गुजरात दंगों में षड्यंत्र के आरोप में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को विशेष जांच दल द्वारा ‘क्लीनचिट’ देने के फैसले को ज़ाकिया ने गुजरात हाईकोर्ट में दी थी चुनौती.
गुजरात दंगों के बीच गुलबर्गा सोसाइटी हत्याकांड में कांग्रेस नेता एहसान जाफ़री की पत्नी ज़ाकिया जाफ़री को गुजरात उच्च न्यायालय ने मामले में नरेंद्र मोदी और 61 अन्य लोगों के दंगों में कथित तौर पर आपराधिक भूमिका को लेकर नए सिरे से जांच की अनुमति दे दी है.
ज़ाकिया की याचिका में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और 61 अन्य लोगों के ख़िलाफ़ गुजरात दंगों के षड्यंत्र में शामिल होने का आरोपी बनाने की मांग की गई थी.
मामले में उच्चतम न्यायालय की ओर गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) की क्लोज़र रिपोर्ट के ख़िलाफ़ ज़ाकिया ने साल 2014 में उच्च न्यायालय का रुख किया था. ज़ाकिया ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि साल 2002 के दंगे एक बड़े षड्यंत्र का हिस्सा है जिसमें नरेंद्र मोदी और दूसरे लोग भी शामिल थे.
एसआईटी ने साल 2012 में ट्रायल कोर्ट को अपनी क्लोज़र रिपोर्ट सौंपी थी. क्लोज़र रिपोर्ट में कहा गया था कि जांच एजेंसी को आरोपी लोगों के ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं मिला इसलिए वह नरेंद्र मोदी और दूसरे लोगों को ख़िलाफ़ कोई केस नहीं चला सकती.
मामले की नए सिरे से जांच कराने के लिए ज़ाकिया ने मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत में अपील की लेकिन 2013 में उनकी यह अपील ख़ारिज कर दी गई.
मामले की सुनवाई के दौरान मजिस्ट्रेट बीजी गनात्रा ने कहा, सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित एसआईटी मामले की जांच कर रही हैं इसलिए मामले की नए सिरे से जांच के आदेश देने का अधिकार उनके पास नहीं है. इस वजह से ज़ाकिया ने गुजरात उच्च न्यायालय में अपनी याचिका दाख़िल की जिसकी निर्णायक सुनवाई साल 2015 में शुरू हुई.
गुरुवार को उच्च न्यायालय ने एसआईटी की क्लोज़र रिपोर्ट की वैधता को बरक़रार रखा और ज़ाकिया के आरोपों को ख़ारिज कर दिया.
हालांकि गुजरात उच्च न्यायालय ने ज़ाकिया के आरोपों को लेकर किसी अन्य अदालत में मामले की नए सिरे से जांच कराने की अनुमति दे दी और ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट दिया जिसने मामले की नए सिरे से जांच की संभावना को यह मानते हुए ख़ारिज कर दिया कि एसआईटी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच कर रही है.
इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में न्यायाधीश सोनिया गोकानी ने कहा, ‘गुजरात दंगा मामले की अतिरिक्त जांच को लेकर ट्रायल कोर्ट ने ख़ुद को सीमित कर दिया कि ऐसा आदेश नहीं दिया जा सकता. निचली अदालत का यह आदेश हस्तक्षेप करने योग्य है. इसलिए याचिकाकर्ता ने मामले को संबंधित अदालत में उठाया, जो कि मजिस्ट्रेट अदालत, उच्च न्यायालय की पीठ और सुप्रीम कोर्ट है.’
इस तरह से गुजरात उच्च न्यायालय का फैसला ज़ाकिया को सुप्रीम कोर्ट तक में अपील करने की अनुमति देता है.
द वायर से बातचीत में मामले की एक अन्य याचिकाकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड ने कहा, ‘26 दिसंबर 2013 के मजिस्ट्रेट बीजी गनात्रा के आदेश को चुनौती देने वाली ज़ाकिया जाफ़री की अपील को गुजरात उच्च न्यायालय ने किसी अन्य अदालत में जांच की अपील करने की अनुमति दे दी है. न्यायाधीश सोनिया गोखानी ने यह भी स्पष्ट किया है कि निचली अदालत इस बात को लेकर गलत थी कि मजिस्ट्रेट मामले की अतिरिक्त जांच के आदेश नहीं दे सकता.’
साल 2002 में गुजरात दंगों के दौरान गुलबर्ग सोसाइटी में हुए नरसंहार में एहसान जाफ़री समेत 69 लोग मारे गए थे. ज़ाकिया ने आरोप लगाया था कि पूर्व सांसद एहसान जाफ़री द्वारा पुलिस को बार-बार फोन करने के बावजूद दंगा रोकने के लिए कोई नहीं आया. लोगों को घरों से बाहर निकालकर मारा गया और ज़िंदा जला दिया गया था.
एसआईटी द्वारा मामले की क्लोज़र रिपोर्ट में नरेंद्र मोदी और दूसरे हिंदूवादी नेताओं को ‘क्लीन चिट’ देने के बाद से इसकी काफी आलोचना की गई थी. कहा गया कि इस क्लोज़र रिपोर्ट में कई झोल हैं.
2012 की एसआईटी की क्लोज़र रिपोर्ट के निष्कर्ष साल 2010 में इसी जांच एजेंसी द्वारा सुप्रीम कोर्ट को सौंपी गई रिपोर्ट, जिसमें नरेंद्र मोदी और अन्य हिंदुवादी नेताओं के ख़िलाफ़ तमाम कड़े शब्दों का उपयोग किया गया था, से पूरी तरह अलग थे.
इस संदर्भ में दोनों ही रिपोर्ट में एसआईटी के अलग-अलग निष्कर्षों पर वकीलों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और विपक्षी दल की नेताओं ने जांच एजेंसी की निष्पक्षता पर सवाल उठाए थे.
जहां एसआईटी की क्लोज़र रिपोर्ट को भाजपा ने नरेंद्र मोदी को ‘क्लीन चिट’ मिलने के रूप में प्रचारित किया वहीं दूसरी ओर तमाम लोगों एक ही जांच एजेंसी द्वारा अलग-अलग निष्कर्ष देने के लिए एसआईटी की आलोचना की.
साल 2016 में 14 साल के लंबे इंतज़ार के बाद विशेष अदालत ने गुलबर्ग सोसायटी मामले के 66 आरोपियों में से 24 को दोषी क़रार दिया, जबकि 36 लोगों को छोड़ दिया गया जिसमें से दो मुख्य आरोपी- भाजपा पार्षद बिपिन पटेल और तत्कालीन डीएसपी केजी एर्डा भी शामिल थे. फैसला आने तक मामले के छह आरोपियों की मौत हो चुकी थी.