पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर ज़िले में नौ विधानसभा क्षेत्र- गोरखपुर शहर, गोरखपुर ग्रामीण, सहजनवा, पिपराइच, कैम्पियरगंज, चौरी चौरा, चिल्लूपार, बांसगांव और खजनी हैं. बांसगांव और खजनी क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. इनमें से पांच- गोरखपुर ग्रामीण, सहजनवा, पिपराइच, कैम्पियरगंज, चौरी चौरा में निषाद समुदाय की अच्छी-ख़ासी संख्या है. चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्र में भी निषाद मतदाता ठीक-ठाक हैं.
गोरखपुर: समाजवादी पार्टी ने गोरखपुर जिले चौरी चौरा विधानसभा क्षेत्र में एकपायलट और कैम्पियरगंज सीट पर एक अभिनेत्री को मैदान में उतार कर चुनाव को बेहद दिलचस्प बना दिया है. ये दोनों विधानसभा क्षेत्र निषाद बहुल हैं. जिले के दो और निषाद बहुल सीटों पर पार्टी ने पिछले चुनाव में लड़ चुके प्रत्याशियों पर भरोसा जताया है.
गोरखपुर जिले में नौ विधानसभा क्षेत्र- गोरखपुर शहर, गोरखपुर ग्रामीण, सहजनवा, पिपराइच, कैम्पियरगंज, चौरी चौरा, चिल्लूपार, बांसगांव और खजनी हैं. बांसगांव और खजनी क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है.
जिले की नौ सीटों में से पांच- गोरखपुर ग्रामीण, सहजनवा, पिपराइच, कैम्पियरगंज, चौरी चौरा में निषाद समुदाय की अच्छी-खासी संख्या है. चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्र में भी निषाद मतदाता ठीक-ठाक हैं.
भाजपा की सहयोगी निषाद पार्टी को गोरखपुर जिले में सिर्फ एक सीट चौरी चौरा मिली है. इस सीट पर निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय कुमार निषाद के बेटे श्रवण निषाद चुनाव लड़ रहे हैं. गोरखपुर शहर सीट से खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चुनाव लड़ रहे है.
भाजपा ने नौ सीटों में से तीन पर क्षत्रिय, एक सीट पर सैंथवार, एक निषाद, दो ब्राह्मण प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे हैं. दो सुरक्षित सीटों में से खजनी सीट पर भाजपा प्रत्याशी बेलदार और बांसगांव सीट पर पासवान बिरादरी के हैं.
सपा ने नौ सीटों पर दो-दो सीट पर निषाद, ब्राह्मण और यादव प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे हैं. चौरी चौरा सीट पर उसने दलित समाज के पासवान बिरादरी के प्रत्याशी को टिकट दिया है. खजनी सुरक्षित सीट पर सपा प्रत्याशी बेलदार जाति के हैं तो बांसगांव सीट पर सपा प्रत्याशी जाटव समाज के हैं.
समाजवादी पार्टी ने गोरखपुर जिले की सभी नौ विधानसभा क्षेत्रों में अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए है. पिछले चुनाव में सपा को जिले की किसी भी सीट पर जीत नहीं मिली थी. सपा ने इस बार सभी सीटों पर जातीय समीकरणों को साधते हुए प्रत्याशी खड़े किए हैं. सपा के चार प्रत्याशी दूसरे दलों से हाल में ही सपा में शामिल हुए थे.
चिल्लूपार विधानसभा सीट से सपा ने निवर्तमान विधायक विनय शंकर तिवारी को चुनाव मैदान में उतारा है. तिवारी पूर्वांचल पिछले चुनाव में बसपा से लड़कर जीते थे. इस चुनाव में वे सपा में शामिल हो गए. उनके पिता पूर्व मंत्री हरिशंकर तिवारी इस सीट से छह बार चुनाव जीत चुके हैं.
