लखीमपुर हिंसा: आशीष मिश्रा की ज़मानत को चुनौती मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रखा

किसानों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे और प्रशांत भूषण ने आशीष मिश्रा की ज़मानत रद्द करने की मांग करते हुए आरोप लगाया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लखीमपुर ​खीरी हिंसा की जांच रिपोर्ट की अनदेखी की और आरोपी को राहत देने के लिए केवल एफ़आईआर पर ग़ौर किया.

आशीष मिश्रा. (फाइल फोटो: एएनआई)

किसानों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे और प्रशांत भूषण ने आशीष मिश्रा की ज़मानत रद्द करने की मांग करते हुए आरोप लगाया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लखीमपुर ​खीरी हिंसा की जांच रिपोर्ट की अनदेखी की और आरोपी को राहत देने के लिए केवल एफ़आईआर पर ग़ौर किया.

आशीष मिश्रा. (फोटो: एएनआई)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) ने केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा ‘टेनी’ के बेटे एवं लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा की जमानत के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सोमवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.

लाइव लॉ के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ लखीमपुर खीरी हिंसा में मारे गए किसानों के परिजनों द्वारा दायर उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा आरोपी आशीष मिश्रा को 10 फरवरी को दी गई जमानत रद्द करने की अपील की गई है.

किसानों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे और प्रशांत भूषण ने जमानत रद्द करने की मांग करते हुए आरोप लगाया कि उच्च न्यायालय ने जांच रिपोर्ट की अनदेखी की और आरोपी को राहत देने के लिए केवल प्राथमिकी पर गौर किया.

दुष्यंत दवे ने इस महीने की शुरुआत में एक गवाह पर कथित हमले की एक घटना का जिक्र करते हुए इस एफआईआर का एक अंश पढ़कर सुनाया जिसमें लिखा था, ‘अब भाजपा सत्ता में है, देख तेरा क्या हाल होगा.’

जिसके बाद उन्होंने पूछा, ‘क्या यह गंभीर मामला नहीं है?’

बता दें कि पिछले महीने शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार का जवाब मांगा था. साथ ही उसने कहा था, ‘मॉनिटरिंग जज की रिपोर्ट से ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने जमानत रद्द करने के लिए अपील दायर करने की सिफारिश की थी.’

इसी कड़ी में पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा कि उसे जमानत आदेश के खिलाफ अपील दायर करनी चाहिए थी, जैसा कि जांच दल की निगरानी करने वाले न्यायाधीश द्वारा सिफारिश की गई थी.

पीठ ने मौखिक तौर पर कहा, ‘हमें उम्मीद थी कि राज्य सरकार एसआईटी के सुझावों पर अमल करेगी.’

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश वकील महेश जेठमलानी ने कहा कि एसआईटी की रिपोर्ट, जिसमें जमानत को चुनौती देने की सिफारिश थी, सरकार को भेज दी गई है.

सीजेआई रमना ने कहा, ‘हम आप पर (याचिका दायर करने के लिए) दबाव नहीं बना सकते. जब पत्र लिखा गया तो आपने प्रतिक्रिया नहीं दी. यह ऐसा मामला नहीं है कि आपको लंबा इंतजार करना पड़े.’

जवाब में जेठमलानी ने कहा कि एसआईटी प्रमुख ने इस आधार पर अपील दायर करने की सिफारिश की थी कि सबूतों के साथ छेड़छाड़ की संभावना हो सकती है. उन्होंने आगे कहा कि राज्य सरकार ने सभी गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित की है और सभी 97 गवाहों को व्यक्तिगत तौर पर फोन किया, उनमें से किसी ने भी नहीं कहा कि उन्हें कोई खतरा है.

जेठमलानी ने आगे कहा कि राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के सामने जमानत का विरोध किया था और राज्य सरकार का रुख अभी भी वही है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जेठमलानी ने अपील के खिलाफ बहस करते हुए कहा, ‘इस स्तर पर मिनी-ट्रायल नहीं हो सकता है. जो हुआ उसे बयां करने के लिए शब्द पर्याप्त नहीं हैं… जहां तक सबूतों के साथ छेड़छाड़ की बात है, तो हमने सुरक्षा (गवाहों को) मुहैया कराई है. क्या वह (आशीष मिश्रा) देश छोड़कर जाने वाले हैं? बिल्कुल नहीं.’

याचिकाकर्ता की ओर से दुष्यंत दवे ने कहा कि हाईकोर्ट ने जमानत देते वक्त गैर-जरूरी चीजों पर ध्यान दिया, जबकि जरूरी चीजों की अनदेखी की.

उन्होंने कहा कि केंद्रीय मंत्री ने एक सप्ताह पहले ही प्रदर्शनकारी किसानों को एक भाषण में धमकाया था. अपराध वाले दिन जिला मजिस्ट्रेट ने प्रदर्शनकारियों की मौजूदगी के चलते वीआईपी काफिले का रूट बदल दिया था, इसके बावजूद भी आरोपी उसी रूट पर गया, जबकि उसे पता था कि रूट बदल दिया गया है.

