ग्राउंड रिपोर्ट: पूर्वांचल में मीडिया के एक तबके द्वारा बनाए गए ‘लाभार्थी नैरेटिव’ पर स्थानीय लोगों की बढ़ी हुई राजनीतिक चेतना हावी दिखती है. मीडिया में हो रही बहस के उलट ज़मीन पर तस्वीर कुछ अलग ही है.
गाजीपुर: यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा कल्याणकारी योजनाओं को अपने पक्ष में तुरूप का पत्ता मान रही है और दावा किया जा रहा है कि भाजपा ने एक नया वोट बैंक ‘लाभार्थी ’ तैयार कर लिया है.
कुछ विश्लेषक भी कह रहे हैं कि राशन, आवास, पेंशन, शौचालय, किसान सम्मान निधि, असंगठित क्षेत्र के कामगारों के खाते में नकद हस्तांतरण (ई श्रम कार्डधारक) को पोर्टल सहित तमाम योजनाओं से गरीबों को बहुत लाभ हुआ है और वे भाजपा के पक्ष में वोट कर रहे हैं. यह प्रचार जितना मीडिया और बहस में है, उतना जमीन पर नहीं दिख रहा है.
पूर्वांचल में ‘लाभार्थी नैरेटिव’ पर लोगों की बढ़ी हुई राजनीतिक चेतना हावी दिख रही है. फुटपाथ पर ठेला लगाकर भूजा बेचने वाले से लेकर ईंट ढोने वाले मजदूर बातचीत में महंगाई, बेरोजगारी, कठिन होती जा रही अपनी जिंदगी के बारे में मुखर होकर चर्चा करते मिले.
साथ ही यह तथ्य पता चला कि इन सरकारी योजनाओं के दायरे में नहीं आ पाने वाले लोगों की भी बड़ी संख्या है और ऐसे लोगों को लगता है कि उनके साथ भेदभाव किया गया है.
संत कबीर नगर जिले के कोपिया में शिवरात्रि मेले में स्टीकर बेच रहे नरेंद्र खलीलाबाद में सुधियानी मोहल्ले में रहते थे. वह कई वर्षों से बाइक और चार पहिया वाहनों पर लगने वाले स्टीकर बेचने का काम कर रहे हैं. युवा उनके यहां से फैशन और स्टाइल स्टेटमेंट वाले स्टीकर ‘इट्स मी’ खरीद रहे हैं तो कुछ लोग ‘मेरा भारत महान वाला’ स्टीकर का मोल-तोल कर रहे हैं.
दलित नरेंद्र दो वर्ष पहले तक दिल्ली सहित कई महानगरों में स्टीकर बेचने जाते थे. एक दिन 300 से 600 रुपये तक स्टीकर बेच लेते थे. लॉकडाउन में कानपुर में थे और वही रह गए. दस दिन तक कानपुर से निकल नहीं पाए, फिर पैदल, ऑटो, ट्रैक्टर-ट्रॉली से किसी तरह घर पहुंचे.
वह बताते हैं, ‘पैदल चलते-चलते झलका पड़ गया था. सात दिन आने में लग गए. लाॅकडाउन के कड़वे अनुभव से फिर घर छोड़कर जाने की हिम्मत नहीं पड़ी.’
अब वे संतकबीरनगर और आस-पास के जिलों के बाजारों-मेलों में स्टीकर बेचकर जीवनयापन करते हैं. उन्होंने श्रम पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराया है लेकिन उन्हें कोई पैसा नहीं मिला है. उनके बेटे ने आवास के लिए आवेदन किया है, लेकिन उन्हें आवास नहीं मिला.
उन्होंने बताया कि बसपा राज में उन्हें कांशीराम कॉलोनी में आवास मिला था. उन्हें राशन मिल रहा है. यह पूछने पर कि योजना का लाभ मिलने पर लोग वोट देंगे उनका जवाब था, ‘ऐ महराज! राशन-पानी पर केहू वोट देला. हमार वोट फिक्स बा.’
‘इस बार दिखा देंगे कि वोट किस पर मिलता है’
गोरखपुर जिले के पिपराइच विधानसभा क्षेत्र के बांसस्थान पर मिले सद्दाम हुसैन ईंट भट्ठे पर अपने खड़खड़ा (घोड़ा गाड़ी ) इक्के से ईंट ढोने का काम करते हैं.
सौराहा गांव के रहने वाले सद्दाम को समाजवादी पार्टी (सपा) के कुछ नेता अखिलेश यादव की रैली में लेकर आए हैं और उनके खड़खड़ा पर खड़े होकर फोटो खिंचवा रहे हैं, वीडियो बना रहे हैं.
