गुजरात हाईकोर्ट ने साल 2020 में स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप द्वारा बांग्लादेशी नागरिक होने के संदेह में हिरासत में लिए गए आमिर सिदिकभाई शेख़ की सशर्त रिहाई के निर्देश दिए हैं. आमिर की हिरासत के बाद उनकी मां ने मतदाता पहचान-पत्र, आधार कार्ड और राशन कार्ड जैसे पहचान और नागरिकता के कई साक्ष्य पेश किए थे, लेकिन इन पर ग़ौर नहीं किया गया.
अहमदाबादः गुजरात हाईकोर्ट का कहना है कि बांग्लादेशी नागरिक होने के संदेह में बीते 19 महीनों से हिरासत में रखे गए अहमदाबाद के शख्स को सुनवाई का अवसर मुहैया नहीं कराकर न्याय के सिद्धांतों की अवहेलना की गई है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, हाईकोर्ट की पीठ ने चार फरवरी के अपने आदेश में कथित तौर पर 18 जून 2020 की दोपहर को स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप (एसओजी) द्वारा हिरासत में लिए गए आमिर सिदिकभाई शेख (38 वर्ष) की सशर्त रिहाई के निर्देश दिए. यह आदेश बीते पांच फरवरी को सार्वजनिक किया गया.
आमिर की हिरासत के बाद उनकी मां राशिदा ने जूहापुरा पुलिस स्टेशन का रुख कर मतदाता पहचान-पत्र, आधार कार्ड और परिवार का राशन कार्ड जैसे पहचान और नागरिकता के कई साक्ष्य पेश किए थे.
हालांकि, एसओजी ने आमिर को रिहा नहीं किया और राशिदा ने जुलाई 2020 में गुजरात हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर आमिर को अदालत में पेश करने के लिए एसओजी सहायक पुलिस आयुक्त को निर्देश देने और उन्हें ‘अवैध हिरासत’ से रिहा करने के लिए निर्देश देने की मांग की.
जस्टिस सोनिया गोकानी और जस्टिस निरजार देसाई की पीठ ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि वह राष्ट्रीयता के पहलू पर बात नहीं करेंगे, क्योंकि यह बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका है.
पीठ ने तर्क दिया कि वह एसओजी प्रशासन द्वारा आमिर के खिलाफ पारित किए गए हिरासत के आदेश की वैधता, तर्कसंगतता और प्रक्रियात्मक औचित्य के पहलू पर ही गौर करेगी.
अदालत ने यह भी देखा कि प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत यह भी मांग करता है कि उक्त बंदी को सुनवाई का अवसर प्रदान किया जाए जहां अधिकारियों द्वारा ऐसे निरोध आदेश पारित किए जाते हैं.
फैसले में कहा गया, ‘राष्ट्रीयता के पहलू पर विचार किए बिना अगर कोई पुलिस उपायुक्त द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट को देखता है तो यह स्पष्ट है कि पूछताछ सिर्फ वीजा और पासपोर्ट तक ही सीमित थी. संबंधित शख्स (आमिर) को पहले दिन से ही अदालत के समक्ष पेश नहीं किया गया. आमिर और अन्य चार लोगों को एसओजी के डिटेंशन सेंटर में हिरासत में रखा गया और तभी से वे हिरासत में ही हैं.’
अदालत ने कहा, ‘ऐसे कई दस्तावेज हैं, जिन्हें (आमिर और उनके परिवार द्वारा भारतीय नागरिक होने के सबूत के तौर पर) अदालत के समक्ष पेश किया गया, लेकिन रिपोर्ट से यह सब गायब है. वर्तमान बंदी (आमिर) के माता-पिता से कोई पूछताछ नहीं की गई है. मां (रशीदा) और उसकी राष्ट्रीयता पर सवाल नहीं उठाया गया है और यहां तक कि (अधिकारियों द्वारा) संदेह भी नहीं किया गया है.’
अदालत ने कहा कि किसी शख्स की राष्ट्रीयता की जांच करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा प्रशासन को दी गईं शक्तियों का इस्तेमाल कानून के अनुरूप किए जाने की जरूरत है.
अदालत ने यह उल्लेख करते हुए कि आमिर दिहाड़ी मजदूर हैं और उन्हें इस आधार पर हिरासत में लिया गया कि वह बांग्लादेशी नागरिक हैं, और वह भी इसलिए क्योंकि वह एसओजी की गश्ती के दौरान उनके समक्ष वीजा और पासपोर्ट पेश नहीं कर सके.
अदालत ने पुलिस की स्वीकारोक्ति पर भी गौर किया कि आमिर की कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है.
अदालत ने यह भी कहा कि प्रशासन ने आमिर के परिजनों, उनके भाई-बहनों, उनकी पत्नी और उनके बच्चों के दस्तावेजों पर विचार नहीं किया और आमिर को उसकी राष्ट्रीयता साबित करने का कोई अवसर नहीं दिया गया.
अदालत द्वारा पूछताछ करने पर केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने पीठ को अवगत कराया कि विदेशी नागरिकों, विशेष रूप से बांग्लादेशी नागरिकों के मामले में निर्वासन के लिए संभावित समय अवधि चार से आठ साल के बीच हो सकती है.
इस पर अदालत ने स्पष्ट किया कि जब वह नागरिकता के मुद्दे पर नहीं जा रहा है. पीठ ने सुझाव दिया कि ‘विदेश मंत्रालय के स्तर पर निर्वासन के मुद्दे से निपटने वाले संबंधित प्राधिकरण द्वारा इस पहलू को आवश्यक गंभीरता से लिया जाना चाहिए’.
अदालत ने यह भी कहा कि उसे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल से ‘इस पहलू को सुव्यवस्थित करने और इसके उचित कार्यान्वयन, मानवीय गरिमा को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद है.
अदालत ने आगे कहा कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करने में गंभीर दोष देखा जाता है और आमिर को अपनी नागरिकता साबित करने का अवसर न मिलने के सीमित आधार पर अदालत ने अवैध/अनधिकृत नागरिकों को पकड़ने के लिए प्राधिकरण को सौंपी गईं बेलगाम शक्तियों को देखते हुए हस्तक्षेप करना उचित समझा.