डॉ. कफ़ील ख़ान को अगस्त 2017 में गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हुई ऑक्सीजन त्रासदी के बाद निलंबित किया गया था. इसके बाद जुलाई 2019 में बहराइच ज़िला अस्पताल में मरीज़ों का जबरन इलाज करने और सरकार की नीतियों की आलोचना करने के आरोप में उन्हें दूसरी बार निलंबित किया गया था. विधान परिषद की 36 सीटों के लिए नौ अप्रैल को चुनाव होना है.
लखनऊः समाजवादी पार्टी ने आगामी उत्तर प्रदेश विधान परिषद चुनावों के लिए डॉ. कफील खान को अपना उम्मीदवार बनाया है.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, कफील खान सपा की टिकट पर देवरिया-कुशीनगर सीट से चुनावी मैदान में उतर सकते हैं.
साल 2016 में इस सीट से समाजवादी पार्टी के रामा अवध यादव ने जीत दर्ज की थी.
बता दें कि उत्तर प्रदेश विधान परिषद की 36 सीटों के लिए नौ अप्रैल को चुनाव होगा. मतगणना 12 अप्रैल को होगी.
Met with Honourable Former Chief Minister Shri @yadavakhilesh sir and presented him a copy of #TheGorakhpurHospitalTragedy 🙏 pic.twitter.com/B22rGgTv97
— Dr Kafeel Khan (@drkafeelkhan) March 15, 2022
2017 बीआरडी अस्पताल में हुई ऑक्सीजन त्रासदी से सुर्खियों में आए कफील खान ने मंगलवार को लखनऊ में अखिलेश यादव से सपा के पार्टी कार्यालय में मुलाकात की थी.
उन्होंने अखिलेश यादव को अपनी किताब ‘द गोरखपुर हॉस्पिटल ट्रैजेडी‘ की एक प्रति भी दी थी.
उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले साल नवंबर में कफील खान की सेवाएं समाप्त कर दी थी.
बता दें कि डॉ. कफ़ील ख़ान 2017 में उस समय सुर्खियों में आए थे, जब गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में एक सप्ताह के भीतर 60 से ज़्यादा बच्चों की मौत कथित तौर पर ऑक्सीजन की कमी से हो गई थी. इस घटना के बाद इंसेफेलाइटिस वार्ड में तैनात डॉ. ख़ान को निलंबित कर दिया गया था.वह लगभग नौ महीने तक जेल में भी रहे थे. वह इस मामले में नौ आरोपियों में से एक थे.
नवजातों की मौत के दो साल बाद 27 सितंबर 2019 को कफील खान को मामले में सभी आरोपों से बरी कर दिया गया था. अस्पताल की आंतरिक जांच समिति ने उन्हें मामले में आरोप मुक्त कर दिया था.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, गोरखपुर अस्पताल में ऑक्सीजन सप्लाई की कथित कमी के बाद कफील खान ने कई नवजातों की जिंदगी बचाने के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था की थी.
इसके बावजूद आईपीसी की धारा 409 (आपराधिक विश्वासघात), 308 (गैर इरादतन हत्या का प्रयास) और 120बी (आपराधिक षड्यंत्र) के तहत उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई. उन पर यह भी आरोप लगाया गया कि मेडिकल ऑक्सीजन की कमी का कारण उनकी लापरवाही थी.
हालांकि, इस मामले में गठित जांच समिति का कहना था कि वह इंसेफलाइटिस वॉर्ड के नोडल अधिकारी नहीं थे और उनकी लापरवाही की वजह से मौतें नहीं हुईं.
मालूम हो कि इसके बाद कफील खान ने 12 दिसंबर 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएए) के विरोध में हुए प्रदर्शनों के दौरान भाषण दिया था, जिसके बाद उनके खिलाफ भड़काऊ भाषण देने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई थी.
तब उत्तर प्रदेश पुलिस के विशेष कार्यबल ने उन्हें मुंबई में गिरफ्तार भी किया था, जहां कफील सीएए विरोधी प्रदर्शनों में हिस्सा लेने गए थे.
अलीगढ़ की एक अदालत ने उन्हें जमानत दी थी, लेकिन उन्हें जेल से रिहा नहीं किया गया था, क्योंकि उत्तर प्रदेश पुलिस ने उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत मामला दर्ज किया गया था.
सितंबर 2020 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एनएसए के तहत कफील की हिरासत को रद्द कर दिया था और सरकार को उन्हें तुरंत रिहा करने के निर्देश दिए थे.
तब तत्कालीन चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था.