कच्चे तेल का यह दाम सितंबर, 2014 के बाद सबसे अधिक है. जानकारों का कहना है कि केंद्र की एनडीए सरकार के लिए यह उछाल सरकारी तेल खुदरा विक्रेताओं पर खुदरा कीमतों में बढ़ोतरी का दबाव बढ़ा रहा है. इस बढ़ोतरी को पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र रोक दिया गया है और मतदान समाप्त होने के तुरंत बाद इनमें वृद्धि की उम्मीद है.
नई दिल्ली/मुंबई: अंतरराष्ट्रीय तेल मानक ब्रेंट क्रूड के भाव सात साल के उच्चतम स्तर से शुक्रवार को कुछ नीचे आ गए, लेकिन अभी भी 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर है, यह भारत की मुद्रास्फीति एवं चालू खाता घाटे के लिए चुनौतीपूर्ण है.
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद बृहस्पतिवार को ब्रेंट क्रूड 105 डॉलर प्रति बैरल को भी पार कर गया था. इस तनावपूर्ण स्थिति के बावजूद तेल की आपूर्ति पर कोई खतरा नहीं पड़ने की संभावना से आज इसके भाव में नरमी देखी गई.
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब समेत पांच राज्यों में जारी विधानसभा चुनाव के नतीजे 10 मार्च को आने वाले हैं और उसके बाद घरेलू स्तर पर पेट्रोल एवं डीजल के दाम में तीव्र बढ़ोतरी देखी जा सकती है. दरअसल नवंबर 2021 की शुरुआत से ही पेट्रोलियम उत्पादों के दाम स्थिर बने हुए हैं.
तेल कीमतों के प्रस्तावित वृद्धि के बारे में केंद्र सरकार के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा, ‘सरकार हालात पर करीबी निगाह बनाए हुए है और जब जरूरत महसूस होगी तब समुचित कदम उठाएगी.’
शुक्रवार को कारोबार के दौरान ब्रेंट क्रूड 101 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर दर्ज किया गया. एक तेल कारोबारी ने कहा कि मौजूदा हालात में तेल कीमतों पर जोखिम से जुड़ा 10-15 डॉलर प्रति बैरल का प्रीमियम है.
उद्योग सूत्रों ने कहा कि पेट्रोल एवं डीजल की खुदरा कीमतों और इन पर आने वाली लागत में करीब 10 रुपये का फासला है और चुनावों के बाद तेल कीमतों में वृद्धि से मुद्रास्फीति दर पर दबाव देखा जाएगा. मुद्रास्फीति पहले ही आरबीआई के छह प्रतिशत के संतोषजनक स्तर से ऊपर चल रही है.
इसके अलावा अपनी तेल जरूरतों का 85 प्रतिशत आयात से पूरा करने वाले भारत के चालू खाता घाटे पर भी ऊंची तेल कीमतों की मार पड़ेगी. इसकी वजह यह है कि देश को कच्चे तेल की बढ़ी हुई दरों पर भुगतान करना होगा और उसका आयात बिल बढ़ जाएगा.
मॉर्गन स्टैनली ने कहा कि तेल कीमतों में वृद्धि दुनिया के तीसरे बड़े तेल आयातक भारत के नजरिये से नकारात्मक है.
ग्रेट ईस्टर्न एनर्जी कॉर्प लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी प्रशांत मोदी ने कहा कि हाइड्रोकार्बन की उपलब्धता वैश्विक स्तर पर एक बड़ी समस्या बन सकती है. उन्होंने कहा कि यह संकट घरेलू स्तर पर तेल एवं गैस उत्पादन को बढ़ावा देने की जरूरत को फिर से रेखांकित करता है.
एक्यूट रेटिंग्स एंड रिसर्च के मुख्य विश्लेषण अधिकारी सुमन चौधरी ने कहा कि कोविड महामारी के संकट से उबरने में जुटी विश्व अर्थव्यवस्था के सामने अब यूक्रेन संकट के रूप में नई चुनौती आ गई है. उन्होंने आशंका जताई कि इस संकट के लंबा खिंचने की स्थिति में कच्चा तेल 100 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर ही टिका रह सकता है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी से ज्यादा तेल आयात करता है, लेकिन कुल आयात में इसकी हिस्सेदारी करीब 25 फीसदी है. तेल की बढ़ती कीमतें चालू खाता घाटे (किसी देश के व्यापार का एक माप जहां उसके द्वारा आयात की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य उसके द्वारा निर्यात किए जाने वाले उत्पादों के मूल्य से अधिक होता है) को प्रभावित करेंगी. कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से एलपीजी और केरोसिन पर सब्सिडी बढ़ने की भी उम्मीद है, जिससे सब्सिडी बिल में बढ़ोतरी होगी.
