अदालत ने चारधाम परियोजना पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित उच्चाधिकार समिति के अध्यक्ष और वरिष्ठ पर्यावरणविद रवि चोपड़ा के इस्तीफ़ा को मंजूर करते हुए पूर्व न्यायाधीश एके सीकरी को अध्यक्ष नियुक्त किया है, जो पूरी हिमालयी घाटी पर चारधाम परियोजना के प्रभाव के बारे में विचार करेगी.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को अपने पूर्व न्यायाधीश एके सीकरी को उच्चाधिकार प्राप्त उस समिति (एचपीसी) का अध्यक्ष नियुक्त किया, जो पूरी हिमालयी घाटी पर चारधाम परियोजना के प्रभाव के बारे में विचार करेगी.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने समिति के अध्यक्ष पद से प्रोफेसर रवि चोपड़ा का इस्तीफा मंजूर कर लिया. उन्होंने जनवरी में पत्र लिखकर यह पद छोड़ने की इच्छा जताई थी.
रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चारधाम परियोजना के तहत 12 हजार करोड़ रुपये खर्च करके चार पवित्र शहरों- यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को जोड़ने के लिए सदाबहार सड़क बनाई जानी है.
केंद्र की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि चूंकि यह अदालत जस्टिस (सेवानिवृत्त) सीकरी को चारधाम परियोजना से जुड़ी पर्यावरण संबंधी चिंताओं और अन्य मुद्दों पर विचार करने के लिए गठित निगरानी समिति का अध्यक्ष नियुक्त कर चुकी है तो यह बेहतर होगा कि उन्हें उच्चाधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष के तौर पर नियुक्त कर दिया जाए.
पीठ इस सुझाव पर राजी हो गई और जस्टिस (सेवानिवृत्त) सीकरी को एचपीसी का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया.
चोपड़ा को शीर्ष न्यायालय ने आठ अगस्त 2019 को एचपीसी का अध्यक्ष नियुक्त किया था.
न्यायालय ने पिछले साल 14 दिसंबर को उत्तराखंड में सामरिक रूप से महत्वपूर्ण चारधाम राजमार्ग परियोजना के दोहरी लेन चौड़ीकरण की मंजूरी दी थी और कहा था कि देश की सुरक्षा चिंताएं वक्त के साथ बदल सकती हैं और हाल फिलहाल में देश की गंभीर सुरक्षा चुनौतियां सामने आई हैं.
शीर्ष न्यायालय ने जस्टिस (सेवानिवृत्त) सीकरी की अध्यक्षता में निगरानी समिति गठित करते हुए कहा था, ‘न्यायिक समीक्षा की इस कवायद में अदालत सशस्त्र बलों की ढांचागत आवश्यकताओं का अनुमान नहीं लगा सकती.’
यह समिति चीन के साथ लगने वाली सीमा पर इस महत्वाकांक्षी 900 किलोमीटर की परियोजना पर सीधे न्यायालय को जानकारी देगी.
सर्वोच्च अदालत के समक्ष इसके पहले केंद्र सरकार ने दलील दी थी कि यदि सेना अपने मिसाइल लांचर और भारी मशीनरी को उत्तरी भारत-चीन सीमा तक नहीं ले जा सकती, तो वह सरहद की हिफाजत कैसे करेगी. यह भी तर्क दिया था कि अगर सड़क टूट जाती है, तो सेना युद्ध कैसे लड़ेगी.
मालूम हो कि बीते फरवरी में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त उच्चाधिकार समिति (एचपीसी) के अध्यक्ष और वरिष्ठ पर्यावरणविद रवि चोपड़ा ने समिति के अधिकार क्षेत्र को केवल दो ‘नॉन डिफेंस स्ट्रेचेज’ तक सीमित किए जाने के अदालत के आदेश पर निराशा जताते हुए पद से इस्तीफा दे दिया था.
चोपड़ा ने सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल को भेजे अपने इस्तीफे में कहा था कि समिति के निर्देश और सिफारिशों को सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने या तो अनदेखा किया है या उस पर देरी से प्रतिक्रिया दी है.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 14 दिसंबर के अपने आदेश में 900 किलोमीटर लंबी सड़क परियोजना के 70 फीसदी काम की निगरानी का काम एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली निरीक्षण समिति को सौंप दिया था और समिति की भूमिका को परियोजना के केवल दो ‘नॉन डिफेंस स्ट्रेचेज’ तक सीमित कर दिया था.
केंद्र की इस महत्वकांक्षी 12,000 करोड़ रुपये की राजमार्ग विस्तार परियोजना की परिकल्पना 2016 में की गई थी, जिसमें ऊपरी हिमालय में चार धाम सर्किट- बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री में सभी मौसम में कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए 889 किलोमीटर पहाड़ी सड़कों को चौड़ा किया गया था.
2018 में एक गैर सरकारी संगठन द्वारा पेड़ों की कटाई, पहाड़ियों को काटने और खुदाई की गई सामग्री को डंप करने के कारण हिमालयी पारिस्थितिकी पर इसके संभावित प्रभाव को लेकर स परियोजना को चुनौती दी गई थी.
2019 में सुप्रीम कोर्ट ने इन मुद्दों की जांच के लिए चोपड़ा की अगुवाई वाली एचपीसी का गठन किया था और सितंबर 2020 में सड़क की चौड़ाई आदि को लेकर दी गई उनकी सिफारिश को स्वीकार कर लिया था.
नवंबर 2020 में रक्षा मंत्रालय ने सेना की जरूरतों को पूरा करने का हवाला देते हुए चौड़ी सड़कों की मांग उठाई थी.
दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने सितंबर 2020 के आदेश में संशोधन करते हुए चारधाम राजमार्ग परियोजना को मंजूरी दे दी. सड़क निर्माण से होने वाली पर्यावरणीय दिक्कतों से संबंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा था कि अदालत परियोजना की न्यायिक समीक्षा में सशस्त्र बलों की बुनियादी जरूरत का अनुमान नहीं लगा सकती.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)