सिविल सेवा और अन्य सरकारी परीक्षाओं की तैयारी का गढ़ माने जाने वाले दिल्ली के मुखर्जी नगर में छात्र प्रदर्शन के साथ क्रमिक भूख हड़ताल पर हैं. इनकी मुख्य मांग है कि इन्हें सिविल सेवा परीक्षा में अतिरिक्त मौका दिया जाए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने हलफ़नामा दाख़िल कर कहा है कि ऐसा करना संभव नहीं है.
नई दिल्ली: कोविड-19 महामारी की वजह से लगे लॉकडाउन की मार देश के छात्र-छात्राओं पर भी पड़ी है. इन छात्रों को कोरोना संबंधित समस्याओं के साथ-साथ कई तरह की प्रशासनिक दिक्कतों का भी सामना करना पड़ रहा है.
ऐसे में लगभग डेढ़ साल से प्रदर्शन कर रहे छात्र-छात्राओं ने अपनी मांगों के साथ पुरजोर तरीके से विरोध का बिगुल बजा दिया है.
ये छात्र तीन मार्च से सिविल सेवा और अन्य सरकारी परीक्षाओं की तैयारी का गढ़ माने जाने वाले दिल्ली के मुखर्जी नगर में नियमित तौर पर 24 घंटे प्रदर्शन कर रहे हैं. इसके साथ ही रोटेशन के आधार पर भूख हड़ताल भी की जा रही है, ताकि सरकार के कानों तक इनकी आवाज पहुंच सके.
इस धरने में सभी प्रतियोगी परीक्षाओं- यूपीएससी, एसएससी, बैंकिंग, रेलवे, सेना, नौसेना की तैयारी कर रहे छात्र शामिल हैं. ये छात्र ‘कॉम्पेनसेंट्री अटैम्प्ट फॉर ऑल’ की मांग कर रहे हैं, यानी सभी भर्ती परीक्षाओं में इन्हें दो मौके दिए जाएं और इसके साथ ही दो साल उम्र में छूट भी दी जाए. इसके अलावा परीक्षाओं में पारदर्शिता एक बड़ा मुद्दा है.
हालांकि, छात्रों के इस आंदोलन के बीच केंद्र सरकार ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा है कि संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की सिविल सेवा परीक्षा में अतिरिक्त मौका देना संभव नहीं है, जिस पर छात्रों ने पूर्व में सरकार द्वारा नियमों में संशोधन का हवाला दिया है.
कोरोना काल के दौरान आधी-अधूरी तैयारी के साथ परीक्षाएं दीं
पूर्व में शिक्षक रह चुके और छात्रों के इस आंदोलन से जुड़े सोहन कुमार कहते हैं, ‘सभी छात्रों का मुख्य मुद्दा यह है कि कोरोना के दौरान छात्रों का जो नुकसान हुआ है, जिसमें कई छात्र परीक्षाएं नहीं दे पाए. इस दौरान समय पर वैकेंसी नहीं निकली या फिर पारदर्शिता के मुद्द हैं. इन सभी मुद्दों को लेकर हम आंदोलन कर रहे हैं.
वह कहते हैं, ‘हमारी मांग है कि सभी छात्रों को उम्र में दो साल की छूट और दो अटैम्पट के मौके दिए जाएं.‘
सोहन का साल 2020 में यूपीएससी के लिए आखिरी अटैम्प्ट था.
