ग्राउंड रिपोर्ट: साल 2014 में तत्कालीन केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने सांसद ग्राम योजना की तर्ज पर अपने संसदीय क्षेत्र झांसी की पहुज नदी को गोद लेते हुए इसके संरक्षण का बीड़ा उठाया था, लेकिन आज वही पहुज नदी बांध निर्माण, प्रदूषण व अतिक्रमण के चलते अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है.
झांसी: बात करीब सात साल से अधिक पुरानी है. तब उत्तर प्रदेश की झांसी लोकसभा सीट से उमा भारती सांसद हुआ करती थीं. वे उस समय केंद्र की मोदी सरकार में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री भी थीं.
इस हैसियत से जब वे वर्ष 2014 में झांसी पहुंची तो उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सांसद ग्राम योजना का हवाला देते हुए कहा था, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सांसद ग्राम योजना के तहत गांव गोद लेने की योजना पर हमने अमल किया है, लेकिन नदियों के स्वरूप को बदलने के लिए देश के हर सांसद को अपने-अपने क्षेत्र की एक नदी को भी गोद लेना चाहिए.’
इस घोषणा को साकार रूप देते हुए सबसे पहले उन्होंने ही एक नदी गोद ली. उमा भारती ने अपने संसदीय क्षेत्र झांसी की पहुज नदी को गोद लेकर उसे स्वच्छ बनाने, उसका मूल स्वरूप लौटाने और उसके संरक्षण का संकल्प लिया. साथ ही, नदी की सफाई के लिए एक विशेष कार्ययोजना बनाने की बात कही.
बता दें कि पहुज नदी को प्राचीन काल में पुष्पवती के नाम से जाना जाता था, जो झांसी जिले के समीप स्थित बैदोरा गांव से निकलकर 200 किलोमीटर का सफर तय करके जालौन जिले में काली सिंध में समाहित हो जाती है. उमा भारती इसे वापस पुष्पवती बनाना चाहती थीं.
लेकिन, वर्तमान में यह नदी अपनी दुर्दशा पर आंसू भी नहीं बहा सकती क्योंकि नदी के नाम पर दूर-दूर तक सिर्फ जलकुंभियां ही नजर आती हैं, पानी की नमी तक का दूर-दूर तक नामोनिशां नहीं दिखता. अलग-अलग स्थानों पर जाकर नदी का मुआयना करने पर पाते हैं कि स्थान भले ही अलग हों लेकिन नदी का स्वरूप हर जगह समान नज़र आता है, जलकुंभियों से पटी पड़ी नदी किसी घास भरे सपाट मैदान सरीखी नजर आती है.
इसके साथ ही नदी के मुहाने पर मकान और कॉलोनियों का निर्माण साफ देखा जा सकता है. स्थानीय पत्रकारों और आम लोगों का कहना है कि ये निर्माण अवैध तरीके से नदी के डूब क्षेत्र में किए गए ऐसे अतिक्रमण हैं जो शासन-प्रशासन की शह पर हुए हैं, जिससे कई जगहों पर नदी का स्वरूप नाले सरीखा हो गया है.
सबसे पहले द वायर ने झांसी-शिवपुरी राजमार्ग स्थित उस पहुज घाट का दौरा किया जिसका निर्माण उमा भारती ने नदी गोद लेने के करीब चार सालों बाद अपनी सांसद निधि से कराया था.
उस घाट की दुर्दशा देखने लायक है. हर ओर सिर्फ कचरे के ढेर दिखाई पड़ते हैं, रख-रखाव के अभाव में घाट टूट चुके हैं और घाट से लगी ज़मीन पर गहरे-गहरे गड्ढे बन गए हैं, जिनमें कूड़ा-कचरा भरा हुआ है. यहां भी जलकुंभियों से पटी नदी पहली नजर में कोई हरा-भरा खेत या हरी घास का मैदान नज़र आती है, जिसके आस-पास दीवारें और इमारतें खड़ी हुई हैं.
इसके बाद हम झांसी के अलग-अलग इलाकों में पहुंचे जहां से होकर नदी गुजरती है, लेकिन हर जगह हालात कमोबेश समान ही थे. शायद ही ऐसी कोई जगह मिली हो जहां नदी से सटे पक्के निर्माण न खड़े हों या जलकुंभियां नदारद हों.
बुंदेलखंड निर्माण मोर्चा के अध्यक्ष भानु सहाय द वायर को बातचीत में बताते हैं कि जब उमा भारती ने पहुज को गोद लिया तो लोगों को लगा कि अब नदी के दिन बदल जाएंगे, क्योंकि तब उमा भारती गंगा जैसी बड़ी नदी की सफाई का बीड़ा उठाए हुए थीं इसलिए लोगों को उम्मीद थी कि छोटी नदी की काया तो वे आसानी से पलट देंगी.
