कर्ज़ से परेशान किसानों की आत्महत्या के मामले थमते नहीं दिख रहे हैं. विभिन्न राज्यों के किसान लगातार आत्महत्याएं कर रहे हैं.
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के बड़गांव थाना क्षेत्र में एक किसान ने कथित रूप कर्ज़ के दबाव में आत्महत्या कर ली. वहीं मध्य प्रदेश के मुरैना में कर्ज़ से तंग आकर एक किसान ने खुदकुशी कर ली. ओडिशा के नवपाड़ा ज़िले में भी धान की फ़सल ख़राब होने के चलते एक किसान ने जान दे दी.
समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक, पुलिस अधीक्षक देहात विद्यासागर मिश्रा ने आज 4 अक्टूबर को बताया कि बड़गांव थाना के उमरी मजबता गांव निवासी सतेंद्र (50) पर बैंक का लाखों रुपये का कर्ज़ था. इस संबंध में भूमि विकास बैंक ने सतेंद्र से तकादा किया था जिससे वह मानसिक दबाव में आ गया.
उन्होंने कहा कि कर्ज़ के दबाव में आकर उसने 3 अक्टूबर की रात जहरीले पदार्थ का सेवन कर आत्महत्या कर ली. पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है और आगे की कार्रवाई कर रही है.
दूसरी तरफ मध्य प्रदेश के मुरैना में राकेश धाकड़ नाम के एक किसान कर्ज़ के चलते आत्महत्या कर ली. समाचार एजेंसी वार्ता के मुताबिक, मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के पहाड़गढ़ विकास खंड में आज 4 अक्टूबर को एक किसान ने कर्ज़ से तंग आकर जहरीला पदार्थ खाकर आत्महत्या कर ली.
पुलिस सूत्रों के अनुसार ग्राम धौंधा निवासी राकेश धाकड़ (33) ने कर्ज़ से तंग आकर जहरीला पदार्थ खा लिया जिससे उसकी मौत हो गई.
अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू के मुताबिक, ओडिशा के नवपाड़ा जिले के लारका गांव में जादूमणि बाग ने फसल खराब होने के चलते आत्महत्या कर ली. जादूमणि ने 2.5 एकड़ खेत में धान की रोपाई की थी, लेकिन कम बारिश के चलते फसल खराब हो गई. परिजनों के मुताबिक, फसल खराब होने से परेशान जादूमणि ने पेस्टिसाइड पी लिया जिससे मंगलवार को उनकी मौत हो गई.
लंबे समय से देश के कई हिस्सों में किसान लगातार आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन किसानों की कृषि से जुड़ी समस्याएं बनी हुई हैं. महाराष्ट्र और यूपी में हाल ही में किसानों की कर्ज़माफी की घोषणा के बावजूद दोनों राज्यों में किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं.
आंदोलन कर रहे किसानों की मांग है कि उन्हें फसलों का उचित मूल्य मिले, देश भर में न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू किया जाए, किसानों को खाद और बीज पर सब्सिडी दी जाए, सिंचाई और उपज खरीद की उचित व्यवस्था हो, एवं किसानों को कर्ज़ से सरकार मुक्ति दिलाए. हालांकि, सरकारें लगातार इन मांगों को नजरअंदाज कर रही हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)