उनका कहना हैं, ‘मैं सिस्टम से परेशान हो गया था क्योंकि सिस्टम ने आश्वासन दिया था कि एक अतिरिक्त मौका दिया जाएगा लेकिन फिर नहीं दिया गया, जिससे आजिज आकर यह आंदोलन करना पड़ा.‘
इस प्रदर्शन को वक्त की जरूरत बताते हुए दिल्ली यूनिवर्सिटी की लॉ स्टूडेंट और यूपीएससी की तैयारी कर रहीं बबीता कहती हैं, ‘कोरोना काल के दौरान जो भी सरकारी प्रतियोगी परीक्षाएं हुई हैं, उनमें या तो छात्र परीक्षा नहीं दे पाए या जिन छात्रों ने परीक्षाएं दीं, उनकी कोई खास तैयारी नहीं थी और इसकी वजह साफ थी कि ये छात्र कोरोना से जूझ रहे थे, इनमें से कई क्वारंटीन थे, इनके परिवार कोरोना से जूझ रहे थे. कुछ छात्र तो ऐसे भी थे, जो फ्रंटलाइन वर्कर के तौर पर काम कर रहे थे, जिन्हें परीक्षा के लिए समय ही नहीं मिल पाया.’
मूल रूप से हरियाणा की रहने वाली बबीता ने द वायर को बताया, ‘मुखर्जी नगर में यूपी, बिहार, हरियाणा से आकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों की संख्या सबसे अधिक रहती है, लेकिन कोरोना के दौरान इन प्रवासी छात्रों को भी अपने घर लौटने को मजबूर होना पड़ा. आर्थिक तंगी से जूझ रहे अधिकतर गरीब छात्रों के पास तैयारी करने के लिए कोई संसाधन नहीं था तो ऐसे में परीक्षाओं के लिए इनकी तैयारी आधी-अधूरी या न के बराबर रही.’
बिहार के पटना के रहने वाले और पिछले साढ़े चार साल से दिल्ली में रहकर एसएससी-सीजीएल की तैयारी कर रहे संजीव कुमार कहते हैं, ‘कोरोना काल के दौरान जो थोड़ी बहुत सरकारी परीक्षाएं भी हुई हैं, उनमें अधिकतर छात्र परीक्षा ही नहीं दे पाए और जिन छात्रों ने परीक्षाएं दी, उनकी तैयारी नहीं थी यानी उन्होंने आधी-अधूरी तैयारी के साथ परीक्षा दी थी.’
संजीव द वायर से कहते हैं, ‘सरकार ने कोरोना काल के समय छात्रों की सुध ही नहीं ली. कई परीक्षाएं हुईं ही नहीं, जिस वजह से कई छात्र उम्र के क्राइटेरिया में अनफिट हो गए. इस तरह इसका खामियाजा तो छात्रों को ही भुगतना पड़ रहा है.’
परीक्षा के दो और मौके और उम्र में छूट की मांग
बबीता कहती हैं कि यूपीएससी के लिए 2020 में खुद उनका आखिरी अटेम्प्ट (परीक्षा देने का मौका) था, लेकिन कोरोना की वजह से वह तैयारी नहीं कर पाईं.
वह बताती हैं, ‘सभी परीक्षाओं की अलग-अलग चुनौतियां रही हैं. कोरोना की वजह से सेना या नौसेना जैसी कई भर्तियां हुईं ही नहीं. इस वजह से ऐसे छात्रों की एक बड़ी तादाद है, जो परीक्षा देने के लिए उम्र के क्राइटेरिया पर खरे नहीं उतरे. इस तरह से तो उनके भविष्य पर ही सवाल खड़ा हो गया.’
वह बताती हैं, ‘यूपीएससी मेन्स 2021 की परीक्षा को लेकर कई छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर एक और मौका देने की गुहार लगाई है. इन छात्रों का कहना है कि वह कोरोना की वजह से इन परीक्षाओं में शामिल नहीं हो पाए थे, इसलिए उन्हें एक और मौका दिया जाना चाहिए, लेकिन यूपीएससी ने अदालत में टका सा जवाब देकर कह दिया कि यूपीएससी में दोबारा परीक्षा का कोई प्रावधान ही नहीं है.’
वह आगे बताती हैं, ‘कई ऐसे भी छात्र रहे जिन्होंने यूपीएससी प्रीलिम्स की परीक्षा दे दी लेकिन वे मेन्स की परीक्षा नहीं दे पाए क्योंकि वो क्वारंटीन थे.’
