साइबर सिक्योरिटी फर्म सेंटिनलवन के अमेरिकी विशेषज्ञों के निष्कर्ष बताते हैं कि एल्गार परिषद मामले में गिरफ़्तार सामाजिक कार्यकर्ता रोना विल्सन को एक दशक के लंबे प्रयास के बाद निशाना बनाया गया. इससे पहले डिजिटल फॉरेंसिक फर्म आर्सेनल कंसल्टिंग ने विल्सन के ख़िलाफ़ पेश इलेक्ट्रॉनिक सबूतों का अध्ययन करने के बाद कहा था कि उनके आईफोन में पेगासस के साक्ष्य मिले थे.
नई दिल्लीः एक नई रिपोर्ट से पता चला है कि एल्गार परिषद में मामले में गिरफ्तार किए गए कार्यकर्ता रोना विल्सन को दो समूहों ने निशाना बनाकर उनके सिस्टम की हैकिंग की थी.
यह नई रिपोर्ट पिछले साल मैसाचुसेट्स स्थित डिजिटल फॉरेंसिक फर्म आर्सेनल कंसल्टिंग की उस रिपोर्ट के बाद आई है, जिसमें कहा गया कि एक साइबर हमलावर ने रोना विल्सन की गिरफ्तारी से कम से कम 22 महीने पहले उनके कंप्यूटर में सेंधमारी की और हैकिंग के जरिये उनके कंप्यूटर में 10 आपत्तिजनक पत्र प्लांट किए.
इस साल जुलाई महीने में पेगासस प्रोजेक्ट के तहत द वायर ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि पेगासस के जरिये जिन लोगों को सबसे पहले निशाना बनाया गया, उनमें विल्सन भी थे.
वह एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार किए गए लोगों में से एक हैं.
बीते साल द वायर ने आर्सेनल कंसल्टिंग के निष्कर्षों के आधार पर अपनी रिपोर्ट में बताया था कि विल्सन छह जून 2018 को अपनी गिरफ्तारी से पहले लगभग एक साल तक सर्विलांस और सेंधमारी कर उनके कंप्यूटर में आपत्तिजनक पत्र प्लांट करने के शिकार थे.
आर्सेनल कंसल्टिंग ने विल्सन के वकीलों के साथ मिलकर एल्गार परिषद मामले में उनके खिलाफ पेश किए गए इलेक्ट्रॉनिक सबूतों का अध्ययन करने के बाद कहा कि उन्हें विल्सन के आईफोन 6एस में पेगासस के साक्ष्य मिले थे.
सेंटिनलवन के निष्कर्ष
रिपोर्ट के अनुसार, साइबर सिक्योरिटी फर्म सेंटिनलवन के अमेरिकी विशेषज्ञों के निष्कर्षों से पता चला है कि एक दशक के लंबे प्रयास के बाद विल्सन को निशाना बनाया गया था.
बता दें कि सेंटिनलवन की रिपोर्ट पर ही द वॉशिगटन पोस्ट की रिपोर्ट आधारित थी.
द वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, विल्सन को निशाना बनाने वाले दो समूहों में से एक की पहचान ‘साइडविंडर’ के रूप में की गई, जो चीन और पाकिस्तान में सैन्य ठिकानों के खिलाफ साइबर जासूसी अभियानों के दस्तावेजीकरण से जुड़ा हुआ है. इसकी गतिविधियां पाकिस्तान और चीन में सैन्य ठिकानों और सरकार के खिलाफ मानी जाती है.
हालांकि, सेंटिनलवन ने विल्सन की सेंधमारी करने वाले दूसरे हैकर की पहचान नहीं की लेकिन इसे ‘मोडिफाइडएलिफेंट’ का नाम देते हुए कहा कि इसकी गतिविधियां भारत के हितों के अनुरूप हैं.
एक प्रमुख शोधकर्ता और सेंटिनलवन रिपोर्ट को तैयार करने वालों में से एक युआन आंद्रेस ग्वेरेरो सादे ने कहा, ‘दो अलग-अलग समूहों का एक समान लक्ष्य है, जिससे पता चलता है कि उन्हें किसी एक ही इकाई ने यह काम करने को कहा था.’
सेंटिनलवन की रिपोर्ट में कहा गया कि विल्सन को कई ईमेल मिले थे, जिनमें से कई उनके परिचितों के थे और इनमें कई बार लेख होते थे, जिनमें कंप्यूटर में सेंधमारी के लिए मालवेयर प्लांट किया गया होता था.
‘मोडिफाइडएलिफेंट’ ने ‘हैंगओवर’ नाम के हैकिंग समूह के साथ कुछ वेब डोमेन शेयर किए थे, जिसके बदले यूरोप, अमेरिका और पाकिस्तान में कारोबार और राष्ट्रीय सुरक्षा हितों को निशाना बनाया गया था.
बता दें कि एल्गार परिषद मामले में एनआईए और पुणे पुलिस ने 15 कार्यकर्ताओें, शिक्षाविदों और वकीलों को गिरफ्तार किया था. इनमें से सबसे उम्रदराज फादर स्टेन स्वामी थे, जिनका बीते साल जुलाई में निधन हो गया था.
सरकार के आलोचकों ने इस मामले में एनआईए के दावों को खारिज करते हुए इस जांच को अधिकार कार्यकर्ताओं और सरकार से असहमति जताने वालों के खिलाफ विचहंट करार दिया था.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)