हाईकोर्ट ने जांच रिपोर्ट और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के हवाले से माना था कि बंदूक की गोली से संबंधित कोई चोट नहीं थी, इस पर दवे ने आपत्ति जताई.

जिस पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पूछा कि जमानत पर विचार करते हुए मामले के गुण-दोष को कैसे देखा जा सकता है.

सीजेआई रमना ने कहा, ‘गुण-दोष को भूल जाइए. कैसे एक जज पोस्टमॉर्टम या बाकी सब-कुछ पर विचार कर सकता है? मुख्य सवाल यह है कि क्या जमानत खारिज की जाए, उस पर बहस हो सकती है. इस तरह गुण-दोष पर जाना और घावों वगैरह का विवरण देना जमानत याचिका पर विचार करते हुए पूरी तरह से गैरजरूरी है.’

पीठ ने पूछा कि क्या हाईकोर्ट द्वारा पीड़ितों को सुना गया था. इस पर प्रशांत भूषण ने बताया कि वर्चुअल सुनवाई के दौरान पीड़ितों का संपर्क टूट गया था और उन्हें नहीं सुना गया.

बता दें कि आशीष मिश्रा को 10 फरवरी को इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत मिली थी. इससे पहले वह चार महीने तक हिरासत में रहे थे.

कुछ पीड़ितों के परिजनों ने बाद में जमानत रद्द करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है.

उन्होंने दावा किया कि आशीष की रिहाई के बाद मामले के गवाहों में से एक पर 10 मार्च को हमला किया गया था और हमलावरों ने उसे धमकी दी थी. कथित तौर पर हमलावरों ने कहा था कि ‘आशीष मिश्रा जमानत पर बाहर है और भाजपा भी चुनाव जीत गई है, अब तुम्हें देख लेंगे.’

गौरतलब है कि पिछले साल तीन अक्टूबर को लखीमपुर खीरी जिले के तिकोनिया गांव में किसानों के प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा में चार किसानों समेत आठ लोग मारे गए थे. इस मामले में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा ‘टेनी’ के बेटे आशीष मिश्रा को नौ अक्टूबर 2021 को मुख्य अभियुक्त के तौर पर गिरफ्तार किया गया था.

तीन अक्टूबर 2021 को यानी घटना के दिन लखीमपुर खीरी के सांसद अजय कुमार मिश्रा ‘टेनी’ के विरोध में वहां के आंदोलित किसानों ने उनके (टेनी) पैतृक गांव बनबीरपुर में आयोजित एक समारोह में उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के जाने का विरोध किया था.

आरोप है कि इस दौरान जिले के तिकुनिया में अजय कुमार मिश्रा से संबंधित महिंद्रा थार सहित तीन एसयूवी के एक काफिले ने तिकुनिया क्रॉसिंग पर प्रदर्शन कर रहे किसानों को रौंद दिया था, जिसमें चार किसानों और एक पत्रकार की मौत हो गई थी और लगभग आधा दर्जन लोग घायल हुए थे.

मामले में अजय मिश्रा के पुत्र आशीष मिश्रा और उसके दर्जन भर साथियों के खिलाफ चार किसानों को थार जीप से कुचलकर मारने और उन पर फायरिंग करने जैसे कई गंभीर आरोप हैं.

गाड़ी से कुचल जाने से मृत किसानों में गुरविंदर सिंह (22 वर्ष), दलजीत सिंह (35 वर्ष), नक्षत्र सिंह और लवप्रीत सिंह के अलावा पत्रकार रमन कश्यप शामिल थे.

प्रदर्शनकारी किसानों के एक समूह को एसयूवी ​के काफिले से कुचले जाने के बाद भीड़ द्वारा दो भाजपा कार्यकर्ताओं समेत तीन लोगों की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी.

इनकी पहचान भाजपा कार्यकर्ताओं- शुभम मिश्रा (26 वर्ष) और श्याम सुंदर (40 वर्ष) और केंद्रीय राज्य मंत्री की एसयूवी के चालक हरिओम मिश्रा (35 वर्ष) के रूप में हुई थी.

इस संबंध में पहली प्राथमिकी एक किसान द्वारा दर्ज कराई गई थी, जिसमें आशीष मिश्रा और 15-20 अन्य पर चार किसानों और एक पत्रकार को कुचलने का आरोप लगाया गया था.

हिंसा की जांच के लिए गठित एसआईटी ने आशीष मिश्रा, सुमित जायसवाल, अंकित दास और 11 अन्य के खिलाफ आईपीसी, शस्त्र कानून की विभिन्न धाराओं के तहत प्राथमिकी संख्या-219 के संबंध में तीन जनवरी को आरोप-पत्र दाखिल किया था.

दूसरी प्राथमिकी दो भाजपा कार्यकर्ताओं और एक ड्राइवर की हत्या के मामले में सुमित जायसवाल ने दर्ज कराई थी. प्राथमिकी संख्या-220 के संबंध में जांच करते हुए एसआईटी ने सात लोगों की पहचान की थी और उन्हें गिरफ्तार किया था. हालांकि, बीते जनवरी माह में ही आरोप-पत्र दाखिल करते समय केवल चार किसानों को ही आरोपी बनाया गया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)