वह बताते हैं, ‘ईंट भट्ठे पर रोज तीन हजार ईंट ढोते हैं तो डेढ़ सौ रुपये मजदूरी मिलती है. इसमें से आधा पैसा घोड़े को खिलाने में खर्च हो जाता है.’
उनके घर पर बूढ़े पिता, पत्नी और दो बच्चे हैं. वे तीन महीने ईंट भट्ठे पर काम करते हैं और फिर सीजन खत्म होने पर मजदूरी करने हैदराबाद चले जाते हैं. उन्हें पेंट-पॉलिश का काम आता है. लाॅकडाउन में हैदराबाद ही थे और वहीं फंस गए थे. सारी कमाई जब खत्म होने लगी तो भूखे-प्यासे पैदल ही गांव के लिए चल पड़े.
सद्दाम ने बताया कि उनके साथ सात मजदूर चल रहे थे. चलते-चलते थक गए तो रास्ते में दो-दो हजार रुपये में पुरानी साइकिल खरीदी और उससे चलने लगे. पूरे तीन सप्ताह लगा घर पहुंचने में. सद्दाम कहते हैं, ‘पेट की आग ने फिर हैदराबाद जाने को मजबूर कर दिया है.’
सद्दाम जब हैदराबाद चले जाते हैं तो उनके घोड़े राजू की देखभाल उनके पिता करते हैं. उनके दो भाई उन्हीं की तरफ बाहर मजदूरी करते हैं और घर आने पर ईंट भट्ठे पर काम में लग जाते हैं.
वह कहते हैं, ‘पिछला चुनाव कुछ और था. हमारा वोट भी उधर चला गया था. इस बार माहौल सही है.’ सद्दाम को किसान सम्मान निधि तीन बार मिलने के बाद फिर नहीं मिली. वह शिकायत करते हैं, ‘राशन तो मिल रहा है लेकिन उसके साथ मिलने वाला नमक बहुत खराब है. उसमें शीशा मिला हुआ है.’
यह पूछने पर कि कहा जा रहा है कि राशन पर लोग वोट भाजपा को दे रहे हैं, उनका जवाब था, ‘इस बार दिखा देंगे कि वोट किस पर मिलता है.’
‘बदलाव हो जाए तो बहुत अच्छा होता, हम लोग बहुत दुखी हैं ’
गाजीपुर घाट पर गंगा नदी पर बने पुल के पास चश्मा, अंगूठी, कड़ा, टोपी का ठेला लगाए अधेड़ व्यक्ति मिले. उन्होंने अपना नाम खान बताया. खान की पहले साइकिल मरम्मत की दुकान हुआ करती थी. उन्होंने दिल्ली में भी मजदूरी की है. साइकिल मरम्मत के काम में ज्यादा फायदा नहीं होने पर पुल के पास चश्मा बेचने लगे.
वे कहते हैं, ‘तीन-चार सौ की बिक्री हो जाती है.’ गंगा नदी के किनारे उनका मोहल्ला है. मोहल्ले में निषाद बिरादरी के अधिक लोग हैं.
खान के अनुसार, ‘निषाद बिरादरी के लोगों को ढाई लाख वाला आवास मिला है लेकिन हम जैसे गरीब लोगों को जिनका घर करकट का है, आवेदन करने पर भी नहीं मिला. डेढ साल हो गए हैं आवेदन किए. शौचालय के लिए एक बार मेरा नाम आ गया था लेकिन फिर काट दिया गया.’
वह कहते हैं, ‘हमारे मुहल्ले में किसी भी मुसलमान को आवास या अन्य योजनाओं को लाभ नहीं मिला है.’ श्रम पोर्टल के बारे में उन्हें जानकारी है और उन्होंने रजिस्ट्रेशन भी कराया है लेकिन उन्हें इसका भी पैसा नहीं मिला है. उन्हें लगता है कि योजनाओं का लाभ देने में भेदभाव किया जा रहा है.
चुनाव के रुख के बारे में सवाल करने पर उल्टे वह हमसे पूछते हैं कि बदलाव हो जाएगा क्या। फिर कहते हैं, ‘देखिए क्या होता है? बदलाव हो जाए तो बहुत अच्छा होता. हम लोग बहुत दुखी हैं. पहले आराम से खाते-पीते थे. अब तो इतनी महंगाई है कि एक किलो तेल खरीदने पर सोचना पड़ता है. न्यूज वाला बता रहा है कि पेट्रोल फिर महंगा होने वाला है.’
