यूपी: भाजपा से सपा पहुंचे स्वामी प्रसाद पडरौना की जगह ​फ़ाज़िलनगर से चुनाव क्यों लड़ रहे हैं

स्वामी प्रसाद मौर्य ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के वक्त भाजपा को छोड़कर उसे क़रारा झटका दिया है. भाजपा ने नुकसान की भरपाई करने के लिए कांग्रेस के बड़े नेता पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री तथा स्वामी प्रसाद मौर्य के प्रतिद्वंद्वी आरपीएन सिंह को अपने साथ लिया है. दोनों कद्दावर नेताओं के जनाधार की परीक्षा इस चुनाव में होनी है.

स्वामी प्रसाद मौर्य. (फोटो साभार: फेसबुक)

स्वामी प्रसाद मौर्य ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के वक्त भाजपा को छोड़कर उसे क़रारा झटका दिया है. भाजपा ने नुकसान की भरपाई करने के लिए कांग्रेस के बड़े नेता पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री तथा स्वामी प्रसाद मौर्य के प्रतिद्वंद्वी आरपीएन सिंह को अपने साथ लिया है. दोनों कद्दावर नेताओं के जनाधार की परीक्षा इस चुनाव में होनी है.

स्वामी प्रसाद मौर्य. (फोटो साभार: फेसबुक)

गोरखपुर: काबीना मंत्री का पद और भाजपा छोड़ सपा में आए स्वामी प्रसाद मौर्य अब पूर्वी उत्तर प्रदेश की अपनी पडरौना सीट के बजाय कुशीनगर जिले की फाजिलनगर सीट से चुनाव लड़ेंगे. उन्होंने चार फरवरी को इस सीट से नामांकन भी कर दिया.

पडरौना के बजाय फाजिलनगर चुनाव लड़ने को लेकर कई तरह का चर्चा हो रही है, लेकिन जानकार मानते हैं कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपने लिए बहुल अनुकूल सीट चुनी है. इस सीट पर न सिर्फ जातीय समीकरण उनके पक्ष में है, बल्कि उनके विरोधी प्रत्याशी भी कमजोर हैं.

स्वामी प्रसाद मौर्य ने बीते 11 जनवरी को योगी सरकार से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने योगी सरकार पर दलितों, पिछड़ों, किसानों बेरोजगार नौजवानों और छोटे, लघु एवं मध्यम श्रेणी के व्यापारियों की घोर उपेक्षा का आरोप लगाया और कहा कि उन्होंने भाजपा के हर फोरम पर हमेशा अपनी बात रखी, लेकिन उनकी बात सुनी नहीं गई.

इस्तीफा देने के बाद वे अपने समर्थकों के साथ सपा में चले गए. उनके साथ योगी सरकार के दो और मंत्रियों- धर्म सिंह सैनी, दारा सिंह चौहान ने भी इस्तीफा दिया था और सपा में शामिल हो गए थे. कई विधायक भी भाजपा छोड़कर सपा में आए.

स्वामी प्रसाद मौर्य ने ऐन चुनाव के वक्त भाजपा को करारा झटका दिया. उनके और उनके साथ कई बड़े नेताओं के जाने के सदमे से भाजपा अभी भी उबर नहीं पाई है.

भाजपा ने नुकसान की भरपाई करने के लिए कांग्रेस के बड़े नेता पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री तथा स्वामी प्रसाद मौर्य के प्रतिद्वंद्वी आरपीएन सिंह को अपने साथ लिया है. दोनों कद्दावर नेताओं के जनाधार की परीक्षा इस चुनाव में होनी है.

स्वामी प्रसाद मौर्य और आरपीएन सिंह के बीच पहली चुनावी टक्कर 2009 के लोकसभा चुनाव में पडरौना सीट पर हुई. इस चुनाव में स्वामी प्रसाद मौर्य की हार हुई, लेकिन उन्होंने अपनी हार का जल्द बदला चुका लिया.

