अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष ने भी वृद्धि दर अनुमान घटाया, ओपेक ने कहा भारत मज़बूत वृद्धि के रास्ते पर.
वाशिंगटन/नई दिल्ली: नोटबंदी और जीएसटी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था बड़े बदलाव के दौर से गुजर रही है. इसे लेकर अलग अलग संस्थाओं का अलग अलग दावा है. एक तरफ भारत सरकार के मुताबिक ही जहां भारत की वृद्धि दर और जीडीपी बुरी तरह प्रभावित हुई हैं, वहीं पर नरेंद्र मोदी सरकार के साथ साथ कुछ संस्थाओं का दावा है कि भारत मजबूत वृद्धि की तरफ बढ़ रहा है.
उधर विश्व बैंक का कहना है कि नोटबंदी और जीएसटी की वजह से भारत की वृद्धि दर कम रह सकती है. इसके अलावा रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर सी रंगराजन ने कहा है कि वित्त वर्ष 2017-18 में देश की आर्थिक वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है.
अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष आईएमएफ ने 2017 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत रहने का नया अनुमान व्यक्त किया है. आईएमएफ का भारत के लिए यह अनुमान उसके पहले लगाए गए अनुमानों की तुलना में 0.5 प्रतिशत कम है. उसने इस कटौती के लिए नोटबंदी व जीएसटी के कार्यान्वयन का हवाला दिया है. आईएमएफ ने हालांकि, चीन के लिए 6.8 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान व्यक्त किया है.
दूसरी तरफ, तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक के महासचिव मोहम्मद बारकिन्डो ने मंगलवार को कहा कि भारत में कुछ बड़े संरचनात्मक बदलाव हो रहे हैं और नोटबंदी तथा जीएसटी जैसे साहसिक नये सुधारों ने देश को मजबूती के साथ सतत वृद्धि के रास्ते पर ला दिया है.
नोटबंदी, जीएसटी की वजह से कम रह सकती है वृद्धि दर
भारत की आर्थिक वृद्धि को लेकर बनी चिंताओं के बीच विश्वबैंक ने उसकी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर कम रहने का अनुमान जताया है. नोटबंदी और जीएसटी को प्रमुख कारण बताते हुए उसने 2017 में भारत की वृद्धि दर 7 प्रतिशत रहने की बात कही है जो 2015 में यह 8.6 प्रतिशत थी.
विश्वबैंक ने यह चेतावनी भी दी है कि अंदरूनी व्यवधानों से निजी निवेश के कम होने की संभावना है जो देश की वृद्धि क्षमताओं को प्रभावित कर नीचे की ओर ले जाएगा.
अपनी द्विवार्षिक दक्षिण एशिया आर्थिक फोकस रपट में विश्व बैंक ने कहा है कि नोटबंदी से पैदा हुए व्यवधान और जीएसटी को लेकर बनी अनिश्चिताओं के चलते भारत की आर्थिक वृद्धि की गति प्रभावित हुई है.
परिणामस्वरूप भारत की आर्थिक वृद्धि दर 2017 में 7 प्रतिशत रहने का अनुमान है जो 2015 में 8.6 प्रतिशत थी. सार्वजनिक व्यय और निजी निवेश के बीच संतुलन स्थापित करने वाली स्पष्ट नीतियों से 2018 तक यह वृद्धि दर बढ़कर 7.3 प्रतिशत हो सकती है.
आईएमएफ ने 2018 का भी अनुमान घटाया
आईएमएफ ने 2018 में भारत की वृद्धि दर का अनुमान भी अपने पहले के अनुमान से 0.3 प्रतिशत कम कर 7.4 प्रतिशत कर दिया है. कोष ने इससे पहले जुलाई और अप्रैल में आर्थिक वृद्धि के अनुमान जारी किये थे.
भारत की वृद्धि दर 2016 में 7.1 प्रतिशत रही थी. हालांकि, यह वृद्धि आईएमएफ के अप्रैल के 6.8 प्रतिशत के अनुमान से अधिक रही. आईएमएफ ने अपनी नवीनतम विश्व आर्थिक परिदृश्य रपट में कहा है, भारत में वृद्धि की गति नरम पड़ी है जो कि मुद्रा अदला बदली तथा साल के बीच में ही देश भर में माल व सेवा कर के कार्यान्वयन को लेकर अनिश्चिततता के चलते हुआ.