उनके पास खड़ा एक किशोर सपा प्रत्याशी के रोड शो का वीडियो दिखाते हुए कहता है कि साहू जी (सपा प्रत्याशी )जीत जाएंगे.
‘महंगाई और बेरोजगारी से लोगों में क्रोध है’
गजीपुर जिले के जमानिया विधानसभा क्षेत्र के दुरहिया में सड़क किनारे भूजा बेच रहे संजय वर्मा से मुलाकात हुई. वर्मा का ठेला दोपहर बाद तीन से आठ बजे तक लगता है. उनके अनुसार 400 से 500 रुपये की ब्रिकी हो जाती है.
वर्मा ओबीसी वर्ग में आते हैं. आर्थिक तंगी के कारण उनकी पढ़ाई बीच में बाधित हो गई और किशोर वय में ही काम करने जाना पड़ा.
उन्होंने बताया कि उन्होंने मिठाई के दुकान पर काम किया और मिठाई-भोजन बनाना सीखा. लगन के दिनों में वैवाहिक कार्यक्रमों में मिठाई व भोजन बनाने का काम करते हैं और लगन खत्म होने के बाद भूजा का ठेला लग जाता है. घर में पत्नी, दो बेटे और एक बेटी हैं. सबकी जीविका इसी काम चल रही है.
वे कहते हैं, ‘अगर अंग्रेजी जानते तो कहीं बड़े रेस्टोरेंट-होटल में बावर्ची का काम मिल जाता. हमारे हाथ में हुनर है. हम बहुत काम जानते हैं. पूरा जीवन संघर्ष किया है, अब भी कर रहे हैं.’
वर्मा ने भी आवास के लिए आवेदन किया था लेकिन नहीं मिला. रसोई गैस उन्होंने खुद की कमाई से खरीदी है. स्ट्रीट वेंडर होने के बावजूद उन्हें किसी योजना का लाभ नहीं मिला है.
वह कहते हैं, ‘जिसको कुछ मिला है, वह वोट दे. हमें तो कुछ नहीं मिला. सब मुद्दों पर महंगाई भारी है महंगाई देखिए कितनी बढ़ गई है. खाने का तेल और पेट्रोल महंगा ही होता जा रहा है. महंगाई और बेरोजगारी से लोगों में क्रोध है. इस कारण लोग भाजपा को वोट नहीं देंगे. हमारे यहां भाजपा और सपा में ही लड़ाई है. साइकिल निकल जाएगी.’
‘मोदी जी की बात सुनते-सुनते काने झनक गया है’
मऊ से करीब 22 किलोमीटर दूर गाजीपुर जिले के जहूराबाद विधानसभा का कोदई गांव पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के पास है. गांव जाने वाले रास्ते पर सबसे पहले मोड़ पर संदीप की गुमटी है.
22 वर्षीय संदीप यादव ग्रेजुएट हैं और उन्होंने दो महीने पहले करीब 40 हजार रुपये की पूंजी लगाकर यह दुकान खोल ली क्योंकि तीन वर्ष से अधिक समय तक वे नौकरी के लिए दौड़ते-दौड़ते थक चुके थे.
संदीप ने बताया कि कोरोना के समय में उन्होंने बरौनी जाकर क्रेन आपरेटर का काम सीखा और दो महीने तक मजदूरी की. कुछ और भी जगह काम करने गए लेकिन स्थायी काम नहीं मिला. घर में दो बहनें है, जिन्होंने बीएड और बीटीसी किया है लेकिन उन्हें भी नौकरी नहीं मिली. आखिर में संदीप ने यह गुमटी खोल ली है.
गुमटी पर बैठे नौजवान राहुल और दिनेश व्यंग्य में कहते हैं, ‘संदीप अब आत्मनिर्भर हो गया है.’ संदीप बताते हैं, ‘2014 में पहली बार वोटर बने थे और भाजपा को वोट दिया था. उस समय नरेंद्र मोदी से बहुत प्रभावित थे. मोदी जी बोल रहे थे कि उनकी सरकार बनने के बाद ये हो जाए, वो हो जाएगा लेकिन अब तो उनकी बात सुनते सुनते काने झनक गया है.’
गुमटी पर मौजूद मुकेश कहते हैं, ‘यहां मोदी जी और योगी जी की सभा हुई लेकिन उन्होंने बेरोजगारी पर बात नहीं की जबकि अखिलेश यादव हर सभा में रोजगार की बात कर रहे हैं.’
(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)