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि केंद्र की एनडीए सरकार के लिए यह उछाल सरकारी तेल खुदरा विक्रेताओं पर खुदरा कीमतों में बढ़ोतरी का दबाव बढ़ा रहा है. इन बढ़ोतरी को राज्य के चुनावों के मद्देनजर रोक दिया गया है और मतदान समाप्त होने के तुरंत बाद इनमें वृद्धि की उम्मीद है.
रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2022 के पहले नौ महीनों में 2.5 बिलियन डॉलर के निर्यात और 6.9 बिलियन डॉलर के आयात के साथ रूस भारत का 25वां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है. रूस को भारत द्वारा किए जाने वाले प्रमुख निर्यात में मोबाइल फोन और फार्मास्यूटिकल्स शामिल हैं, जबकि रूस से भारत का प्रमुख आयात कच्चा तेल, कोयला और हीरे हैं. भारत से निर्यात की एक प्रमुख वस्तु चाय भी है.
दिसंबर से अप्रैल के बीच भारत से यूक्रेन को किया गया निर्यात लगभग 372 मिलियन डॉलर था. इस निर्यात में प्रमुख रूप से फार्मास्यूटिकल्स और मोबाइल फोन थे. वहीं यूक्रेन से भारत को आयात किए गए वस्तुओं का मूल्य लगभग 2.0 बिलियन डॉलर है, जिसमें सूरजमुखी के तेल और यूरिया का प्रमुख रूप से शामिल हैं. इस वित्त वर्ष की पहली तीन तिमाहियों में दोनों देशों को कुल निर्यात भारत के निर्यात का एक प्रतिशत से कम रहा.
भारत के लिए आयातित कच्चे सूरजमुखी के बीज के तेल का सबसे बड़ा स्रोत यूक्रेन था. यहां तनाव से विशेष रूप से देश में सूरजमुखी के तेल की कीमतों के प्रभावित होने की उम्मीद है. 2021-22 (अप्रैल-दिसंबर) में भारत ने कुल 1.87 बिलियन डॉलर के कच्चे सूरजमुखी के बीज के तेल का आयात किया, जिसमें से 1.35 बिलियन डॉलर यूक्रेन से था.
2020-21 में कमोडिटी का कुल आयात 1.96 बिलियन डॉलर का था, जिसमें से 1.60 बिलियन डॉलर अकेले यूक्रेन से था. यूक्रेन, भारत के मुख्य रूप से रूसी हथियारों और उपकरणों के लिए सैन्य पुर्जों का एक प्रमुख स्रोत है.
‘निजी उपयोग वाले बिजली घरों, उद्योगों को कोयले की आपूर्ति पर पड़ेगा असर’
यूक्रेन और रूस के बीच सैन्य युद्ध से ऊर्जा के दाम वैश्विक स्तर पर बढ़े हैं. इससे बिजली संयंत्रों की कोयला आयात की प्रवृत्ति कम होगी. फलत: निजी उपयोग वाले बिजली संयंत्रों और इस्पात तथा एल्यूमीनियम जैसे उद्योगों के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की कोल इंडिया से ईंधन की आपूर्ति पर और असर पड़ेगा. यह बात इंडियन कैप्टिव पावर प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन (आईसीपीपीए) ने कही है.
संगठन के अनुसार वैश्विक स्तर पर ऊर्जा संसाधनों की बढ़ती कीमतों के बीच बिजली उत्पादक अपनी मांग को पूरा करने के लिए घरेलू कोयले की आपूर्ति को लेकर सरकार पर दबाव डालेंगे. इससे बिजली के अलावा दूसरे क्षेत्रों में ईंधन की आपूर्ति पर प्रतिकूल असर पड़ेगा.
आईसीपीपीए के महासचिव राजीव अग्रवाल ने, ‘रूस-यूक्रेन संकट के कारण वैश्विक स्तर पर ऊर्जा के दाम तेजी से बढ़े हैं. इससे कोयला और कोक का आयात करने के रुख में कमी आएगी. इससे निजी उपयोग के लिए बिजली घर चलाने वाले के साथ-साथ उद्योगों के लिए ईंधन की आपूर्ति प्रभावित होगी.’
