राज्य की सत्तर विधानसभा सीटों में से 47 सीटों पर विजय हासिल करने के साथ ही भाजपा ने बहुमत के 36 के आंकड़े को आसानी से पार कर लिया. हालांकि भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के संभावित मुख्यमंत्री चेहरे- पुष्कर सिंह धामी, हरीश रावत और अजय कोठियाल अपनी-अपनी सीट बचा पाने में असफल रहे.
देहरादून: भाजपा ने बृहस्पतिवार को दो तिहाई बहुमत के साथ उत्तराखंड में सत्ता में वापसी कर एक नया इतिहास रच दिया.
विधानसभा चुनाव के बृहस्पतिवार को घोषित परिणामों में 70 में से 47 सीटों पर विजय हासिल करने के साथ ही भाजपा ने बहुमत के 36 के जादुई आंकड़े को आसानी से पार करते हुए सत्ता की दौड़ में फिर बाजी मार ली.
#UttarakhandAssemblyelectionsResults | BJP confirmed its return to power in Uttarakhand, with the party bagging 47 seats in the 70-member Assembly, according to the Election Commission website. pic.twitter.com/kVe9Pen4kK
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) March 10, 2022
वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश के पुनर्गठन के बाद अस्तित्व में आए इस प्रदेश के चुनावी इतिहास में किसी भी पार्टी ने लगातार दो बार सरकार नहीं बनायी है और भाजपा और कांग्रेस बारी-बारी से सत्ता में आती रही हैं.
हालांकि, इस बार अपने लिए 60 से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य निर्धारित करने वाली भाजपा अपने पुराने प्रदर्शन को नहीं दोहरा पाई. पिछले चुनाव में भाजपा ने 70 में से 57 पर जीत हासिल कर जबरदस्त जनादेश हासिल किया था.
सत्ता विरोधी लहर के दम पर सरकार बनाने का सपना देख रही कांग्रेस का प्रदर्शन भी आशानुरूप नहीं रहा और उसके मुख्यमंत्री पद के अघोषित दावेदार हरीश रावत सहित कई दिग्गज उम्मीदवार चुनाव हार गए.
हालांकि, उसने 2017 के अपने पिछले प्रदर्शन में कुछ सुधार करते हुए 18 सीटें अपने नाम कीं जबकि एक अन्य पर उसका उम्मीदवार बढ़त बनाए हुए है. पिछले चुनाव में कांग्रेस महज 11 सीटों पर सिमट गई थी.
प्रदेश में दो-दो सीटें बहुजन समाज पार्टी तथा निर्दलीय के खाते में गई हैं.
इस बीच, चुनाव में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के अपनी विधानसभा सीट खटीमा को बरकरार रखने में विफल रहने से भाजपा की जीत का मजा किरकिरा हो गया. धामी कांग्रेस के कार्यवाहक प्रदेश अध्यक्ष भुवन चंद्र कापड़ी से 6,579 मतों के अंतर से पराजित हो गए.
धामी मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री रहे स्वामी यतीश्वरानंद हरिद्वार ग्रामीण सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी अनुपमा रावत से हार गए. अनुपमा कांग्रेस नेता हरीश रावत की पुत्री हैं.
प्रदेश में कांग्रेस के चुनावी अभियान की अगुवाई करने वाले रावत लालकुआं सीट से भाजपा प्रत्याशी मोहन सिंह बिष्ट से 17,527 वोटों के भारी अंतर से हार गए. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल भी श्रीनगर सीट से निवर्तमान विधायक धनसिंह रावत के हाथों पराजित हो गए.
जागेश्वर सीट पर अब तक अजेय रहे कांग्रेस के एक और दिग्गज गोविंद सिंह कुंजवाल भाजपा के मोहन सिंह से 5,883 मतों से हार गए.
देहरादून जिले के रायपुर से भाजपा के उमेश शर्मा काउ ने एक बार फिर 30,052 मतों से अपने निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस के हीरा सिंह बिष्ट को हराकर न केवल अपनी सीट बरकरार रखी बल्कि प्रदेश में सबसे बड़ी जीत भी हासिल की.
पिछले चुनाव में भी काउ ने 36,000 मतों से प्रदेश में सबसे बड़े अंतर से जीत हासिल की थी.
आम आदमी पार्टी (आप) के मुफ्त बिजली, मुफ्त तीर्थयात्रा और बेरोजगारी भत्ता सहित अन्य वादे प्रदेश की जनता को लुभाने में विफल रहे और उसका खाता भी नहीं खुल पाया.
आप के मुख्यमंत्री पद के चेहरे रिटायर्ड कर्नल अजय कोठियाल गंगोत्री सीट पर भाजपा के सुरेश चौहान और कांग्रेस के विजयपाल सिंह सजवाण के बाद तीसरे स्थान पर रहे. आप ने प्रदेश की सभी 70 सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ा था.
अगर कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्रों की बात करें, तो इस बार भाजपा को फिर गढ़वाल में अधिक सीटें मिली हैं. पार्टी ने गढ़वाल में 41 में से 29 और कुमाऊं क्षेत्र की 29 में से 18 सीटों पर जीत हासिल की है
2017 में जब भाजपा ने कुल 70 विधानसभा सीटों में से 57 जीती थीं, तब उसमें गढ़वाल क्षेत्र की 34 सीटों का योगदान था. उस समय कहा गया था कि सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत और विजय बहुगुणा सहित क्षेत्र के कई शक्तिशाली कांग्रेस नेता दलबदल कर चुनाव से ठीक पहले भाजपा में शामिल हुए थे.
इस साल हरक सिंह रावत के दोबारा कांग्रेस में लौटने पर कांग्रेस गढ़वाल में अच्छे आश्वस्त थी, हालांकि गुरुवार को आए नतीजों ने इसके विपरीत ही साबित किया है.
हालांकि भाजपा को पिछली बार की तुलना में पांच सीटों का नुकसान हुआ है, लेकिन उसकी जीत में इस क्षेत्र की बड़ी भूमिका है.
कांग्रेस ने गढ़वाल में 2017 की छह की तुलना में इस बार आठ सीटें जीती हैं. बसपा और निर्दलीय को दो-दो सीटें मिली हैं.
कुमाऊं क्षेत्र की कुल 29 सीटों में से भाजपा 2017 के 23 की तुलना में 18 पर सफल रही, जबकि कांग्रेस को लाभ हुआ है. 2017 की पांच सीटों के मुकाबले उसे इस बार 11 सीटें मिली हैं.
राज्य के कुल 13 जिलों में से छह कुमाऊं (नैनीताल जोनल मुख्यालय है) में हैं, जबकि सात गढ़वाल (पौढ़ी गढ़वाल जोनल मुख्यालय है) में हैं.
अब तक राज्य के छह मुख्यमंत्री गढ़वाल से थे, जबकि चार कुमाऊं से थे. उत्तराखंड के राज्य बनने से पहले ही यहां अधिकतर कुमाऊंनी नेताओं का दबदबा रहा है. उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत कुमाऊं से थे. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और बाद मेम उत्तराखंड के पहले मुख्यमंत्री बने एनडी तिवारी भी कुमाऊं से ही थे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)