पडरौना विधानसभा सीट पर 2009 में ही हुए उप-चुनाव में उन्होंने आरपीएन सिंह की मां मोहिनी देवी को हरा दिया. इसके बाद वह 2012 में भी इसी सीट से चुनाव जीते. वर्ष 2016 में उन्होंने बसपा छोड़ दी और भाजपा में शामिल हो गए. भाजपा के टिकट पर वह 2017 का विधानसभा चुनाव फिर पडरौना सीट से लड़े और विजयी हुए.


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वर्ष 2017 में उनके बेटे उत्कृष्ट मौर्य राय बरेली के ऊंचाहार विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे, लेकिन करीब दो हजार मत से हार गए थे. वर्ष 2019 में स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य भाजपा के टिकट पर बदायूं से लोकसभा का चुनाव लड़ीं और जीतीं.

68 वर्षीय स्वामी प्रसाद मौर्य का राजनीतिक जीवन तकरीबन 40 वर्ष लंबा है. उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से विधि स्नातक की पढ़ाई की है. पढ़ाई के दौरान उनका झुकाव वाम संगठनों के तरफ था, लेकिन वे बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं रहे. वे वाम संगठनों के स्टडी सर्किल का हिस्सा जरूर रहे. इस दौरान वे बौद्ध धर्म से भी बहुत प्रभावित रहे और जातीय भेदभाव के साथ-साथ अंधविश्वास, पाखंड का मुखर विरोध करते रहे.

पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने 1980 से लोकदल से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की और जनता दल से होते हुए 1996 में बसपा में आए. वह 1996 में राय बरेली जिले की डलमऊ विधानसभा से चुनाव लड़े और पहली बार 13वीं विधानसभा के लिए विधायक चुने गए. उसके बाद वह 2002 में फिर विधायक बने. वह 2007 में विधान परिषद सदस्य रहे.

बेहद सामान्य परिवार के स्वामी प्रसाद मौर्य जब पहला चुनाव लड़ रहे थे तो उनके पास चुनाव लड़ने के पैसे नहीं थे. उनके सहपाठियों और मित्रों ने उनके लिए डेढ़ लाख रुपया जुटाया था और एक सेकेंड हैंड जीप का जुगाड़ किया था.

मौर्य बसपा में बहुत तेजी से आगे बढ़े. बसपा सुप्रीमो मायावती ने उन्हें बसपा संगठन और सरकार में बराबर महत्व दिया. बसपा सरकार में वे पंचायती राज मंत्री रहे. वे बसपा के प्रदेश महामंत्री और फिर अध्यक्ष रहे.

बसपा के विपक्ष में रहने पर उन्होंने नेता विरोधी दल की भूमिका निभायी. इस दौरान उन्होंने बसपा के कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच अपनी जबर्दस्त पकड़ बनायी. साथ ही साथ अपने को मौर्य, कुशवाहा, शाक्य समाज के नेता के रूप में आगे बढ़ाया.

बसपा सुप्रीमो मायावती से अनबन होने पर जब उन्होंने बसपा छोड़ी तो अपने साथ कई बड़े नेताओं को साथ ले गए. बसपा छोड़ने के बाद उन्होंने लखनऊ में एक बड़ी रैली कर अपनी ताकत दिखायी थी और इसके बाद भाजपा में शामिल हुए थे. भाजपा में शामिल होने के पहले उन्होंने अपने, बेटे व समर्थक नेताओं के टिकट की बात पक्की कर ली थी.

बताया जाता है कि भाजपा में शामिल होने के बाद उन्होंने अपने 15 सहयोगियों को टिकट दिलवाया और उनमें से अधिकतर चुनाव भी जीते. उन्हें उम्मीद थी कि भाजपा की सरकार बनने के बाद उन्हें मंत्रिमंडल में अच्छा ओहदा मिलेगा लेकिन उन्हें श्रम मंत्री बना दिया गया और केशव प्रसाद मौर्य को उपमुख्यमंत्री.