उत्तर प्रदेश के बदायूं के रहने वाले और चार सालों से दिल्ली में एसएससी की तैयारी कर रहे विक्रांत यादव कहते हैं कि अलग-अलग परीक्षाओं को लेकर छात्रों की अलग-अलग चुनौतियां हैं.
वह बताते हैं, ‘कोरोना काल में सभी सरकारी परीक्षाएं नहीं हुईं तो ऐसे में जिन छात्रों के एक या दो अटेम्प्ट बचे हुए थे, वे बेकार हो गए. अब वे उस परीक्षा के लिए निर्धारित उम्र के क्राइटेरिया पर फिट नहीं बैठते, इसलिए हमारी एक मांग यह भी है कि छात्रों को उम्र में दो साल की छूट दी जाए. यह मांग वाजिब भी है, क्योंकि कोरोना की वजह से हमारे दो साल बर्बाद ही हुए हैं. ऐसे में सरकार को छात्रों की यह बात माननी ही पड़ेगी.’
सिस्टम में बदलाव की मांग
आंदोलनकारी बताते हैं, ‘हमें सिस्टम को ठीक करना है. पारदर्शिता का मुद्दा एक बड़ा मुद्दा है और सिस्टम में पारदर्शिता ही नहीं है.’
बबीता कहती हैं, ‘यूपीएससी की परीक्षा के लिए नोटिफिकेशन फरवरी में जारी होता है, लेकिन परीक्षा देने के लिए आयुसीमा अगस्त से ही निर्धारित हो जाती है तो इस तरह नोटिफिकेशन जारी होते-होते कई छात्रों की ऐसे ही छंटनी हो जाती है, वे परीक्षा देने के लिए योग्य ही नहीं रह जाते. हमारी मांग है कि परीक्षा के लिए उम्र की सीमा वह नोटिफिकेशन के जारी होने के समय फरवरी से ही निर्धारित होनी चाहिए.’
वह बताती हैं, ‘ऐसा ही एसएससी में भी पारदर्शिता का मुद्दा है. एसएससी की आखिरी परीक्षा 2019 में हुई थी, लेकिन उस समय पेपर लीक हो गया था. मामला तीन सालों से अदालत में लटका हुआ है और इसके साथ छात्रों का भविष्य भी अधर में लटका हुआ है.’
पारदर्शिता की कमी के ही सवाल पर बबीता बताती हैं, ‘यूपीएससी की ही बात करें तो प्रीलिम्स एग्जाम की आंसर की (Answer Key) समय पर जारी नहीं की जाती, पूरी परीक्षा प्रक्रिया समाप्त होने के बाद आंसर की जारी की जाती है, जिससे छात्रों को दिक्कतें होती हैं.’
वह कहती हैं, ‘हम चाहते हैं कि परीक्षा से ऑप्शनल (वैकल्पिक) विषयों को हटाया जाए, क्योंकि इंजीनियरिंग और मेडिकल पृष्ठभूमि के छात्र इनमें अच्छे नंबर ले आते हैं, जबकि आर्ट स्ट्रीम या हिंदी मीडियम के छात्र पीछे रह जाते हैं तो इस तरह समानता का अवसर तो कहीं है ही नहीं.’
वह कहती हैं, ‘एसएससी पेपर लीक ही नहीं कई अन्य परीक्षाओं को लेकर मामले भी सालों से अदालतों में लंबित हैं. फास्ट ट्रैक कोर्ट है नहीं तो मामले सालों साल चलते हैं और छात्र मुंह ताकते रह जाते हैं. पेपर लीक में शामिल अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं होती. हमारी मांग है कि इस तरह के दोषी अधिकारियों की संपत्ति जब्त होनी चाहिए और फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाकर जल्द से जल्द इन मामलों को सुलझाया जाना चाहिए.’
