गोरखपुर ज़िले में कुल नौ विधानसभा क्षेत्र- गोरखपुर शहर, गोरखपुर ग्रामीण, पिपराइच, कैंपियरगंज, सहजनवा, चौरीचौरा, बांसगांव, खजनी और चिल्लूपार आते हैं, जिनमें से आठ पर पिछले चुनाव में भाजपा ने जीत दर्ज की थी. पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरे योगी आदित्यनाथ के सामने अपनी सीट के साथ इन्हें भी बचाने की चुनौती है.
गोरखपुर: पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं योगी आदित्यनाथ को अपनी सीट पर भले ही कोई बड़ी वास्तविक चुनौती पेश नजर न आ रही हो लेकिन उन्हें गोरखपुर जिले की नौ सीटों पर भाजपा को पिछले चुनाव की तरफ शानदार सफलता दिलाने में कड़ी चुनौती जरूर पेश है.
चुनाव प्रचार थमने के पहले गोरखपुर शहर में तीन बड़े रोड शो हुए. समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 27 फरवरी, तो 28 फरवरी को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद ने रोड शो किया.
गोरखपुर शहर ने लंबे समय बाद योगी आदित्यनाथ के अलावा किसी और दल व नेता का रोड शो देखा. ये तीनों रोड शो न सिर्फ गोरखपुर बल्कि प्रदेश की राजनीति में नए किस्म के हो रहे बदलाव के प्रतीक थे.
अखिलेश यादव ने गोरखपुर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र में सभा करने के बाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस नगर से लेकर शहर के काली मंदिर तिराहे तक लंबा रोड शो किया. उनका रोड शो गोरखपुर शहर और गोरखपुर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र से गुजरा.
उनकी बस में चुनाव पूर्व बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से सपा में आया तिवारी परिवार (पूर्व मंत्री हरिशंकर तिवारी के ज्येष्ठ पुत्र पूर्व सांसद भीष्म शंकर तिवारी और भांजे विधान परिषद के पूर्व सभापति गणेश शंकर पांडेय ) नजर आए. रोड शो के पहले अखिलेश यादव ने चिल्लूपार क्षेत्र में हरिशंकर तिवारी के पुत्र विनय शंकर तिवारी के लिए सभा की थी.
अखिलेश यादव की बस जब हाता (पंडित हरिशंकर तिवारी का घर) के पास पहुंची तो काफी देर तक नारेबाजी होती रही. काली मंदिर तिराहे पर रोड शो के समापन पर बस की छत पर गोरखपुर शहर की सपा प्रत्याशी शुभावती शुक्ल और उनके दोनों पुत्र पूरे समय मौजूद रहे. अखिलेश यादव ने इस परिवार के प्रति खासा सम्मान दिखाया और अगले दिन सोशल मीडिया में सपा समर्थकों ने इसे खूब प्रचार किया.
इस रोड शो के जरिये समाजवादी पार्टी ने गोरखपुर और आस-पास के जिलों में ब्राह्मण मतदाताओं को संदेश देने की कोशिश की कि ‘नई सपा’ में उनको खूब जगह दी गई है.
गोरखपुर शहर सीट से चुनाव लड़ रहे आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद ने आखिरी कुछ दिनों में जोरदार प्रचार अभियान चलाया. प्रदेश के दूसरे जिलों से आए हजारों कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर उनका का प्रचार किया. उनके रोड शो में भी अच्छी खासी भीड़ दिखी.
चंद्रशेखर के चुनाव प्रचार से स्थानीय दलित नेताओं, संगठनों की दूरी हैरत करने वाली थी. ये दलित नेता व संगठन बसपा के पक्ष में जुटे रहे. भीम आर्मी से जुड़े एक नेता ने बताया कि स्थानीय संगठनों से ठीक से संपर्क व संवाद नहीं हो पाया. दूसरी ओर, स्थानीय दलित नेता-संगठन कह रहे थे कि चंद्रशेखर आजाद की राजनीति में ‘गंभीरता’ का अभाव है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का रोड शो भी पिछले चुनावों के मुकाबले एकदम अलग रहा. पिछले दो चुनावों-2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव में चुनाव प्रचार थमने के पहले हुए रोड शो में अमित शाह भी योगी के साथ रहे थे. इस बार के रोड शो में वे नहीं थे जबकि इसी दिन उन्होंने गोरखपुर के आस-पास के जिलों में सभाएं की थी.
