मुआवजे के भुगतान का पूर्ण विवरण राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों को उपलब्ध कराएं.

शीर्ष अदालत बंसल और हस्तक्षेपकर्ताओं द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. याचिका में कोविड​​​​-19 से जान गंवाने वालों के परिजनों को अनुग्रह राशि उपलब्ध कराए जाने का आग्रह किया गया है.

महामारी के कारण अपनी जान गंवाने वालों के परिजनों को 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि नहीं दिए जाने पर शीर्ष अदालत ने पूर्व में राज्य सरकारों को फटकार लगाई थी.

अदालत ने चार अक्टूबर 2021 को कहा था कि कोई भी राज्य कोविड-19 के कारण मरने वालों के परिजनों को 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि देने से केवल इस आधार पर इनकार नहीं करेगा कि मृत्यु प्रमाण-पत्र में मौत के कारण के रूप में कोरोना वायरस का उल्लेख नहीं है.

अदालत ने यह भी कहा था कि जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण या संबंधित जिला प्रशासन को आवेदन करने की तारीख से 30 दिन के भीतर अनुग्रह राशि का वितरण करना होगा.

शीर्ष अदालत ने कहा था कि कोविड-19 के कारण मरने वाले व्यक्तियों के परिजनों को मुआवजे के भुगतान के उसके निर्देश बहुत स्पष्ट हैं और मुआवजा देने के लिए जांच समिति के गठन की कोई आवश्यकता नहीं है.

अदालत ने कहा था कि यह बहुत स्पष्ट किया गया है कि ऐसे मामले में भी, जहां मृत्यु प्रमाण-पत्र में मौत का कारण कोविड-19 नहीं दिखाया गया है, लेकिन यदि यह पाया जाता है कि जान गंवाने वाला व्यक्ति कोरोना वायरस से संक्रमित था और 30 दिन के भीतर उसकी मृत्यु हो गई तो स्वतः ही उसके परिवार के सदस्य बिना किसी शर्त के मुआवजे के हकदार हो जाते हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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