गौरतलब है कि एल्युमीनियम, सीमेंट, स्टील, स्पंज-आयरन, कागज, उर्वरक, रसायन, रेयान और उनके बिजली घर (सीपीपी) जैसे उद्योग ज्यादातर घरेलू कोयले पर निर्भर हैं.
अग्रवाल ने कहा, ‘पिछले छह-सात महीनों से हमें कोयले की बहुत कम आपूर्ति हो रही है. अब इस संकट के कारण बिजली संयंत्रों की आयात की प्रवृत्ति कम होगी. इसके कारण उद्योग रेल मार्ग के जरिये अधिक से अधिक कोयला देने के लिए सरकार पर दबाव डालेंगे. इससे निजी उपयोग वाले बिजली घरों और उद्योगों के लिए आपूर्ति प्रभावित होगी या चीजें सामान्य होने में और देरी होगी.’
गैर-बिजली क्षेत्रों को कोयले की आपूर्ति केवल आठ प्रतिशत ही है और अभी भी गैर-नियमित क्षेत्र ईंधन की कमी का सामना कर रहे हैं.
शेयर बाजारों में लगातार पांचवें दिन गिरावट, सेंसेक्स 383 अंक लुढ़का
शेयर बाजारों में गिरावट का सिलसिला मंगलवार को लगातार पांचवें कारोबारी सत्र में भी जारी रहा और उतार-चढ़ाव भरे कारोबार में बीएसई सेंसेक्स 383 अंक नुकसान में रहा.
रूस-यूक्रेन के बीच गतिरोध बढ़ने के साथ वैश्विक बाजारों में भारी बिकवाली के बीच सूचकांक में मजबूत हिस्सेदारी रखने वाले टीसीएस, रिलायंस इंडस्ट्रीज और एचडीएफसी बैंक के शेयरों में गिरावट से घरेलू बाजार नीचे आया.
शुरुआती कारोबार में तीस शेयरों पर आधारित सेंसेक्स करीब 1,300 अंक लुढ़क गया था. बाद में इसमें तेजी से सुधार आया. इसके बावजूद यह अंत में 382.91 अंक यानी 0.66 प्रतिशत की गिरावट के साथ 57,300.68 अंक पर बंद हुआ.
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी भी 114.45 अंक यानी 0.67 प्रतिशत की गिरावट के साथ 17,092.20 अंक पर बंद हुआ.
सेंसेक्स के शेयरों में टाटा स्टील में सबसे ज्यादा 3.64 प्रतिशत की गिरावट आई. टीसीएस (3.59 प्रतिशत) और एसबीआई (2.67 प्रतिशत) भी भारी नुकसान में रहे.
इसके अलावा डॉ. रेड्डीज (2 प्रतिशत), आईटीसी (1.44 प्रतिशत), भारती एयरटेल (1.39 प्रतिशत) और इंडसइंड बैंक (1.39 प्रतिशत) में भी गिरावट रही. रिलायंस इंडस्ट्रीज, एचडीएफसी बैंक, एक्सिस बैंक, एचसीएल टेक, विप्रो, एचयूएल, एलएंडटी और अल्ट्राटेक सीमेंट भी नुकसान में रहे.
सेंसेक्स के 30 शेयरों में से 20 नुकसान में रहे.
जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार वीके विजयकुमार ने कहा, ‘रूसी समर्थन वाले विद्रोहियों के दो क्षेत्रों को मान्यता देने से रूस और यूक्रेन के बीच तनाव बढ़ गया है. कच्चे तेल और सोने के दाम में तेजी से आर्थिक प्रभाव का पता चल रहा है.’
उन्होंने कहा कि भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती कच्चे तेल का दाम 100 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर पहुंचना है. इसके कारण बढ़ने वाली मुद्रास्फीति के चलते रिजर्व बैंक उदार रुख को छोड़ने को मजबूर हो सकता है.
शेयर बाजार के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी संस्थागत निवेशकों की बिकवाली जारी है और उन्होंने सोमवार को 2,261.90 करोड़ रुपये मूल्य के शेयर बेचे.
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पूर्वी यक्रेन में अलगाववादियों के क्षेत्र की स्वतंत्रता को मान्यता दे दी है. इससे भू-राजनीतिक संकट गहराने का अंदेशा है.