पहुज की दुर्दशा बयां करते हुए भानु आगे कहते हैं, ‘लेकिन इस नदी के इतने बुरे हालात तो तब भी नहीं थे, जब उन्होंने इसे गोद लिया था. अब पहुज का पानी डेड वॉटर हो गया है, जिसे न तो पी सकते हैं और न ही उसका इस्तेमाल कृषि में कर सकते हैं. नदी के घाटों पर उतरकर देखो तो पानी में इतनी बदबू आती है कि सिर चकरा जाए. वहीं, पहुज का पानी बहकर उन्नाव बालाजी के उस कुंड में पहुंचता है जिसमें नहाने से लोगों के चर्म रोग दूर हो जाते थे, लेकिन आज वहां का पानी काला पड़ चुका है. लोग फिर भी आस्था के चलते नहाते हैं और उल्टा चर्म रोग साथ ले जाते हैं.’
‘जल जोड़ो जन जोड़ो’ अभियान के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह बताते हैं कि पहुज नदी एक वर्षा आधारित मौसमी नदी है. इसका वाटर शेड क्षेत्र और जल संग्रहण क्षेत्र काफी बड़ा है. जिससे बारिश होने पर यह नदी खूब पानी लेकर आती है. इस नदी पर दो बांध बने हैं. एक ब्रिटिश शासन में बना था और एक नया बना है.
संजय बताते हैं, ‘किसी भी नदी का प्रवाह बने रहना जरूरी है, लेकिन पहुज के मामले में बांध से पानी रोक लिया जाता है और नदी में कम छोड़ा जाता है, जिससे उसका प्रवाह खत्म हो जाता है और प्रवाह के अभाव में नदी में पानी ठहरने के चलते जलकुंभी आदि पनपने लगते हैं.’
साथ ही वे बताते हैं कि पहुज के मामले में सबसे भयावह यह रहा कि इसके बाढ़ क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हुआ है. वे कहते हैं, ‘इतना अधिक निर्माण किया गया है कि नदी के दोनों ओर जो भी झरने और रिसाव वाली जगह थीं, उन तक को बंद कर दिया गया. जिसके चलते आज नदी के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा है.’
भानु कहते हैं, ‘अतिक्रमण वही कर सकता है, जिसे सरकार और उससे जुड़े नेताओं का आशीर्वाद प्राप्त हो. जब सरकार ही अतिक्रमण कराएगी, तो फिर हटाएगा कौन? इसलिए एक बार अतिक्रमण हो गया तो फिर वो हटता नहीं है.’
हालांकि, झांसी सदर (जहां से पहुज नदी होकर गुजरती है) के भाजपा विधायक रवि शर्मा अतिक्रमण वाली बात को गलत बताते हैं.
उनका कहना है, ‘नदी के कैचमेंट एरिया में जो भी अतिक्रमण था, उसे हमने अपने पंचवर्षीय कार्यकाल (2017-22) में तुड़वा दिया है और नदी की नापतोल हो चुकी है. ऐसा एक भी स्थान नहीं है, जहां अतिक्रमण हुआ हो.’
साथ ही उनका दावा है कि अगली पंचवर्षीय (2022-27) योजना में पहुज नदी को उसके पुराने स्वरूप में पहुंचा दिया जाएगा.
लेकिन, उनके दावों के इतर कुछ स्थानीय पत्रकार अतिक्रमण संबंधी कई उदाहरण दिखाते हैं और झांसी विकास प्राधिकरण (जेडीए) एवं नगर निगम की कार्यशैली पर सवाल उठाते हैं.
जब जेडीए उपाध्यक्ष सर्वेश कुमार दीक्षित से इस संबंध में बात की तो उन्होंने किसी भी प्रकार के अतिक्रमण की जानकारी न होने की बात कही और कहा कि यह जानकारी नगर निगम और सिंचाई विभाग से लीजिए. सिंचाई विभाग के मुख्य अभियंता राजपाल सिंह ने चुनावी व्यस्तताओं का हवाला देकर बात करने से मना कर दिया. साथ ही कहा कि ‘जो भी बात करेंगे, चुनाव बाद आमने-सामने बैठकर करेंगे. फोन पर सारी बातें नहीं कर सकते.’
वहीं, झांसी कलेक्टर ने भी चुनावी व्यस्तताओं का हवाला देकर बात करने से इनकार कर दिया.
इसके विपरीत, झांसी से भाजपा के महापौर रामतीर्थ सिंघल ने नगर निगम का पक्ष रखते हुए अतिक्रमण की बात स्वीकारते हुए कहा, ‘इसको लेकर हम प्रयासरत हैं. हमें सामूहिक रूप से काम करना होगा.’
उन्होंने आगे कहा, ‘नदी सिंचाई विभाग के क्षेत्राधिकार में आती है, इसलिए उसे भी देखना होगा कि नदी के जलभराव क्षेत्र में अनावश्यक अतिक्रमण न हों और जेडीए को भी ऐसे निर्माणों पर नजर रखनी होगी, साथ में हम (नगर निगम) भी देखेंगे. हम तीनों संस्थाएं मिलकर इस ओर ध्यान देंगे कि भविष्य में यह फिर न हो. हम इस ओर चिंतित हैं कि नदी का जलभराव क्षेत्र जल प्रवाह के लिए मुक्त रहे.’
