कश्मीर में 1990 से 2021 के बीच 89 कश्मीरी पंडितों की हत्या हुईः आरटीआई

बीते साल आरटीआई कार्यकर्ता पीपी कपूर ने जम्मू कश्मीर पुलिस और उपराज्यपाल के समक्ष दायर आवेदन में कश्मीर पंडितों के ख़िलाफ़ हिंसा, उनके विस्थापन और पुनर्वास संबंधी जानकारी मांगी थी. इसके जवाब में बताया गया है कि हिंसा या हिंसा की धमकियों के चलते घाटी छोड़कर विस्थापित हुए 1.54 लाख लोगों में से 88 फीसदी हिंदू थे लेकिन 1990 के बाद से हुई हिंसा में मरने वाले लोगों में सर्वाधिक अन्य धर्मों के थे.

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(फोटो: रॉयटर्स)

बीते साल आरटीआई कार्यकर्ता पीपी कपूर ने जम्मू कश्मीर पुलिस और उपराज्यपाल के समक्ष दायर आवेदन में कश्मीर पंडितों के ख़िलाफ़ हिंसा, उनके विस्थापन और पुनर्वास संबंधी जानकारी मांगी थी. इसके जवाब में बताया गया है कि हिंसा या हिंसा की धमकियों के चलते घाटी छोड़कर विस्थापित हुए 1.54 लाख लोगों में से 88 फीसदी हिंदू थे लेकिन 1990 के बाद से हुई हिंसा में मरने वाले लोगों में सर्वाधिक अन्य धर्मों के थे.

(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्लीः एक आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा दायर किए गए सूचना के अधिकार आवेदन के जवाब में पता चला कि हिंसा या हिंसा की धमकियों की वजह से कश्मीर घाटी छोड़कर विस्थापित हुए 1.54 लाख लोगों में से 88 फीसदी हिंदू थे लेकिन 1990 के बाद से हुई हिंसा में मरने वाले लोगों में सर्वाधिक लोग अन्य धर्मों के थे.

कश्मीरी पंडितों की दशा को लेकर कथित तौर पर ध्यान आकर्षित करने को लेकर बनाई गई एक फिल्म की रिलीज के बाद उपजे उन्माद को लेकर यह निष्कर्ष एक नया परिप्रेक्ष्य सामने रखते हैं. हालांकि, इन निष्कर्षों में मुख्य विवरण शामिल नहीं हैं.

हरियाणा के समालखा के रहने वाले आरटीआई कार्यकर्ता पीपी कपूर ने जम्मू कश्मीर पुलिस और सूबे के उपराज्यपाल के समक्ष पिछले साल आरटीआई दायर की थी, जिसमें कश्मीर पंडितों के खिलाफ हिंसा, उनके विस्थापन और पुनर्वास के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी मांगी गई थी.

कपूर को मुहैया कराए गए आंकड़ों से पता चलता है कि हिंसा और हिंसा की धमकियों की वजह से कश्मीर घाटी से 1.54 लोग विस्थापित हुए थे, जिनमें से लगभग 88 फीसदी हिंदू थे. हालांकि, इन प्रभावित लोगों में से जिन लोगों की मौत हुई, उनमें सर्वाधिक हिंदू नहीं थे.

कपूर ने हाल ही में इन निष्कर्षों को सार्वजनिक किया है लेकिन उन्होंने इस तथ्य का उल्लेख नहीं किया कि जो डेटा उन्हें मुहैया कराए हैं, उसमें 1989 में जम्मू कश्मीर में 100 से अधिक कश्मीरी पंडितों की हत्या का कोई विवरण नहीं है.

उनकी आरटीआई के निष्कर्ष 1990 के बाद से जुलाई 2021 तक की अवधि के ही हैं.

कपूर ने कहा, ‘1990 में जम्मू कश्मीर में उग्रवाद के उभार के साथ, जब निर्दोष लोगों की हत्याएं शुरू हो गई थी. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भाजपा ने इन हत्याओं को न सिर्फ भारत में बल्कि विश्व में कश्मीरी पंडितों के बहुत बड़े नरसंहार के रूप में पेश करना शुरू किया. एक सुनियोजित दुष्प्रचार के तहत कश्मीरी मुस्लिमों को खलनायक और आतंकवादी के रूप में पेश किया गया. इन तरह के दावों का प्रचार कर आरएसएस, भाजपा ने समाज का ध्रुवीकरण करने और देश में चुनावों में वोट हासिल करने के अपने एजेंडा को लागू किया.’

कपूर ने 22 जुलाई 2021 को जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल के कार्यालय में आवेदन दायर किया था. आवेदन में 10 सवाल पूछे गए थे. इस आवेदन को जम्मू कश्मीर के राज भवन ने छह अगस्त को श्रीनगर में आपदा, प्रबंधन, राहत पुनर्वास और पुनर्निर्माण विभाग को सौंपा.