हालांकि योगी आदित्यनाथ के नामांकन के समय वह जरूर उनके साथ थे. योगी आदित्यनाथ का रोड शो का रूट भी अलग था. रोड शो शहर के संकरे मार्गों में व्यापारी बहुल मुहल्लों से गुजरा.
गोरखपुर में चुनाव प्रचार के आखिरी सप्ताह में शहर में लगे नए होर्डिंग और कट आउट में बहुतायत में मोदी का एकल चेहरा और ‘यूपी मांगे फिर भाजपा सरकार’ नारों पर राजनीतिक विश्लेषकों ने ही नहीं सामान्य लोगों का भी ध्यान गया और इसके बारे में तरह-तरह के कयास लगते रहे.
योगी आदित्यनाथ का गोरखपुर शहर में प्रचार सुव्यवस्थित दिखा. भाजपा के साथ-साथ हिंदू युवा वाहिनी ने घर-घर जाकर संपर्क किया और प्रचार सामग्री बांटी. योगी के हर चुनाव में उनकी उपलब्धियों की एक पुस्तिका जरूरी बांटी जाती रही है. ‘काम कह रहे हैं सही चुना था, लोग कह रहे हैं सही चुनेंगे, मन बना चुकी जनता यही चुना था, यही चुनेंगे’ शीर्षक वाली पुस्तक में योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकार का बखान करने वाले 28 लेख हैं.
सपा की सोशल इंजीनियरिंग
गोरखपुर जिले की नौ सीटों में से दो पर सपा ने ब्राह्मण प्रत्याशी उतारे हैं. इसके अलावा सपा ने दो निषाद, दो यादव और तीन दलित उम्मीदवारों को चुनावी समर में उतारा है. भाजपा ने तीन राजपूत, दो ब्राह्मण, दो दलित और एक सैंथवार (ओबीसी) को चुनावी मैदान में उतारा है.
समाजवादी पार्टी ने अपनी नई सोशल इंजीनियरिंग में गैर-यादव पिछड़ों के साथ-साथ ब्राह्मण उम्मीदवारों को भरपूर जगह देकर योगी आदित्यनाथ पर चस्पा हो रहे ‘ठाकुरवाद’ को जवाब देने की कोशिश की है.
इस बार के चुनाव में बसपा ने सभी सीटों पर नए प्रत्याशी दिए हैं. बसपा को सभी सीटों पर दमदार प्रत्याशी इस बार नहीं मिले जो बसपा के वोट बैंक में अपने दम पर कुछ और जोड़ सकें. इसके बावजूद वह कई सीटों पर चुनावी संघर्ष को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश कर रही है.
योगी लैंड की फॉल्ट लाइन
गोरखपुर जिले में कुल नौ विधानसभा क्षेत्र- गोरखपुर शहर, गोरखपुर ग्रामीण, पिपराइच, कैंपियरगंज, सहजनवा, चौरीचौरा, बांसगांव, खजनी और चिल्लूपार आते हैं. बांसगांव और खजनी अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीट है.
पिछले चुनाव में चिल्लूपार को छोड़कर सभी आठ सीट भाजपा ने जीत ली थी. वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को जिले की दोनों लोकसभा सीट पर जीत मिली थी. अलबत्ता योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद 2018 में गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र के उपचुनाव में भाजपा की हार ने सबको चौंका दिया था.