एलकेपी सिक्योरिटीज के शोध प्रमुख एस रंगनाथन ने कहा, ‘जब वैश्विक अर्थव्यवस्था महामारी के प्रभाव से उबरना शुरू हुई थी और स्थिति सामान्य होती दिख रही थी, ऐसे समय में रूस ने यूक्रेन के अलगाववादियों के क्षेत्रों की स्वतंत्रता को मान्यता दे दी है. इससे रूस पर अमेरिका और यूरोपीय संघ की तरफ से गंभीर पाबंदियां लगाई जा सकती हैं.’
जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के शोध प्रमुख विनोद नायर ने कहा कि रूस-यूक्रेन संकट के गहराने और तेल के दाम में तेजी से वैश्विक बाजारों में बड़ी गिरावट आई.
उन्होंने कहा, ‘घरेलू शेयर बाजार वैश्विक प्रभाव के कारण भारी नुकसान के साथ खुला. हालांकि, बाद में कारोबार के दौरान गिरावट में कमी आई. एफआईआई की बिकवाली जारी है. इससे उतार-चढ़ाव बढ़ा है. जबकि घरेलू संस्थागत निवेशक निवेश बढ़ा रहे हैं.’
रूस-यूक्रेन गतिरोध के बीच अमेरिकी शेयर बाजार वॉल स्ट्रीट में सोमवार को गिरावट के बाद एशिया के अन्य बाजारों में बिकवाली देखी गई. यूरोपीय बाजारों में भी दोपहर के कारोबार में यही स्थिति रही.
जापान का निक्की 225, 1.7 प्रतिशत जबकि हांगकांग का हैंगसेंग 2.7 प्रतिशत नीचे आ गया. दक्षिण कोरिया का कॉस्पी 1.4 प्रतिशत और चीन का शंघाई कंपोजिट एक प्रतिशत नुकसान में रहा.
इस बीच, ब्रेंट क्रूड वायदा चार प्रतिशत बढ़कर 100 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर पहुंच गया. कच्चे तेल का यह दाम सितंबर, 2014 के बाद सबसे अधिक है.
रुपया 34 पैसे मजबूत होकर 75.26 प्रति डॉलर पर
कच्चे तेल की कीमतों में कमी और घरेलू शेयर बाजार में तेजी के साथ विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में शुक्रवार को अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले रुपया 34 पैसे मजबूत होकर 75.26 (अस्थायी) प्रति डॉलर पर बंद हुआ.
अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 75.31 प्रति डॉलर पर खुला. कारोबार के दौरान 75.18 के उच्च स्तर और 75.46 के निम्न स्तर को छूने के बाद अंत में 34 पैसे की तेजी के साथ 75.26 प्रति डॉलर पर बंद हुआ.
बृहस्पतिवार को 99 पैसे की गिरावट के साथ 75.60 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था. यूक्रेन के खिलाफ रूस के सैन्य अभियान शुरु होने के बाद जोखिम वाली संपत्तियों को लेकर धारणा प्रभावित हुई.
इस बीच, यूरोपीय संघ के नेतृत्व में साझा मोर्चा बनाते हुए रूस के खिलाफ आर्थिक एवं वित्तीय प्रतिबंधों के लिए सहमत हुए हैं.
छह मुद्राओं की तुलना में डॉलर का रुख दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.01 प्रतिशत की तेजी के साथ 97.14 पर जा पहुंचा.
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के शोध विश्लेषक, दिलीप परमार ने कहा, ‘विदेशी मुद्रा बाजारों में शांति लौट आई क्योंकि प्रतिभागियों ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के नतीजों का आकलन कर लिया है और अब उनका ध्यान फिर से फेडरल रिजर्व पर वापस लौट आया है. रूस पर उम्मीद से कहीं कमजोर अमेरिकी प्रतिबंधों से बाजार की धारणा को समर्थन मिला.’
घरेलू शेयर बाजार में तेजी लौटने के साथ-साथ कच्चे तेल कीमतों के आठ साल के उच्च स्तर से कम होने के बाद क्षेत्रीय मुद्राओं के अनुरूप रुपया में तेजी आई.
बंबई शेयर बाजार का 30 शेयरों पर आधारित सेंसेक्स 1,328.61 अंक की तेजी के साथ 55,858.52 अंक पर बंद हुआ.
शेयर बाजारों के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी संस्थागत निवेशक पूंजी बाजार में शुद्ध बिकवाल बने रहे. उन्होंने बृहस्पतिवार को 6,448.24 करोड़ रुपये के शेयरों की बिकवाली की.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)