प्रदर्शन कर रहे इन छात्रों का कहना है कि उनके इस आंदोलन को किसी संगठन या राजनीतिक दल का जुड़ाव नहीं है और यह सिर्फ छात्रों का प्रदर्शन है.
बबीता कहती हैं, ‘यह सिर्फ छात्रों का आंदोलन है और कोई राजनीतिक दल या संगठन प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इससे जुड़ा हुआ नहीं है. हालांकि, कई नेता और सांसद हमारे इस आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं.’
उनका कहना हैं, ‘हमारी बस इतनी मांग है कि सभी परीक्षाएं समयबद्ध तरीके से हो और इनमें पारदर्शिता बरती जाए. अमूमन तीन से चार साल में भी भर्तियां निकाली जाती हैं, जिससे छात्र उम्र के क्राइरेटिया से बाहर निकल जाते हैं, यह नहीं होना चाहिए. वैसे ही कोरोना की वजह से हमारे दो साल बर्बाद हो गए हैं.’
छात्रों के इस प्रदर्शन को लेकर सरकार के रुख के बारे में पूछने पर बबीता बताती हैं, ‘सरकार से अभी किसी तरह की सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली है. हमने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का भी रुख कर चुके हैं और अदालत ने प्रशासन से कहा था कि मामले में हमारे साथ नरमी बरती जाए लेकिन प्रशासन ने कोई तवज्जो नहीं दिया.’
उन्होंने आगे कहा, ‘हमने पिछले साल दिसंबर में जंतर मंतर पर भूख हड़ताल भी की थी, प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को पत्र भी लिखा था और केंद्रीय गृहमंत्री और प्रधानमंत्री से मिलने का समय मांगा था लेकिन हमारी बातें नहीं सुनी गई.’
A delegation of UPSC aspirants met me recently and shared their serious concerns.
GOI must find a viable solution in dialogue with all stakeholders so that time and opportunities lost during the 2 years of pandemic don’t cost our youth their future. #JusticeForStudents
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) January 22, 2022
वह कहती हैं, ‘हालांकि, राजद सांसद मनोज कुमार झा हमारे इस आंदोलन के समर्थन में ट्वीट कर चुके हैं. राहुल गांधी ने भी समर्थन जताया है और भी कई विपक्षी सांसदों ने आंदोलन की हौसलाअफजाई की है, लेकिन सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही.’
संवेदनशीलता तो कहती है कि सरकार मुख़र्जी नगर(दिल्ली) में धरना पर बैठे UPSC/SSC/RAILWAYS/ARMY के छात्रों की मांग को सुनते हुए COVID की वजह से हुए नुकसान की भरपाई के सन्दर्भ में छात्रों को 2 Year Age Relaxation& 2 Extra Attempt फौरी तौर पर देना चाहिए.#2CompensatoryAttempt4All
— Manoj Kumar Jha (@manojkjhadu) March 20, 2022
केंद्र सरकार का रुख
इस बीच केंद्र सरकार ने बीते 25 मार्च को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की सिविल सेवा परीक्षा में अतिरिक्त मौका देना ‘संभव नहीं’ है.
केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने जस्टिस एमए खानविलकर और जस्टिस एएस ओका की पीठ से कहा, ‘हमने एक हलफनामा दायर किया है. अतिरिक्त मौका संभव नहीं हैं. हमने इस पर विचार किया है.’
केंद्र ने कहा कि कोविड-19 महामारी के कारण आयु-सीमा में किसी भी तरह की छूट और मंजूर मौकों की संख्या के कारण अन्य श्रेणियों के उम्मीदवारों द्वारा भी इसी तरह की मांग की जा सकती है.