उपचुनाव के परिणाम ने योगी लैंड की फॉल्ट लाइन को पहली बार सबके सामने ला दिया था. यह फॉल्ट लाइन गोरखपुर जिले की राजनीति में बहुत पहले से है लेकिन मुख्यधारा का मीडिया इस फॉल्ट लाइन को हमेशा नजरअंदाज कर गोरखपुर को ‘भगवा गढ़, योगी लैंड’ को रूप में दिखाता रहा है.
2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव छोड़कर यदि हम पिछले 20 वर्ष में गोरखपुर जिले के चुनाव परिणामों को देखें, तो तस्वीर यह बताती है कि यह जिला गोरखपुर शहर को छोड़कर दलितों-पिछड़ों की राजनीति के प्रभाव में रहा है और बसपा यहां अधिक सीटें जीतती आई है.
ये चुनावी परिणाम गोरखपुर जिले को योगी लैंड के बजाय दलित -पिछड़ों की राजनीति के बड़े केंद्र के रूम में चिह्नित करने की मांग करते हैं.
वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव में गोरखपुर की नौ विधानसभा सीट में बसपा ने चार, सपा ने दो सीट जीती थी. एक सीट पर निर्दलीय तो एक सीट पर अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस विजयी रही. भाजपा (हिंदू महासभा) को सिर्फ एक सीट मिली थी. वर्ष 2007 में भी बसपा ने चार सीट जीती. सपा को एक, भाजपा को दो सीट मिली. एक सीट कांग्रेस ने जीती जबकि एक पर निर्दलीय विजयी रहा.
वर्ष 2012 में बसपा ने फिर चार सीट जीती. सपा को एक, एनसीपी को एक सीट मिली. भाजपा तीन सीट जीतने में कामयाब रही. इस तरह देखिए कि 2002 से 2012 तक तीन चुनाव में गोरखपुर जिले की नौ सीटों में भाजपा को तीन से अधिक सीट नहीं मिलीं.
पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा को एक सीट मिली. सपा किसी सीट पर जीत नहीं पाई. यह चुनाव सपा ने कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था. इस चुनाव में एक परिवर्तन यह देखने को मिला कि हर चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने वाली बसपा सिर्फ दो सीट पर दूसरे स्थान पर रही जबकि सपा-कांग्रेस गठबंधन पांच सीट पर दूसरे स्थान पर रहा.
इसी तरह, लोकसभा चुनाव के परिणामों को देखें तो गोरखपुर लोकसभा सीट 1989 से लगातार भाजपा के पास रही लेकिन इसी जिले की बांसगांव के नतीजे हमेशा भाजपा के पक्ष में नहीं रहे. पिछले दो चुनाव से जरूर यहां भाजपा जीत रही है.
योगी आदित्यनाथ को इस चुनाव में विपक्ष से मिल रही कड़ी चुनौती के साथ-साथ भाजपा के साथ आई निषाद पार्टी के दखल से भी परेशानी से गुजरना पड़ा. गोरखपुर जिले की कई सीटों पर निषाद पार्टी अपना दावा कर रही थी लेकिन योगी आदित्यनाथ बड़ी चतुराई से निषाद पार्टी को जिले की सिर्फ एक सीट चौरीचौरा पर सीमित करने में सफल रहे.
यहां से निषाद पार्टी के अध्यक्ष डाॅ. संजय निषाद के बेटे श्रवण निषाद चुनाव लड़ रहे हैं. भाजपा नेता अजय कुमार सिंह टप्पू के बागी बनकर चुनाव लड़ जाने से श्रवण निषाद मुश्किल में पड़ गए हैं.
अजय कुमार सिंह टप्पू को योगी आदित्यनाथ का नजदीकी माना जाता है. अपने प्रचार में टप्पू समर्थक योगी आदित्यनाथ का ‘आशीर्वाद’ प्राप्त होने का दावा कर रहे हैं.
चौरीचौरा में अपने बेटे को चक्रव्यूह से निकालने में डाॅ. संजय निषाद ऐसे फंसे कि वे अन्य क्षेत्रों में भाजपा की कुछ ज्यादा मदद नहीं कर सके. सपा और मुकेश साहनी के विकासशील इंसान पार्टी के निषाद उम्मीदवार भी उनके लिए चुनौती बनते दिखाई दिए. निषाद मतदाता असमंजस में दिख रहे थे. अधिकतर स्थानों पर वे अपनी जाति के उम्मीदवारों को वरीयता देते दिखे.