इसमें कहा गया है, अच्छे सरकारी परिव्यय तथा आंकड़ों में संशोधन के चलते 2016 में भारत की वृद्धि दर बढ़कर संशोधित 7.1 प्रतिशत हो गई. इसके साथ ही आईएमएफ ने 2017 में वृद्धि दर के लिहाज से चीन को भारत से कुछ आगे रखा है. 2017 में चीन की वृद्धि दर 6.8 प्रतिशत रहना अनुमानित है.
हालांकि, रपट के अनुसार 2018 में भारत दुनिया में सबसे तेज वृद्धि करने वाली उदीयमान अर्थव्यवस्था का दर्जा फिर हासिल कर सकता है जबकि उस साल चीन की वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत रहना अनुमानित है.
रपट में कहा गया है कि जीएसटी उन कुछ प्रमुख ढांचागत सुधारों में से एक है जिनसे मध्यम अवधि में वृद्धि दर बढ़कर आठ प्रतिशत करने में मददगार होंगे.
इसके अनुसार, भारत में श्रम बाजार नियमों तथा भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया के सरलीकरण की व्यापारिक माहौल को और बेहतर बनाने के लिए लंबे समय से प्रतीक्षा की जा रही है.
आईएमएफ का कहना है कि 1999 और 2008 के बीच भारत की औसत वृद्धि दर 6.9 प्रतिशत रही उसके बाद 2009 में यह 8.5 प्रतिशत, 2010 में 10.3 प्रतिशत व 2011 में 6.6 प्रतिशत रही.
इसी तरह 2012, 2013 व 2014 में वृद्धि दर क्रमश: 5.5 प्रतिशत, 6.4 प्रतिशत व 7.5 प्रतिशत रही. वहीं वैश्विक स्तर पर आईएमएफ ने वृद्धि दर 2017 व 2018 में क्रमश: 3.6 प्रतिशत व 3.7 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है.
ओपेक ने सुधारों को बताया साहसिक
तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक के महासचिव मोहम्मद बारकिन्डो का कहना है कि भारत में कुछ बड़े संरचनात्मक बदलाव हो रहे हैं और नोटबंदी तथा जीएसटी जैसे साहसिक नये सुधारों ने देश को मजबूती के साथ सतत वृद्धि के रास्ते पर ला दिया है.
सेरावीक द्वारा आयोजित इंडिया एनर्जी फोरम में उन्होंने कहा कि देश में मध्यम वर्ग बढ़ रहा है जो न केवल र्जा बल्कि वस्तु एवं सेवाओं की मांग का प्रमुख स्रोत है.
उन्होंने कहा, देश की अर्थव्यवस्था में बड़े संरचनात्मक बदलाव आ रहे हैं… दूरदृष्टि रखने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में नये साहसिक सुधार हो रहे हैं. इससे देश खासकर उर्जा के मामले में सतत रूप से गतिशील वृद्धि के रास्ते पर आ गया है.
बारकिन्डो ने कहा कि नोटबंदी, माल एवं सेवा कर जीएसटी तथा उर्जा के विभिन्न स्रोतों को विकसित करने का प्रयास से देश सतत वृद्धि एवं स्थिरता की ओर बढ़ा है.
उन्होंने कहा कि परविहन क्षेत्र में बड़ी वृद्धि, विनिर्मित वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात में विस्तार, मजबूत आईटी क्षेत्र, एक मजबूत सेवा क्षेत्र तथा ठोस विनिर्माण आधार के साथ भारत बड़े आर्थिक बदलाव से गुजर रहा है और वैश्विक स्तर पर उसकी भूमिका बढ़ रही है.
बारकिन्डो ने कहा, ओपेक में हम इन वृहद आर्थिक तथा व्यापार प्रवृत्ति पर करीब से नजर रख रहे हैं. उन्होंने कहा, ओपेक यह देख रहा है कि दुनिया में तेल मांग तेजी से भारत की ओर स्थानांतरित हो रही है. हमारा अनुमान है 2040 तक देश की तेल मांग 150 प्रतिशत बढ़कर 1.01 करोड़ बैरल प्रतिदिन हो जाएगी जो फिलहाल करीब 40 लाख बैरल प्रतिदिन है.
साथ ही वैश्विक तेल मांग में देश की कुल हिस्सेदारी 2040 तक बढ़कर 9 प्रतिशत हो जाने का अनुमान है जो फिलहाल 4 प्रतिशत है. ओपेक के महासचिव ने कहा, कई कारक हैं जो ओपेक और भारत के बीच संबंधों को प्रगाढ़ बना रहे हैं.