झांसी लोकसभा में उमा भारती की विरासत संभालने वाले भाजपा सांसद अनुराग शर्मा से भी संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उनकी ओर से कोई भी प्रतिक्रिया नहीं आई.
पहुज नदी बबीना विधानसभा से भी होकर गुजरती है. बबीना विधायक राजीव परीछा की तरफ से भी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.
झांसी के वरिष्ठ पत्रकार प्रेम कुमार गौतम का मानना है कि उमा भारती ने नदी के संरक्षण और उसका मूल स्वरूप लौटाने का वादा पूरा नहीं किया, वे इस मामले में असफल साबित हुईं. उनके कार्यकाल में न गंगा का उद्धार हुआ और न ही अपने द्वारा गोद ली गई पहुज नदी का वे उत्थान कर पाईं.
वे कहते हैं, ‘उत्थान के नाम पर सिर्फ पहुज नदी पर बने पुल के दोनों ओर जालियां लगा दी गईं, ताकि लोग कचरा न फेंक सकें. लेकिन, नदी के पानी में गंदगी जाली लगाकर रोकी जा सकती है क्या?’
वहीं, स्थानीय प्रशासन की पहुज नदी के उत्थान को लेकर योजनाओं की बात करें तो रामतीर्थ सिंघल बताते हैं, ‘पहुज नदी के पुल के ऊपर दोनों ओर हमने ऊंचाई तक ग्रिल (जाली) लगवाई हैं, ताकि लोग कचरा न फेंक सकें. वहीं नदी में गिरने वाले शहर के नालों का पानी शुद्ध करने के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) के टेंडर हो गए हैं और जल्द ही काम शुरू हो जाएगा. बाकी जैसी जरूरत होगी, वह हम भविष्य में करेंगे.’
सर्वेश कुमार भी दावा करते हैं कि जेडीए भी पहुज के विकास के लिए एक बड़ी परियोजना पर काम कर रहा है, जो चुनाव आचार संहिता के चलते रुक गया है.
वहीं, रवि शर्मा का कहना है, ‘जैसे ही एसटीपी के जरिये नालों के पानी का शुद्धिकरण हो जाएगा तो नदी स्वाभाविक रूप से ठीक होने लगेगी. उसके बाद पहुज के सौंदर्यीकरण का अभियान चलाया जाएगा. वृक्षारोपण करेंगे और पहुज बांध पर वॉटर स्पोर्ट की स्थापना का हमारा संकल्प है.’
लेकिन, इन सभी दावों के बीच संजय सिंह बताते हैं, ‘पहुज भारत की एक दुर्लभ नदी है. इसकी भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि इसके किनारों पर बड़े पैमाने पर पातालतोड़ कुएं हैं, जिनसे स्वत: ही नदी के किनारों पर पानी निकलता रहता है. यह विलक्षण गुण बस पहुज में ही है. ऐसे किनारों वाली भारत में कोई और नदी नहीं है. इस दृष्टि से यदि इसका रखरखाव किया जाए तो यह अपने-आप में एक अनोखी नदी होगी. इसके साथ बहुत अच्छे फैक्टर जुड़े हुए हैं. बहुत पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध है.’
वे आगे कहते हैं, ‘जब भी दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ वैज्ञानिक ढंग से नदी के संरक्षण का प्रयास होगा तो वह जिंदा हो जाएगी और उसके लिए सबसे पहले जरूरत है आर्टीजियन को नुकसान पहुंचाने वाले अतिक्रमण को तोड़ने की, जितनी भी इमारतें खड़ी हैं उन्हें गिराएं और नदी में जल का प्रवाह बनाए रखने के लिए बांध से एक निश्चित और पर्याप्त मात्रा में पानी छोड़ा जाए. लेकिन, इस मामले में वोटों की खातिर सारे नेता डर जाते हैं.’
अगर संजय की मानें, तो शासन-प्रशासन के नुमांइदों द्वारा पहुज के उत्थान को लेकर किए गए दावों पर संदेह पैदा होता है. साथ ही, ज़हन में यह ख्याल भी कौंधने लगते हैं कि जल संकट से जूझते बुंदेलखंड में एक दुर्लभ नदी का किस तरह धीरे-धीरे अस्तित्व समाप्त किया जा रहा है और उसके उत्थान के प्रयास केवल राजनीतिक घोषणाओं तक सीमित हैं.
इसलिए भानु सहाय कहते हैं, ‘इच्छाशक्ति हो तो कुछ भी हो सकता है, लेकिन बुंदेलखंड को लेकर वह इच्छाशक्ति किसी में नज़र नहीं आती है, उनका (सरकार) ध्यान हम पर नहीं जाता है, इसलिए हमारा तो बस यही कहना है कि सभी समस्याओं का एक इलाज, हमारा राज यानी पृथक बुंदेलखंड.’