स्वामी प्रसाद मौर्य बीते जनवरी माह में भाजपा छोड़कर सपा में शामिल हो गए थे.(फोटो साभार: ट्विटर/अखिलेश यादव)

केशव प्रसाद मौर्य को स्वामी प्रसाद मौर्य ने हमेशा अपने से जूनियर नेता ही माना और सार्वजनिक रूप से यह जताने के लिए उन्हें ‘छोटा भाई’ बोलते रहे.

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा उनकी बेटी को टिकट देने में ना-नुकुर कर रही थी लेकिन वह अड़ गए और भाजपा को उनके आगे झुकना पड़ा था.

स्वामी अपने समर्थकों और सहयोगियों के लिए लड़ने और अड़ने वाले नेता माने जाते हैं. वह हमेशा अपने को पिछड़े वर्ग के हितैषी के रूप में प्रस्तुत करते हैं. वे बेहद मुखर नेता हैं और अपनी अहमियत बार-बार जताते रहते हैं.

विरोधी नेताओं पर जबरदस्त हमला करते हैं और कई बार इस कोशिश में वे बहुत आगे चले जाते हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में पडरौना में हुई एक जनसभा में भाजपा के मंच से आरपीएन सिंह को लक्ष्य कर दिए गए बेहद तीखे भाषण ने चुनावी माहौल को बहुत गर्म कर दिया था.

सपा में शामिल होने के वक्त भी उन्होंने एक बार फिर अपना खास तेवर दिखाया. उन्होंने कहा, ‘स्वामी प्रसाद मौर्य ने भले ही अपनी पार्टी न बनाई हो लेकिन वे किसी भी पार्टी से कम हैसियत नहीं रखते हैं. उनके पास जनाधार की कमी नहीं है.’

उन्होंने अपने भाषण में योगी आदित्यनाथ पर भी तीखा हमला बोला था और गोरखपुर के गगहा क्षेत्र में डेढ़ महीने में सात हत्याओं का जिक्र करते हुए कहा, ‘गगहा और गोरखपुर में गुंडाराज है.’

अभी हाल में एक इंटरव्यू में जब उनसे आरपीएन सिंह के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘जिन्हें आप हौवा बता रहे हैं वे न पिद्दी हैं न पिद्दी का शोरबा.’ मौर्य अपने भाषणों के चलते चुनाव को ध्रुवीकृत करने में अक्सर सफल हो जाते हैं.

पडरौना के बजाय फाजिलनगर में चुनाव लड़ने को लेकर कहा जा रहा है कि वे आरपीएन सिंह से सीधे लड़ने से बचने के लिए फाजिलनगर चले गए. इसके लिए विरोधी सोशल मीडिया पर बहुत कटाक्ष कर रहे हैं.

फाजिलनगर विधानसभा सीट पर पिछले दो बार से भाजपा के गंगा सिंह कुशवाहा चुनाव जीतते आ रहे हैं. अब वे वृद्ध हो गए हैं. इसके पहले 2002 में भी यह सीट भाजपा के जगदीश मिश्र उर्फ बाल्टी बाबा ने जीती थी.

इस चुनाव में भाजपा ने सीटिंग विधायक गंगा सिंह कुशवाहा की जगह उनके बेटे सुरेंद्र  कुशवाहा को उम्मीदवार बनाया है. सुरेंद्र कुशवाहा शिक्षक हैं.

बसपा ने इस सीट पर संतोष तिवारी को प्रत्याशी बनाया है. कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया है.

फाजिलनगर सीट पर स्वामी प्रसाद मौर्य की सजातीय मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है. इसके बाद मुसलमान, यादव और ब्राह्मण आते हैं. कुर्मी चनऊ की संख्या भी अच्छी-खासी है. यहां के सपा से छह बार विधायक रहे विश्वनाथ सिंह चनऊ बिरादरी से आते हैं.

इस बार सपा से उनके बेटे विपिन सिंह, सपा के जिलाध्यक्ष इलियास अंसारी भी टिकट के दावेदार थे. सपा नेताओं-कार्यकर्ताओं के एक हिस्से में स्वामी प्रसाद मौर्य को टिकट दिए जाने का विरोध है.