बड़ी जीत की चुनौती
गोरखपुर शहर सीट पिछले आठ चुनाव से भाजपा ही जीतती आ रही है. हर चुनाव के बाद से उसका जीत का अंतर बढ़ता रहा. पिछले चुनाव में उसकी जीत का अंतर 60 हजार से अधिक रहा.
वर्ष 2012 में नए परिसीमन के बाद गोरखपुर शहर विधानसभा सीट भाजपा के लिए अत्यधिक अनुकूल हो गयी है क्योंकि अल्पसंख्यक और पिछड़ी जातियों- विशेषकर निषाद समाज का बड़ा हिस्सा गोरखपुर ग्रामीण विधानसभा में चला गया.
गोरखपुर शहर सीट पर वैश्य, कायस्थ मतदाताओं को अच्छी खासी संख्या है जो परंपरागत रूप से भाजपा को वोट देते आए हैं. पिछड़े वर्ग के अलावा दलित मतदाताओं में भी भाजपा ने पैठ बनाई है. इस बार के चुनाव में ब्राह्मण मतों अपनी तरफ खींचने में सपा ने बहुत जोर दिखाया है.
कायस्थ मतदाताओं में इस बात का असंतोष जरूर है कि उन्हें भाजपा में उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है. आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी विजय कुमार श्रीवास्तव इस जोर-शोर से उठा रहे हैं. इसके बावजूद कायस्थ मतदाताओं के भाजपा से छिटकने के कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं.
विपक्षी दलों की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि वे अक्सर चुनाव के समय ही सक्रिय होते हैं और जातिगत समीकरणों के आधार पर प्रत्याशियों का चयन कर भाजपा के किले में सेंधमारी का प्रयास करते हैं. चुनाव बाद वे फिर ‘अदृश्य’ हो जाते हैं. इसलिए भी भाजपा के किले में दरार पैदा करने में वे कामयाब नहीं हो पाए.
विपक्षी दल हर चुनाव यहां प्रतीकात्मक रूप से ही लड़ता रहा है. इस बार भी सभी दलों की रणनीति में यही दिखा. यहां के चुनाव से वे जिले, पूर्वांचल और प्रदेश में अपने अनुकूल संदेश देने की कोशिश करते रहे.
गोरखपुर शहर के अलावा अन्य विधानसभा क्षेत्रों में ठीक उलट स्थिति है. वहां सपा और बसपा के मजबूत उम्मीदवार हैं जो हमेशा सक्रिय रहते हैं. इस बार के चुनाव में शहर सीट के अलावा सात सीटों पर भाजपा का सपा से सीधा मुकाबला होता दिख रहा है. एक सीट पर बसपा की उपस्थिति दमदार है.
गोरखपुर शहर सीट पर पिछले चुनाव में भाजपा प्रत्याशी डाॅ. राधा मोहनदास अग्रवाल 60 हजार से अधिक मतों से विजयी हुए थे. दूसरे स्थान पर सपा-कांग्रेस के उम्मीदवार राणा राहुल सिंह रहे जिन्हें 61, 491 मत मिले जो पिछले आठ चुनावों में सर्वाधिक थे.
सपा इस बार जी-तोड़ कोशिश कर रही है कि वह पिछले चुनाव से अधिक मत प्राप्त कर योगी आदित्यनाथ की जीत का अंतर कम कर सके जबकि भाजपा-हिंदू युवा वाहिनी कोशिश कर रही है कि जीत ‘बड़ी ’ होनी चाहिए.
साथ ही गोरखपुर जिले की नौ सीटों में से अधिक से अधिक सीटों पर भाजपा की जीत हो नहीं तो योगी की जीत को भी ‘हार’ की तरह देखा जाएगा.
(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)