विस्थापित 1.54 लाख लोगों में 12,000 से अधिक मुस्लिम थे

उनके सवाल के जवाब में जम्मू के राहत एवं पुनर्वास आयुक्त के कार्यालय ने उठाए गए सभी बिंदुओं पर जानकारी के साथ नौ सितंबर को बताया कि 1990 में घाटी में उथल-पुथल की वजह से कश्मीरी पंडितों को जम्मू कश्मीर से विस्थापित होना पड़ा था.

कपूर ने कहा, ‘विभाग द्वारा विस्थापन और पुनर्वास को लेकर मुहैया कराए गए विवरण से पता चला कि बीते 30 सालों में कुल 1.54 लाख विस्थापित हुए हैं जिनमें से 1,35,426 (88 फीसदी) हिंदू थे.’

आंकड़ों से पता चलता है कि विभाग में 44,283 परिवार और 1,54,161 लोग पंजीकृत हैं. इनमें से कुल 21,192 परिवार और 70,218 लोगों को सरकारी सहायता मुहैया कराई जा रही है. इनमें 53,978 हिंदू, 11,212 मुस्लिम, 5,013 सिख और 15 अन्य हैं.

लगभग आधे विस्थापितों को कोई सरकारी सहायता नहीं

जवाब में कहा गया कि विस्थापित हुए लोगों में से 23,091 परिवारों और 83,943 लोगों को कोई सहायता मुहैया नहीं कराई गई. इसमें 81,448 हिंदू, 949 मुस्लिम, 1,542 सिख और चार अन्य हैं.

विस्थापितों को वित्तीय मदद सहित मुहैया कराई जा रही सुविधाओं के सवाल पर विभाग ने कहा, ‘प्रत्येक पंजीकृत शख्स को प्रति माह नकद सहायता के रूप में 3,250 रुपये दिए जा रहे हैं. इसके अलावा नौ किलोग्राम चावल, दो किलोग्राम आटा और एक किलोग्राम चीनी हर महीने प्रत्येक परिवार को दी जा रही है.’

आरटीआई कार्यकर्ता कपूर ने द वायर  को बताया कि नरेंद्र मोदी सरकार या जम्मू कश्मीर प्रशासन ने अभी तक उन आकंड़ों का खुलासा नहीं किया है कि राज्य से पलायन कर गए कितने कश्मीरी पंडितों को जम्मू कश्मीर में दोबारा बसाया गया है.

मौतों की संख्या

इसके अलावा श्रीनगर के डीएसपी और कश्मीर में केंद्रीय सूचना अधिकारी द्वारा कपूर को मुहैया कराई गई जानकारी से पता चला है कि 1990 से 2021 की अवधि में राज्य में आतंकियों ने कुल 1,724 लोगों की हत्या की. जवाब में कहा गया कि इनमें से 89 कश्मीरी पंडित थे जबकि बाकी 1,635 अन्य धर्मों के थे.

कपूर ने कहा कि आंकड़ों से पता चलता है कि 1990 में उग्रवाद के शुरू होने से घाटी में मारे गए अधिकतर लोग मुस्लिम थे.

उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर में हिंसा के सबसे बड़े शिकार के रूप में सिर्फ कश्मीरी पंडितों को दर्शाना गलत होगा.

जैसा कि पहले भी बताया गया है कि कपूर द्वारा प्राप्त आंकड़े 1990 से हैं और इसमें 1989 में राज्य में मारे गए लगभग 100 कश्मीरी पंडितों की हत्या का कोई विवरण नहीं है.

हाल ही में एक मीडिया हाउस की फैक्ट चेकिंग टीम ने कपूर से कुछ स्पष्टीकरण के लिए संपर्क किया था.

इनके नतीजों से दो पहलू सामने आए, जिनसे पता चला कि हत्याओं के आंकड़े पूरे राज्य के थे न कि सिर्फ श्रीनगर के और 1989 में हुई हत्याएं (जब सामूहिक हत्याएं शुरू हुईं) इसमें शामिल नहीं हैं.

द हिंदू  के लिए की गई शुजात बुखारी की 2010 की रिपोर्ट के मुताबिक, 1989 के बाद से घाटी में 219 कश्मीरी पंडितों की हत्या हुई है.

इस रिपोर्ट के मुताबिक, तब पूर्व राजस्व मंत्री रमन भल्ला ने जम्मू कश्मीर विधानसभा में एक सवाल के जवाब में कहा था कि 1989 से 2004 के दौरान कश्मीर में 219 पंडितों की हत्या हुई.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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