फाजिलनगर में समर्थकों के साथ स्वामी प्रसाद मौर्य. (फाइल फोटो साभार: फेसबुक)

इस समूह ने स्वामी प्रसाद मौर्य को बाहरी उम्मीदवार बताते हुए तीन फरवरी को पुतला फूंक कर अपना विरोध सार्वजनिक भी किया, हालांकि विरोध करने वाले जिला पंचायत के एक सदस्य कुछ देर बाद ही मल्लूडीह में स्वामी प्रसाद मौर्य का स्वागत करने वाली भीड़ में भी दिखे. टिकट के दावेदार सपा जिलाध्यक्ष इलियास अंसारी ने भी अपने फेसबुक पोस्ट में असंतुष्ट नेताओं से विरोध न करने की अपील की है.

सपा से उम्मीदवारी घोषित करने के बाद गोरखपुर से फाजिलनगर आ रहे स्वामी प्रसाद मौर्य का जगह-जगह स्वागत किया गया. मल्लूडीह चौराहे पर नेशनल हाईवे पर करीब 200 लोगों के समूह में शामिल लोग चर्चा कर रहे थे, ‘इस बार क्षेत्र को कद्दावर नेता मिला है. समीकरण भी पक्ष में है. मौर्या जी आस-पास की सीटों को भी प्रभावित करेंगे.’

स्वामी प्रसाद मौर्य की पूर्व सीट पडरौना में भी कमोवेश इसी तरह के जातीय समीकरण थे, लेकिन पडरौना नगर पालिका क्षेत्र में भाजपा का अच्छा जानाधार है.

पडरौना शहर में आरपीएन सिंह की भी अच्छी पकड़ मानी जाती है. स्वामी प्रसाद मौर्य यदि पडरौना से लड़ते तो यहां से इस बार उनका समर्थन बहुत कम मिलता. फाजिलनगर विधानसभा क्षेत्र पूरी तरह ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र हैं. यहां शहरी मतदाता कम हैं.

मौर्य की सीट बदलने का दूसरा कारण यह है कि पडरौना विधानसभा सीट पर पूर्व सांसद बालेश्वर यादव के बेटे विजेंद्र पाल यादव चुनाव लड़ना चाहते हैं. यादव 2012 में इस सीट से चुनाव भी लड़ चुके हैं. पिछला चुनाव लड़ने वे खड्डा चले गए थे. दोनों बार उन्हें हार मिली.

यदि स्वामी प्रसाद मौर्य पडरौना से चुनाव लड़ते तो उन्हें बालेश्वर यादव का समर्थन नहीं मिलता. मौर्य के फााजिलनगर चले जाने से बालेश्वर यादव भी काफी राहत महसूस कर रहे हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य के नामांकन के वक्त वह भी मौजूद रहे.

उम्मीद की जाती है कि खड्डा सीट से सपा कोइरी बिरादरी के नेता को ही टिकट देगी. इस तरह सपा ने खड्डा, पडरौना और फाजिलनगर सीट पर काफी असरदार जातीय समीकरण बनाया है.

2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी कुशीनगर जिले की सात में से पांच और उसकी सहयोगी रही कांग्रेस दो सीटों पर चुनाव लड़ी थी. सपा एक भी सीट नहीं जीत पायी थी, जबकि कांग्रेस तमकुहीराज की सीट जीत गयी थी. सपा तीन स्थानों पर दूसरे स्थान पर रही, जबकि दो स्थानों पर वह तीसरे पर चली गयी थी.

फाजिलनगर के पास की पडरौना, खड्डा, तमकुहीराज और देवरिया जिले के भाटपाररानी सहित कई सीटों पर मौर्य, कुशवाहा बिरादरी के लोग ठीकठाक संख्या में हैं. यदि स्वामी प्रसाद मौर्य इन सीटों पर सघन प्रचार करते हैं तो सपा को फायदा हो सकता है.

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)

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