इस सीट पर भाजपा से पूर्व मंत्री राजेश त्रिपाठी चुनाव लड़ रहे हैं. वे दो बार इस सीट से चुनाव जीत चुके हैं. बसपा ने यहां से पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह उर्फ पहलवान सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है.
गोरखपुर ग्रामीण से पूर्व विधायक विजय बहादुर यादव को मैदान में उतारा गया है. यादव इस सीट पर भाजपा से दो बार विधायक रह चुके हैं. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में उनकी योगी आदित्यनाथ से अनबन हो गई. इसके बाद उन्होंने भाजपा छोड़ दी और सपा में शामिल हो गए.
सपा में शामिल होने के बाद उन्होंने अपने भाई को जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव लड़वाया, लेकिन उनका नामांकन खारिज हो गया. इससे नाराज होकर अपनी ही सरकार के खिलाफ धरने पर बैठ गए थे.
पिछला चुनाव वह सपा के टिकट पर लड़े थे और कड़ी टक्कर में भाजपा प्रत्याशी विपिन सिंह से हारे थे. इस चुनाव में निषाद पार्टी के अध्यक्ष डाॅ. संजय कुमार निषाद भी लड़े और 34,901 मत प्राप्त कर तीसरे स्थान पर रहे.
सहजनवा सीट पर यशपाल रावत को दोबारा चुनाव मैदान में उतारा गया है. वे 2007 के चुनाव में पहली बार विधायक बने थे, लेकिन बाद के दो चुनाव वे हारे हैं.
उनके पिता शारदा प्रसाद रावत इस सीट से 1974, 1977 और 1989 में विधायक रहे. वे रामनरेश यादव मंत्रिमंडल में सिंचाई राज्य मंत्री रहे. यशपाल रावत की मां प्रभा रावत 1993 में सहजना से विधायक चुनी गई थीं.
खजनी सुरक्षित सीट पर सपा ने रूपावती बेलदार को प्रत्याशी बनाया गया. रूपावती बेलदार पिछला चुनाव सपा से लड़ी थीं और हार गई थीं. भाजपा ने इस सीट पर मंत्री श्रीराम चौहान को चुनाव मैदान में उतारा है. श्रीराम चौहान पिछला चुनाव संतकबीरनगर के धनघटा से जीते थे, लेकिन इस बार उनकी सीट बदल दी गई हैं.
यहां के निवर्तमान विधायक संत प्रसाद का टिकट काट दिया गया है. बसपा से इस सीट पर पूर्व मंत्री सदल प्रसाद के भाई विद्यासागर चुनाव लड़ रहे हैं.
बांसगांव सुरक्षित सीट से डॉ. संजय कुमार को प्रत्याशी बनाया गया है. डॉ संजय पेशे से डॉक्टर हैं. वे वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़े और हार गए थे. इसके बाद वे सपा में चले गए.
गोरखपुर शहर सीट से सपा ने भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे उपेंद्र दत्त शुक्ल की पत्नी सुभावती शुक्ल को चुनाव मैदान में उतारा है. उपेंद्र दत्त शुक्ल की पिछले वर्ष निधन हो गया था. वे 2018 का गोरखपुर से लोकसभा उपचुनाव भाजपा से लड़े थे लेकिन हार गए थे.
उपेंद्र दत्त शुक्ल कौड़ीराम विधानसभा (परिसीमन के बाद अब गोरखपुर ग्रामीण ) से तीन बार चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं पाए. दो बार तो पार्टी ने टिकट भी काट दिया गया.
2005 में जब उपचुनाव में टिकट कट गया और यहां से भाजपा ने योगी आदित्यनाथ के करीबी शीतल पांडेय को चुनाव लड़ा दिया तो वे बगावत कर निर्दल प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ गए. इस चुनाव में दोनों हार गए.
पिपराइच में सपा ने फिर से अमरेंद्र निषाद को टिकट दिया है. वे कद्दावर निषाद नेता जमुना निषाद के बेटे हैं. जमुना निषाद गोरखपुर संसदीय क्षेत्र से योगी आदित्यनाथ के खिलाफ तीन बार चुनाव लड़े. वे चुनाव जीते तो नहीं लेकिन दो बार उन्होंने कड़ी टक्कर दी थी.
वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में वे बसपा के टिकट पर पिपराइच से विधायक बने. उन्हें मत्स्य एवं सैनिक कल्याण राज्यमंत्री बनाया गया.
एक वर्ष बाद 2008 में बलात्कार के एक मामले में पुलिस द्वारा कार्रवाई नहीं किए जाने को लेकर यमुना निषाद महराजगंज कोतवाली पहुंचे और वहां पुलिस से झड़प के दौरान गोली चल गई और एक पुलिसकर्मी की मौत हो गई.
इस मामले में उन पर केस दर्ज हुआ और उन्हें मंत्री पद छोड़ना पड़ा. वर्ष 2010 में एक सड़क हादसे में उनकी मौत हो गई. उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी राजमती निषाद सपा से चुनाव लड़ीं और जीत कर विधायक बनीं. इसके बाद 2012 में वह दोबारा जीतीं.
कैम्पियरगंज विधानसभा क्षेत्र से सपा ने भोजपुरी फिल्मों और टीवी सीरियल की अभिनेत्री काजल निषाद को चुनाव मैदान में उतारा है. काजल निषाद 2002 से फिल्म इंडस्ट्री में हैं.
काजल निषाद ने ‘चमेली’, ‘लापतागंज’, ‘इश्क का रंग सफेद’ जैसे टीवी सीरियलों में काम किया है. उन्होंने गुजराती, मराठी टीवी सीरियल के साथ-साथ कई भोजपुरी फिल्मों में भी अभिनय किया है.
काजल निषाद के पति संजय कुमार निषाद फिल्म निर्माता हैं. वे गोरखपुर के भौवापार के रहने वाले हैं. वे 20 वर्ष पहले मुंबई चले गए और इंटीरियर का काम करने लगे. बाद में उन्हें न्यूज एजेंसी में भी काम किया. फिर एक्टिंग सीखी. बाद में उन्होंने भोजपुरी फिल्में बनानी शुरू कीं. उन्होंने तीन भोजपुरी फिल्में- ‘मुन्ना भइया’, ‘लोहा पहलवान’ और ‘टकराव’ बनाई हैं.
काजल निषाद राजनीति में नई नहीं हैं. उन्होंने 2012 का चुनाव गोरखपुर ग्रामीण क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर लड़ा था. वे 17,636 वोट पाकर चौथे स्थान पर रही थीं. चुनाव के दौरान उन पर हमला भी हुआ था. इस घटना में बसपा प्रत्याशी रामभुआल निषाद के खिलाफ केस दर्ज हुआ था. काजल निषाद के खिलाफ भी केस दर्ज हुआ था.
काजल निषाद पिछला चुनाव नहीं लड़ी थीं. कुछ महीने पहले वह कांग्रेस छोड़कर सपा में शामिल हो गईं और कैम्पियरगंज क्षेत्र से चुनाव अभियान शुरू कर दिया. उनका मुकाबला पूर्व मंत्री भाजपा प्रत्याशी फतेह बहादुर सिंह से है. पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के बेटे फतेह बहादुर सिंह छह बार विधायक चुनाव जीत चुके हैं. वे बसपा सरकार में वन मंत्री भी रहे हैं.
कैम्पियरगंज विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस और बसपा ने भी निषाद जाति के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. बसपा से चंद्र प्रकाश निषाद और कांग्रेस से सुरेंद्र निषाद चुनाव लड़ रहे हैं.
कैम्पियरगंज में पिछ़ड़ी जातियों में निषाद, यादव और सैंथवार अच्छी-खासी संख्या में हैं. पिछले चुनाव में यहां निषाद पार्टी के प्रत्याशी मो. मैनुद्दीन को 10,935 मत मिले थे. बसपा से चुनाव लड़े आनंद निषाद को 39,243 मत मिले थे और वे तीसरे स्थान पर थे. सपा-कांग्रेस गठबंधन की प्रत्याशी चिंता यादव 58782 मत प्राप्त कर दूसरे स्थान पर रहीं.