चालू वित्त वर्ष में 6.5 प्रतिशत रह सकती है वृद्धि दर: रंगराजन
रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर सी रंगराजन ने मंगलवार को कहा कि वित्त वर्ष 2017-18 में देश की आर्थिक वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है. उन्होंने कहा कि रोजगार के अवसर और देश की आर्थिक वृद्धि की रफ्तार एक-दूसरे से जुड़े हैं.
रंगराजन पूर्व गवर्नर के अलावा पिछली सरकार में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन भी रहे हैं. उन्होंने कहा, रोजगार आर्थिक वृद्धि से अलग नहीं है. वे आर्थिक वृद्धि से जुड़े हुए हैं. जब अर्थव्यवस्था बढ़ती है तो रोजगार के अवसर भी बढ़ते हैं. अत: आप रोजगार की बात आर्थिक वृद्धि से अलग नहीं कर सकते हैं.
उन्होंने कहा, मैं मानता हूं कि वृद्धि में अगले कुछ तिमाहियों में सुधार होगा. हालांकि कोई नहीं जानता कि यह कब होगा और कितना होगा. मेरे अपने आकलन के हिसाब से अर्थव्यवस्था इस पूरे वित्त वर्ष में 6.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि कर सकती है.
रंगराजन हैदराबाद में आईसीएफएआई विश्वविद्यालय में दीक्षांत समारोह में कुलाधिपति की हैसियत से भाग लेने आए थे. उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा, तरलता की स्थिति बेहतर होने के बावजूद रिजर्व बैंक को ब्याज दर में कटौती से पहले कई मुद्दों पर विचार करना होगा.
उन्होंने कहा, ब्याज दरों में कटौती का निर्णय अर्थव्यवस्था की तरलता और मंहगाई के व्यवहार के प्रति रिजर्व बैंक की उम्मीदों पर निर्भर नहीं करता है. इसीलिए ऐसा लगता है, उन्होंने दरें कम नहीं करने का फैसला इस बात को ध्यान में रखते हुए लिया है कि मंहगाई का व्यवहार को देखते हुए ब्याज दर कम करना न्यायसंगत नहीं होगा.
उन्होंने कहा कि बैंक अभी गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों के दबाव में हैं. केंद्रीय बैंक के किसी कदम का तब तक कोई ऐच्छिक परिणाम नहीं निकलेगा जब तक कि व्यावसायिक बैंकों की स्थिति में सुधार हो.
उल्लेखनीय है कि देश के सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी की 30 जून को समाप्त पहली तिमाही में वृद्धि दर 5.7 प्रतिशत रही थी.
धीमी पड़ी आर्थिक वृद्धि दीर्घावधि में बुलबुले के समान
चालू वित्त वर्ष में भारत की आर्थिक वृद्धि 6.7 प्रतिशत रहने का अनुमान वास्तव में उसकी अर्थव्यवस्था की दीर्घावधि संभावनाओं में एक अस्थायी व्यवधान की तरह है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष आईएमएफ के एक शीर्ष अधिकारी ने यह बात कही.
संस्था की रिपोर्ट जारी होने के बाद आईएमएफ में आर्थिक सलाहकार एवं शोध विभाग के निदेशक मॉरिस ऑब्स्टफेल्ड ने कहा, अर्थव्यवस्था में इस साल आया यह धीमापन वास्तव में उसकी दीर्घावधि सकारात्मक आर्थिक विकास की तस्वीर पर एक छोटे से अस्थायी दाग की तरह है.
उन्होंने कहा, आम तौर पर भारत की अर्थव्यवस्था बेहतर हालत में है. सरकार ने पूरी उर्जा के साथ ढांचागत सुधार लागू किए हैं जिनमें जीएसटी शामिल है. इसका दीर्घावधि में लाभ होगा.
आईएमएफ में आर्थिक सलाहकार मॉरिस ऑब्स्टफेल्ड ने कहा कि भारत को व्यापार की बेहतर शर्तों का लाभ मिला है. साथ ही मानसून के सामान्य होने का भी इसे लाभ मिला है क्योंकि इससे कृषि को फायदा मिला है.
हालांकि इस वर्ष के लिए दो प्रमुख व्यवधान दिखते हैं. उन्होंने कहा कि इसमें से एक है जीएसटी का लागू किया जाना वह भी विशेषकर जुलाई और अगस्त के महीने में, जिसके कुछ रुकावट पैदा करने वाले प्रभाव देखे गए हैं. उन्होंने कहा कि दूसरी परेशानी है नोटबंदी. इससे अस्थायी तौर पर नकदी की कमी हुई जो अब खत्म हो गई है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)