सुप्रीम कोर्ट ने पीएम-केयर्स फंड के बारे में जानकारी सार्वजनिक करने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने और भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक से इसका ऑडिट कराने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया. इलाहाबाद हाईकोर्ट के 31 अगस्त, 2020 के फैसले को चुनौती दी गई थी. याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि जनता के पैसे की अकल्पनीय और अथाह राशि कोष के ख़जाने में हर रोज़ बेरोकटोक डाली जाती है.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने ‘प्रधानमंत्री नागरिक सहायता एवं आपात स्थिति राहत कोष’ (पीएम-केयर्स फंड) के बारे में जानकारी सार्वजनिक करने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने और भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) से इसका ऑडिट कराने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई से शुक्रवार को इनकार कर दिया.
जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय जाएं और मामले में पुनर्विचार याचिका दायर करें.
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने कहा कि उच्च न्यायालय ने रिट याचिका में उठाए गए सभी मुद्दों पर विचार नहीं किया.
पीठ ने कहा, ‘आपकी यह बात सही हो सकती है कि सभी मुद्दों पर विचार नहीं किया गया. हमें नहीं पता कि आपने क्या तर्क दिया था. आप जाएं और पुनर्विचार याचिका दायर करें.’
अदालत की इस टिप्पणी के बाद याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका वापस ले ली.
अधिवक्ता दिव्या पाल सिंह की इस अपील में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 31 अगस्त, 2020 के फैसले को चुनौती दी गई थी. सिंह ने आरोप लगाया कि जनता के पैसे की अकल्पनीय और अथाह राशि कोष के खजाने में हर रोज बेरोकटोक डाली जाती है.
उच्च न्यायालय ने 18 अगस्त, 2020 के शीर्ष अदालत के फैसले के बाद जनहित याचिका खारिज कर दी थी. शीर्ष अदालत ने पीएम-केयर्स फंड के कैग ऑडिट की मांग करने वाली सीपीआईएल नामक एनजीओ की याचिका को खारिज कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में कहा गया था कि चूंकि पीएम केयर्स फंड की कार्यप्रणाली काफी गोपनीय है, इसलिए इसमें प्राप्त राशि एनडीआरएफ में ट्रांसफर की जाए, जो कि संसद से पारित किए गए कानून के तहत बनाया गया है और एक पारदर्शी व्यवस्था है.
शीर्ष अदालत ने केंद्र को कोविड-19 महामारी से लड़ने के लिए पीएम-केयर्स फंड में दान की गई धनराशि को राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (एनडीआरएफ) में स्थानांतरित करने का निर्देश देने से इनकार कर दिया था.
अदालत ने कहा था कि दोनों कोष अलग-अलग तरह के हैं और दोनों का उद्देश्य भी अलग है. पीएम केयर्स फंड में प्राप्त राशि को एनडीआरएफ में ट्रांसफर करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि यह एक चैरिटेबल ट्रस्ट है.
मालूम हो कि प्रधानमंत्री द्वारा मार्च 2020 में कोविड-19 महामारी के मद्देनजर नागरिकों को सहायता प्रदान करने के लिए पीएम केयर्स फंड का गठन किया गया था और इसे भारी दान मिला था.
पीएम केयर्स फंड में प्राप्त हुई धनराशि और इसमें से खर्च का विवरण मुहैया कराने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट और बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर की गई थीं. याचिकार्ताओं ने पीएमओ के उस फैसले को भी चुनौती दी है, जिसमें उसने कहा था कि पीएम केयर्स फंड आरटीआई एक्ट के दायरे से बाहर है.
पीएम केयर्स फंड के विरोध की एक प्रमुख वजह ये है कि सरकार इससे जुड़ी बहुत आधारभूत जानकारियां जैसे इसमें कितनी राशि प्राप्त हुई, इस राशि को कहां-कहां खर्च किया गया, तक भी मुहैया नहीं करा रही है.
प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) आरटीआई एक्ट के तहत इस फंड से जुड़ी सभी जानकारी देने से लगातार मना करता आ रहा है. साथ ही कहा गया है कि पीएम केयर्स आरटीआई एक्ट, 2005 के तहत सार्वजनिक प्राधिकार यानी पब्लिक अथॉरिटी नहीं है.
यह स्थिति तब है जब प्रधानमंत्री इस फंड के अध्यक्ष हैं और सरकार के सर्वोच्च पदों पद बैठे गृह मंत्री, रक्षा मंत्री, वित्त मंत्री जैसे व्यक्ति इसके सदस्य हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)