चौरी चौरा विधानसभा क्षेत्र से सपा ने एकदम नया चेहरा चुनाव मैदान में उतारा है. यहां से प्रत्याशी बनाए गए कैप्टन बृजेश चंद्र लाल गो एयर में पायलट हैं. उनके पिता हरिलाल पासवान बैंक की नौकरी से रिटायर होने के बाद राजनीति में आए और दो बार चौरीचौरा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े.
वर्ष 2007 का चुनाव उन्होंने बसपा के टिकट से लड़ा और दूसरे स्थान पर रहे. वर्ष 2012 का चुनाव उन्होंने पीस पार्टी से लड़ा. इस बार उन्हें सिर्फ 9,438 मत ही मिले थे.
कैप्टन बृजेश की मां ब्लाक प्रमुख रह चुकी हैं. चार भाइयों में सबसे बड़े बृजेश 20 वर्ष से पायलट हैं. उन्होंने एयर इंडिया से अपनी सर्विस शुरू की थी. वर्ष 2005 में वे गो एयर में आ गए. उन्हें 20 हजार घंटे उड़ान का अनुभव है. उनके दो और भाई भी पायलट हैं, जबकि एक भाई पीसीएस अधिकारी हैं.
कैप्टन बृजेश ने बताया कि वे वर्ष 2019 में पूर्व मुख्यमंत्री एवं सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के संपर्क में आए थे. अखिलेश यादव उन्हें बराबर राजनीति में आने के लिए कह रहे थे.
उनके अनुसार, वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने उन्हें बांसगांव संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ने को कहा, लेकिन चुनाव में सपा का बसपा से गठबंधन हो गया और बांसगांव सीट बसपा के खाते में चली गई.
उन्होंने बताया कि कुछ रोज पहले अखिलेश यादव ने उन्हें फोन कर चौरी चौरा से चुनाव लड़ने को कहा तो वे तुरंत राजी हो गए, क्योंकि उन्होंने राजनीति में आने का मन बना लिया था. उनका कहना है कि चौरी चौरा का औद्योगिक विकास करना चाहते हैं, ताकि युवाओं को रोजगार मिले.
कैप्टन का मुकाबला निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय कुमार निषाद के छोटे बेटे श्रवण निषाद से होना है. श्रवण निषाद पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं.
श्रवण के बड़े भाई प्रवीण कुमार निषाद संतकबीर नगर से सांसद हैं. ये वही प्रवीण कुमार निषाद हैं, जिन्होंने वर्ष 2018 के उपचुनाव में गोरखपुर संसदीय क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी उपेंद्र दत्त शुक्ल को हरा दिया था.
पिछले चुनाव में इस सीट से भाजपा की संगीता यादव चुनाव जीती थीं. इसके पहले 2012 का चुनाव बसपा के जय प्रकाश निषाद जीते थे. निषाद अब भाजपा में हैं. भाजपा में आने के बाद उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनाया गया हैं.
चौरी चौरा क्षेत्र से बसपा ने वीरेंद्र पांडेय और कांग्रेस ने जितेंद्र पांडेय को उम्मीदवार बनाया है.
चौरी चौरा में पिछड़ी जातियों में निषाद और यादव की अच्छी-खासी संख्या है. दलितों में पासी बिरादरी के लोग सर्वाधिक हैं.
वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर निषाद पार्टी के प्रत्याशी ईश्वर चंद्र जायसवाल को 13,048 मत मिले थे. बसपा से जय प्रकाश निषाद चुनाव लड़े थे और 37,478 मत प्राप्त कर तीसरे स्थान पर रहे थे. सपा प्रत्याशी मनुरोजन यादव 42,203 मत प्राप्त कर दूसरे स्थान पर थे.
(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)