झारखंड में बीते तीन सालों में जेल में 156 मौतें हुईं, पुलिस हिरासत में 10 मौतेंः सरकारी डेटा

झारखंड के गृह विभाग, जेल और आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा विधानसभा में पेश किए गए आंकड़ों से यह जानकारी प्राप्त हुई है. इसके मुताबिक़, साल 2018-19 में 167, 2019-20 में 45 और 2020-21 में हिरासत में 54 मौतें हुई हैं. 

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

झारखंड के गृह विभाग, जेल और आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा विधानसभा में पेश किए गए आंकड़ों से यह जानकारी प्राप्त हुई है. इसके मुताबिक़, साल 2018-19 में 167, 2019-20 में 45 और 2020-21 में हिरासत में 54 मौतें हुई हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्लीः झारखंड में बीते तीन साल में हिरासत में 166 मौतें दर्ज की गई हैं, जिनमें से 156 जेल में और 10 पुलिस हिरासत में हुई हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, गृह विभाग, जेल और आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा सोमवार को राज्य विधानसभा में पेश किए गए आंकड़ों से यह जानकारी प्राप्त हुई है.

इन आंकड़ों के मुताबिक, साल 2018-2019 में 167, 2019-2020 में 45 और 2020-2021 में हिरासत में 54 मौतें हुई हैं. हालांकि, 2021-2022 के आंकड़ों का उल्लेख नहीं किया गया है.

ऐसा पहली बार है कि हिरासत में हुई मौतों के आंकड़े राज्य सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर जारी किए गए.

भाकपा (माले) विधायक विनोद सिंह ने इस तरह की मौतों के रोकने के लिए सरकार की योजना के बारे में सवाल किया था, जिसके जवाब में विभाग के संयुक्त सचिव ने कहा, ‘अगर पुलिस या जेल अधिकारियों की ओर से किसी तरह की लापरवाही पाई जाती है तो पीड़ित परिवारों को मुआवजा दिया जाता है. हर बार कोई मौत होने पर जांच शुरू की गई और अगर मौत संदिग्ध पाई गई तो न्यायिक या प्रशासनिक स्तर की जांच की गई और आगे की जांच के लिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट एनएचआरसी के पास भेजी गई.’

हालांकि, रिपोर्ट में हिरासत में हुई मौत के कारण का उल्लेख नहीं किया गया.

विनोद सिंह ने साहिबगंज जिले में पुलिस हिरासत में देबू तुरी (35) नाम के शख्स की फरवरी में हुई मौत के संदर्भ में यह सवाल पूछा था.

हालांकि, चोरी करने के संदेह में गिरफ्तार किए गए तुरी की मौत इन आंकड़ों का हिस्सा नहीं है. इसे लेकर विधानसभा में हंगामा भी हुआ.

देबू साहिबगंज जिले के तलझारी पुलिस स्टेशन में चार दिनों तक लॉकअप में रहे थे. कथित तौर पर हिरासत में पीटे जाने की वजह से जिला अस्पताल में उनकी मौत हो गई. इसके बाद सिलसिलेवार प्रदर्शन हुए थे, जिसके बाद दो पुलिस अधिकारियों को निलंबित किया गया.

इस मामले में उपायुक्त द्वारा दिए गए जांच के आदेश के नतीजों का इंतजार है.

देबू के चाचा शिवलाल तुरी ने बताया, ‘देबू को शुरुआत में 60,000 रुपये की चोरी के संदेह में पुलिस ने गिरफ्तार किया था और इसके बाद इस कथित चोरी की राशि को बढ़ाकर 2.75 लाख कर दिया. तीन दिनों तक पुलिस ने उसे प्रताड़ित किया और मेरे सामने भी उसकी पिटाई की. 25 फरवरी को वह बेहोश हो गया और बाद में उसकी मौत हो गई.’

वहीं, साहिबगंज के एसपी अनुरंजन किसपोट्टा ने अधिक जानकारी दिए बिना कहा कि मामले की न्यायिक जांच की जाएगी.

बता दें कि देबू की मौत इस तरह की कोई एकमात्र घटना नहीं है. पिछले महीने बोकारो जिले में कालीचरण केवट नाम के शख्स को बिजली का बल्ब चुराते पकड़ा गया था. पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया और बाद में अत्यधिक मारपीट के बाद उन्होंने अस्पताल में दम तोड़ दिया.

उनके परिवार के सदस्यों ने उन्हें प्रताड़ित किए जाने के आरोप लगाए हैं. इस मामले में बोकारो के एसपी चंदन कुमार झा ने कहा, ‘सच का पता लगाने के लिए मजिस्ट्रेट जांच की जा रही है.’

इससे पहले पिछले साल नवंबर में हत्या के आरोपी 32 साल के एक कैदी ने बिरसा मुंडा सेंट्रल जेल में कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी. अधिकारिक रिपोर्ट में किसी तरह की गड़बड़ी की बात सामने नहीं आई थी लेकिन उनके शव से एक नोट बरामद किया गया था, जिसमें कहा गया था कि ‘जेलर ने मेरी हत्या की है.’