प्रसिद्ध मानवविज्ञानी और समाजशास्त्री फिलिपो ओसेला ने पिछले तीस वर्षों में केरल में सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों पर व्यापक शोध किया है. वे गुरुवार को ब्रिटेन से तिरुवनंतपुरम एक सम्मेलन में भाग लेने आए थे, लेकिन बिना कोई स्पष्ट कारण बताए ही उन्हें हवाई अड्डे से उनके देश वापस भेज दिया गया.
नई दिल्ली: प्रसिद्ध ब्रिटिश मानवविज्ञानी और समाजशास्त्री फिलिपो ओसेला गुरुवार 24 मार्च को ब्रिटेन से केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम एक सम्मेलन में भाग लेने आए थे, लेकिन उन्हें तिरुवनंतपुरम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से ही वापस उनके देश भेज दिया गया.
इंडियन एक्सप्रेस द्वारा प्रकाशित खबर के मुताबिक, इस संबंध में अधिकारियों ने कोई विशेष कारण नहीं बताया है.
ओसेला ब्रिटेन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स में मानव विज्ञान और दक्षिण एशियाई अध्ययन के प्रोफेसर हैं. वह केरल के विशेषज्ञ हैं और उन्होंने राज्य में 30 से अधिक वर्षों तक सके सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन पर व्यापक शोध किया है. उन्हें सम्मेलन के प्रमुख चेहरे के तौर पर प्रस्तुत किया गया था.
सूत्रों ने बताया कि उन्हें शुक्रवार को तिरुवनंतपुरम में केरल के तटीय समुदायों पर आधारित एक सम्मेलन में भाग लेना था, जिसे कोचीन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय; तिरुवनंतपुरम के सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज़; केरल विश्वविद्यालय और यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स द्वारा आयोजित किया जा रहा था.
जब ओसेला के निर्वासन के बारे में पूछा गया तो तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे में विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (एफआरआरओ) के एक आव्रजन अधिकारी ने बताया कि उनके निर्वासन के कारण का खुलासा नहीं किया जा सकता है. अधिकारी ने कहा, ‘उच्च अधिकारियों के आदेश के अनुसार ऐसा किया गया और कोई कारण नहीं बताया जा सकता है.’
खुद को एयरपोर्ट से निर्वासित किए जाने की पुष्टि करते हुए ओसेला ने दुबई हवाई अड्डे से द इंडियन एक्सप्रेस को भेजे गए एक ईमेल में कहा कि उन्हें भारतीय अधिकारियों द्वारा बिना किसी स्पष्टीकरण के प्रवेश से वंचित कर दिया गया. दुबई हवाई अड्डे पर वह वापस अपने देश जाने के लिए विमान का इंतजार कर रहे थे.
ओसेला के मुताबिक, गुरुवार सुबह जब वे फ्लाइट से दुबई होते हुए तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे पहुंचे तो उन्हें फ्लाइट सहायक से संपर्क करने कहा गया. फिर उन्हें एक व्यक्ति के पास ले जाया गया जो बाहर उनका इंतजार कर रहा था.
ओसेला ने बताया, ‘मुझे इमिग्रेशन डेस्क पर ले जाया गया और सब कुछ सामान्य दिखाया गया. लेकिन मेरा पासपोर्ट स्कैन करने के बाद उन्होंने मेरी फोटो और फिंगरप्रिंट लिए और मुझे बताया कि मुझे भारत में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है और मुझे तुरंत निर्वासित कर दिया जाएगा.’
उन्होंने आगे बताया, ‘वास्तव में फैसला मेरे पहुंचने से पहले ही ले लिया गया था, क्योंकि एमिरेट्स (विमानन कंपनी) का एक कर्मचारी पहले से ही दुबई की फ्लाइट के द्वारा मेरे निर्वासन की व्यवस्था करने के लिए मौजूद था.’
जब ओसेला से पूछा गया कि क्या उन्हें उनका निर्वासन किए जाने के संबंध में कोई जानकारी दी गई, उन्होंने बताया, ‘आव्रजन कर्मचारी और आव्रजन पर्यवेक्षक का व्यवहार बेहद ही अमित्रतापूर्ण और असभ्य था. उन्होंने मुझे यह बताने से इनकार कर दिया कि मुझे (भारत) आने की क्यों अनुमति नहीं है और वापस भेज दिया. सिर्फ इतना कहा कि यह भारत सरकार का आदेश है.’
उन्होंने कहा कि उनका एक साल का शोध वीजा अप्रैल के मध्य में ही समाप्त हो रहा है. उन्होंने कहा, ‘हालांकि मेरी वापसी की उड़ान समाप्ति तिथि से पहले ही थी. हां, मेरे पासपोर्ट में पाकिस्तान के लिए कुछ पुराने वीजा हैं, क्योंकि मैं दक्षिण एशिया का विशेषज्ञ हूं. इन वीजा की वजह से मुझे कभी भी केरल या भारत में प्रवेश करने से नहीं रोका गया था.’
ओसेला का भारत, विशेष रूप से केरल के साथ संबंध 1980 के दशक के अंत में शुरू हुआ. उन्होंने राज्य में समुदायों के भीतर लोगों के जीवन, रिश्तों, प्रवृत्तियों और सुधारों पर व्यापक रूप से शोध प्रकाशित किया है. उनके हालिया कार्यों में केरल में इस्लामी सुधारों के विभिन्न पहलुओं के उद्भव और धार्मिक परंपरा, राजनीति और आर्थिक कार्रवाई के बीच संबंधों की खोज है.
वह मछुआरों और उनकी गतिविधियों में जोखिम के प्रति उनके दृष्टिकोण पर भी शोध कर रहे हैं. यह एक ऐसा क्षेत्र जो उस सम्मेलन का भी हिस्सा था, जिसमें उन्हें भाग लेना था. सम्मेलन का विषय ‘केरल के तटीय समुदायों की आजीविका और जीवन से जुड़े उभरते विषय’ था.
ओसेला और उनके काम को कई वर्षों से जानने वाले एक विद्वान ने नाम न छापने की शर्त पर इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि वह उन्हें निर्वासित करने के निर्णय पर हैरान हैं, क्योंकि उनका काम शायद ही किसी गर्म राजनीतिक मुद्दे को छूता था.
उन्होंने कहा, ‘वह अपने सावधानीपूर्ण दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं. हालांकि उन्होंने केरल में मुस्लिम समुदाय के बारे में बहुत अध्ययन किया, ये ऐसे काम थे जो उन्होंने कम से कम एक दशक पहले किए थे और वह हमेशा राजनीतिक इस्लाम और संबंधित विवादास्पद विषयों से दूर रहे.’
सम्मेलन के आयोजकों में से एक ने कहा, ‘न तो सम्मेलन और न ही आयोजकों से राजनीतिक रूप से संवेदनशील कोई विषय जुड़ा था. यह आयोजन तो कुछ सरकारी एजेंसियों, विश्वविद्यालयों और क्षेत्र के कुछ विशिष्ट शीर्ष शिक्षाविदों के साथ संयुक्त रूप से किया जा रहा था.’