गुजरात हाईकोर्ट ने दो दंपतियों की हिरासत में कथित यातना के मामले की जांच के आदेश दिए

यह मामला चार फरवरी 2015 का है, जब ग़ैर-अधिसूचित जनजाति से ताल्लुक रखने मनसुख कुमारखानिया, उनकी पत्नी मीना, भाई रसिक और उनकी पत्नी रीना को लूट के प्रयास के एक मामले में गिरफ़्तार किया था. आरोप है कि पुलिस ने इन चार लोगों को तब तक प्रताड़ित किया, जब तक उन्होंने एक कथित अपराध को कबूल नहीं कर लिया. 

गुजरात हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

यह मामला चार फरवरी 2015 का है, जब ग़ैर-अधिसूचित जनजाति से ताल्लुक रखने मनसुख कुमारखानिया, उनकी पत्नी मीना, भाई रसिक और उनकी पत्नी रीना को लूट के प्रयास के एक मामले में गिरफ़्तार किया था. आरोप है कि पुलिस ने इन चार लोगों को तब तक प्रताड़ित किया, जब तक उन्होंने एक कथित अपराध को कबूल नहीं कर लिया.

गुजरात हाईकोर्ट. (फोटो साभार: gujarathighcourt.nic.in)

नई दिल्लीः गुजरात हाईकोर्ट ने गैर-अधिसूचित जनजाति से ताल्लुक रखने वाले दो दंपतियों को कथित तौर पर हिरासत में दी गई प्रताड़ना के संबंध में जांच के आदेश दिए हैं.

अदालत ने कहा कि एक विशिष्ट समुदाय में जन्म लेने की वजह से ये पीड़ित प्रतीत होते हैं.

डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस ने कथित तौर पर इन चार लोगों को तब तक प्रताड़ित किया, जब तक उन्होंने एक कथित अपराध को कबूल नहीं कर लिया और फिर उनके खिलाफ चार अन्य अनसुलझे मामलों में केस दर्ज किया गया.

जस्टिस निखिल एस. करील ने 16 मार्च को अहमदाबाद रेंज के पुलिस महानिरीक्षक (आईजीपी) को जांच का आदेश देते हुए कहा कि पीड़ितों को मुआवजा क्यों नहीं दिया जाना चाहिए?

जज ने कहा, ‘अदालत की प्रथमदृष्टया राय है कि यह संबंधित प्रशासन द्वारा अत्यधिक ज्यादती का स्पष्ट मामला है और यहां तक कि डिप्टी एसपी (पुलिस उपाधीक्षक) और एसपी (पुलिस अधीक्षक) स्तर के निष्पक्ष जांच करने वाले वरिष्ठ अधिकारियों ने अपने अधीनस्थों की सुरक्षा के लिए एक दिखावटी जांच की.’

उन्होंने कहा, ‘याचिकाकर्ता एक विशिष्ट समुदाय में पैदा होने की वजह से पीड़ित प्रतीत होते हैं. हालांकि, गवाह इस बात का समर्थन करते प्रतीत होते हैं कि याचिकाकर्ता नंबर एक (मनसुख) और याचिकाकर्ता नंबर दो (रसिक) दोनों भाई हैं और याचिकाकर्ता नंबर तीन (मीना) और याचिकाकर्ता नंबर चार (रीना) उनकी पत्नियां हैं और वे ईमानदारी से जीवनयापन कर रहे हैं. हालांकि, इन पहलुओं पर संबंधित अधिकारियों द्वारा विचार नहीं किया गया.’

जस्टिस करील ने कहा, ‘अदालत को पता चला है कि प्रथमदृष्टया याचिकाकर्ताओं को लगभग पांच एफआईआर में फंसाया गया है और याचिकाकर्ताओं को गलत जांच की वजह से दर्द, पीड़ा और रोष का सामना करना पड़ा है. अदालत द्वारा जांच का आदेश दिए जाने के बाद से गलत शब्द का इस्तेमाल किया जाता रहा है, लेकिन याचिकाकर्ताओं को गिरफ्तार किए जाने का तथ्य, पुलिस द्वारा उन्हें पीटे जाने का तथ्य, संबंधित निचली अदालतों द्वारा उन्हें रिहा किए जाने के तथ्य को नजरअंदाज या अनदेखा नहीं किया जा सकता.’

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, यह मामला चार फरवरी 2015 का है, जब धंधुका पुलिस के सब इंस्पेक्टर राजेंद्र करमाटिया ने मनसुख कुमारखानिया, उनकी पत्नी मीना, भाई रसिक और उनकी पत्नी रीना को लूट के प्रयास के एक मामले में गिरफ्तार किया था.

ये चारों हाशिये पर मौजूद देवीपूजक समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और अहमदाबाद जिले के तगड़ी गांव में रहते हैं. कुछ दिनों के भीतर इन चारों को 2013 और 2015 के बीच विभिन्न पुलिस थानों में दर्ज चार अन्य अपराधों में उनके इकबालिया बयान के आधार पर गिरफ्तार किया गया. इसमें बरवाला पुलिस थाने में दर्ज हत्या का भी एक मामला है.

रिपोर्ट के मुताबिक, बरवाला पुलिस ने एक महीने बाद मामले में एक डिस्चार्ज समरी भी दायर की थी. सब इंस्पेक्टर करमाटिया ने इकबालिया बयानों के आधार पर अन्य मामलों में चार्जशीट दायर की थी.

ये बयान कथित तौर पर प्रताड़ना के जरिये उगलवाए गए थे. पीड़ितों ने मजिस्ट्रेट और हाईकोर्ट के समक्ष इस यातना को लेकर शिकायत की थी और मेडिकल सर्टिफिकेट में उनके इन आरोपों की पुष्टि हुई थी.

याचिकाकर्ताओं के वकील हार्दिक जानी ने बताया कि विशेष रूप से महिलाओं को हिरासत में बेहद कठिन समय से गुजरना पड़ा. गिरफ्तारी के समय इन महिलाओं में से एक गर्भवती थी, जबकि अन्य के दो छोटे बच्चे थे.

जानी ने कहा, ‘इन दोनों महिलाओं को बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा. इन झूठे मामलों में जेल भेजे जाने से पहले इन्हें महीनों तक एक पुलिस स्टेशन से दूसरे पुलिस स्टेशन तक घसीटा गया. पुलिसकर्मियों ने गरीब और अशिक्षित होने की वजह से इन्हें निशाना बनाया. हमने दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ जांच और राज्य सरकार की ओर से पीड़ितों को मुआवजा दिए जाने की मांग की है.’

इस मामले पर अब अगली सुनवाई 12 अप्रैल को होगी.