छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा ज़िले की एक विशेष अदालत ने सोनी सोरी और तीन अन्य को वर्ष 2011 के राजद्रोह के मामले से बरी करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष सोरी और अन्य के ख़िलाफ़ आरोप साबित नहीं कर सका, उसके कई गवाहों ने विरोधाभासी बयान दिए. सोरी पर आरोप था कि वे माओवादियों तक पैसा पहुंचाने का काम करती थीं.
रायपुर: छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले की एक विशेष अदालत ने आदिवासी कार्यकर्ता सोनी सोरी को मंगलवार को 2011 में उनके खिलाफ दर्ज एक राजद्रोह के मुकदमे से बरी कर दिया.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सोरी और तीन अन्य लोगों पर आरोप था कि वे माओवादियों को पैसा पहुंचाते थे. इनमें एक एस्सार कंपनी के अधिकारी भी शामिल थे. इसी मामले में सोरी को 2011 में दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था.
इस मामले में बरी होने के साथ ही सोरी पिछली भाजपा सरकार के दौरान उनके खिलाफ दर्ज हुए सभी मामलों से बरी हो गई हैं. दंतेवाड़ा जिले की आदिवासी कार्यकर्ता सोरी बस्तर में सुरक्षा बलों और माओवादियों द्वारा आम आदिवासियों की निर्मम हत्याओं का मुद्दा उठाती रही हैं.
विशेष जज विनोद कुमार देवांगन ने सोरी, उनके साथी लिंगाराम कोडोपी, एक ठेकेदार बीके लाला और एस्सार के अधिकारी डीवीसीएस वर्मा को सितंबर 2011 में दंतेवाड़ा पुलिस द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी (एफआईआर) में दोषी नहीं पाया. पुलिस ने आरोप लगाया था कि आरोपी लाला ने एस्सार कंपनी की ओर से माओवादियों को देने के लिए 15 लाख रुपये सोरी और कोडोपी को दिए थे.
28 जनवरी को यह मामला जगदलपुर की विशेष एनआईए कोर्ट से दंतेवाड़ा की एक विशेष कोर्ट में स्थानांतरित किया गया था.
आदेश की प्रति के अनुसार, अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष सोरी और अन्य के खिलाफ मामला साबित नहीं कर सका. अदालत ने दर्ज किया कि अभियोजन पक्ष के कई गवाहों ने विरोधाभासी बयान दिए.
सबूतों के अभाव में चारों आरोपियों को बरी करते हुए कोर्ट ने लिखा, ‘अभियोजन पक्ष सिवाय शक के आरोपियों के खिलाफ आरोपों को साबित नहीं कर पाया.’
पुलिस पर अपने साथ बर्बरता किए जाने के आरोप लगाने वाली सोरी ने फैसले का स्वागत करते हुए एक मार्मिक सवाल पूछा है, ‘क्या वे मुझे मेरे 12 साल वापस कर सकते हैं?’