हलफनामे में कहा गया, ‘यह अन्य उम्मीदवारों की संभावनाओं को भी प्रभावित करेगा जो मौजूदा प्रावधानों के अनुसार पात्र हैं, क्योंकि इससे ऐसे उम्मीदवारों के साथ प्रतिस्पर्धा करने वाले उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि होगी. यह पूरे देश में आयोजित अन्य परीक्षाओं के उम्मीदवारों द्वारा भी इसी तरह की मांगों को जन्म देगा.’
शीर्ष अदालत तीन अभ्यर्थियों की याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिन्होंने यूपीएससी 2021 की प्रारंभिक परीक्षा उत्तीर्ण की थी, लेकिन कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद मुख्य परीक्षा में सभी प्रश्न पत्र के दौरान उपस्थित नहीं हो सके. अब वे परीक्षा में उपस्थित होने के लिए एक अतिरिक्त मौके का अनुरोध कर कर रहे हैं.
यूपीएससी ने हाल में शीर्ष अदालत से कहा था कि यदि कोई अभ्यर्थी किसी भी कारण से निर्धारित तिथि पर परीक्षा में शामिल होने में विफल रहता है तो बीमारी या दुर्घटना के कारण परीक्षा देने में असमर्थ होना समेत किसी भी कारण से फिर से परीक्षा आयोजित करने का कोई प्रावधान नहीं है.
तीन याचिकाकर्ताओं में से दो को बीच में कुछ प्रारंभिक प्रश्न-पत्रों में उपस्थित होने के बाद सात से 16 जनवरी तक आयोजित मुख्य परीक्षा छोड़नी पड़ी, जबकि तीसरा उम्मीदवार संक्रमित होने के कारण किसी भी प्रश्नपत्र की परीक्षा में उपस्थित नहीं हो सका. याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि उनमें क्रमशः छह जनवरी, 13 जनवरी, 14 जनवरी को आरटी-पीसीआर जांच रिपोर्ट में संक्रमण की पुष्टि हुई थी.
अदालत में केंद्र के रुख पर छात्रों ने कहा- पूर्व में नियमों में संशोधन किए गए
केंद्र के इस जवाब से छात्रों में रोष है और वे 1992 और 2014 में छात्रों के आंदोलनों का हवाला देते हुए कह रहे हैं कि सरकारों ने पूर्व में अपने नियमों में संशोधन तक किए हैं, लेकिन वैश्विक महामारी के दौरान छात्रों को राहत क्यों नहीं दी जा सकती?
बबीता कहती हैं, ‘साल 1992 में छात्रों के इसी तरह के आंदोलन और 2014 में सीसैट आंदोलन के दौरान सरकार ने नियमों में बदलाव कर छात्रों को अतिरिक्त मौके दिए थे. जब पूर्व में ऐसा हो चुका है तो अब क्यों नहीं हो सकता.’
वह कहती हैं, ‘गुजरात, उत्तराखंड और त्रिपुरा जैसे भाजपा नीत राज्यों में ही स्टेट पीसीएस में सरकार छात्रों को अतिरिक्त मौके दे रही है तो केंद्र सरकार को क्या दिक्कत है. 2014 में सीसैट को लेकर जब छात्रों ने आंदोलन खड़ा किया था तो सरकार ने छात्रों को दो अतिरिक्त मौके दिए थे.’
एक अन्य छात्र रोहित बताते हैं, ‘हम नियमों में संशोधन की मांग भी नहीं कर रहे हैं. हमारी मांग है कि अस्थायी तौर पर बस दो अतिरिक्त मौके दिए जाएं. सिविल सेवा में लैटरल एंट्री का नियम भी तो नहीं था, लेकिन फिर भी सरकार लैटरल एंट्री लेकर आई. आरक्षण में भी इसी तरह बदलाव किया गया. सरकार अपने मनमाफिक बदलाव, संशोधन सब कर लेती है.’
बहरहाल इन छात्र-छात्राओं का कहना है कि जब तक उनकी मांगें नहीं मानी जातीं, उनका आंदोलन जारी रहेगा.