जो शराब पीते हैं महापापी हैं, भारतीय कहलाने के लायक नहीं: नीतीश कुमार

बिहार विधान परिषद में राज्य के सख़्त शराब निषेध क़ानून में संशोधन के लिए चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि शराब पीने वालों को कोई कानूनी राहत नहीं मिलेगी. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि नकली शराब पीने से मरने वालों के परिवारों को कोई राहत नहीं मिलेगी.

नीतीश कुमार. (फोटो: पीटीआई)

बिहार विधान परिषद में राज्य के सख़्त शराब निषेध क़ानून में संशोधन के लिए चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि शराब पीने वालों को कोई कानूनी राहत नहीं मिलेगी. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि नकली शराब पीने से मरने वालों के परिवारों को कोई राहत नहीं मिलेगी.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार. (फोटो: पीटीआई)

पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कहना है कि जो लोग शराब पीते हैं, वे महापापी, महा-अयोग्य और भारतीय कहलाने के लायक नहीं हैं.

बिहार विधान परिषद में राज्य के सख्त निषेध कानून में संशोधन के लिए पेश विधेयक पर चर्चा के बाद बीते 30 मार्च को अपने संबोधन में नीतीश कुमार ने कहा कि जो लोग शराब का सेवन करते हैं और बापू की भावनाओं को नहीं मानते, तो हम मानते ही नहीं कि वे हिंदुस्तानी हैं, भारतीय तो है ही नहीं.

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के एमएलसी सुनील सिंह की शराब पीने वालों के खिलाफ लगे मामले हटाने और उन्हें जेलों से रिहा करने की मांग पर प्रतिक्रिया देते हुए नीतीश कुमार ने कहा, ‘मैं उन्हें महापापी कहूंगा. मैं कहूंगा कि जो महात्मा गांधी का अनुसरण नहीं कर रहे हैं वे हिंदुस्तानी भी नहीं हैं. वे अक्षम लोग हैं.’

मुख्यमंत्री ने कहा कि शराब पीने वालों को कोई कानूनी राहत नहीं मिलेगी. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि नकली शराब पीने से मरने वालों के परिवारों को कोई राहत नहीं मिलेगी.

उन्होंने कहा, ‘हम ऐसे परिवारों को कोई मुआवजा नहीं देंगे. शराब व्यापारियों को अधिनियम में संशोधन के बाद कड़ी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा.’

शराब पीने वालों के खिलाफ मुख्यमंत्री का हालिया बचाव पिछले छह महीनों में शराब की त्रासदी की आधा दर्जन से अधिक घटनाओं में 60 लोगों की मौत के बाद आया है.

बिहार में अप्रैल 2016 से शराब की बिक्री और खपत पर प्रतिबंध लगा हुआ है. हालांकि इस पर अमल को लेकर हमेशा से सवाल उठते रहे हैं. राज्य में कथित तौर पर ज़हरीली शराब से लोगों की मौत की घटनाएं अक्सर होती रहती हैं.​

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि दुनिया भर में शराब का कितना बुरा प्रभाव है, इन सबको समझना चाहिए और इसको लेकर बापू के विचारों को प्रचारित किया जाना चाहिए.

नीतीश ने कहा कि जो लोग यह तर्क देते हैं कि शराबबंदी होने से राजस्व का नुकसान हो रहा है यह गलत है.

उन्होंने 2016 में लागू बिहार में पूर्ण शराबबंदी के पूर्व की स्थिति का जिक्र करते हुए कहा कि पहले जब बिहार में शराब की बिक्री होती थी तो पांच हजार करोड़ रुपये राजस्व आता था पर राज्य में शराबबंदी लागू किए जाने के बाद लोगों को बहुत फायदा पहुंचा है.

मुख्यमंत्री ने कहा कि शराबबंदी के बाद सब्जी की बिक्री बढ़ गई है, जिससे उसका उत्पादन भी बढ़ा है. पूर्व में शराब में जो पैसे खर्च किए जाते थे और अब उसे लोग सब्जी खरीदने सहित घर के अन्य कार्य में लगा रहे हैं.

मालूम हो कि बीते 30 मार्च को बिहार विधानसभा ने निषेध एवं उत्पाद शुल्क संशोधन विधेयक, 2022 को पारित कर दिया, जिसके तहत राज्य में पहली बार शराबबंदी कानून को कम सख्त बनाया गया है.

संशोधित कानून के अनुसार, पहली बार अपराध करने वालों को जुर्माना जमा करने के बाद ड्यूटी मजिस्ट्रेट से जमानत मिल जाएगी और यदि अपराधी जुर्माना राशि जमा करने में सक्षम नहीं है तो उसे एक महीने की जेल का सामना करना पड़ सकता है.

बता दें कि नीतीश कुमार सरकार ने बिहार मद्य निषेध एवं उत्पाद अधिनियम के तहत अप्रैल 2016 में राज्य में शराबबंदी लागू कर दी थी. जिसके तहत पूरे राज्य में शराब की बिक्री और सेवन पर प्रतिबंध है. यह कानून गंभीर अपराधों के लिए कैद की सजा के अलावा आरोपी की संपत्ति कुर्क करने का प्रावधान करता है. कानून में 2018 में संशोधन किया गया, जिसके तहत कुछ प्रावधान हल्के कर दिए गए.

प्रतिबंध के बाद से बड़ी संख्या में लोग केवल शराब पीने के आरोप में जेलों में बंद हैं. उल्लंघन करने वालों में अधिकांश आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों और गरीब लोगों में से हैं.

भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने पिछले साल कहा था कि 2016 में बिहार सरकार के शराबबंदी जैसे फैसलों ने अदालतों पर भारी बोझ डाला है.

रमना ने राज्य के शराबबंदी कानून को लेकर दूरदर्शिता की कमी का हवाला देते हुए कहा था कि इसकी वजह से हाईकोर्ट में बड़ी संख्या में जमानत याचिकाएं लंबित पड़ी हैं. एक साधारण जमानत याचिका के निपटान में एक साल तक का समय लग रहा है.

बीते दो फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को फटकारते हुए कहा था कि शराब की समस्या एक सामाजिक मुद्दा है और हर राज्य को इससे निपटने के लिए कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन इस पर कुछ अध्ययन करना चाहिए था कि यह कितनी तादाद में मुकदमे बढ़ाएगा, किस तरह का बुनियादी ढांचा चाहिए होगा और कितनी संख्या में न्यायाधीशों की ज़रूरत पड़ेगी.

बिहार में शराबबंदी के बाद से अक्टूबर 2021 तक  3.5 लाख मामले दर्ज हुए हैं और 4,01,855 गिरफ्तारियां की गईं. इन मामलों से जुड़ीं लगभग 20,000 जमानत याचिकाएं निपटान के लिए पटना हाईकोर्ट और अन्य जिला अदालतों के समक्ष लंबित हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)