ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में कटौती करना ज़रूरी, 2030 के बाद कोई लाभ नहीं होगा: आईपीसीसी रिपोर्ट

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर अगले कुछ सालों में ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में कटौती को लेकर कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं किया गया तो 2030 के बाद जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए उठाया गया कोई भी क़दम वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा. ग्रीनहाउस गैस वातावरण में गर्मी को बढ़ाने के लिए ज़िम्मेदार होती हैं.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर अगले कुछ सालों में ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में कटौती को लेकर कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं किया गया तो 2030 के बाद जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए उठाया गया कोई भी क़दम वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा. ग्रीनहाउस गैस वातावरण में गर्मी को बढ़ाने के लिए ज़िम्मेदार होती हैं.

आईपीसीसी की रिपोर्ट के अनुसार, भीषण गर्मी से ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं और समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है. (फोटो: रॉयटर्स)

सिडनी: जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक संगठन इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर अगले कुछ सालों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती को लेकर कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं किया गया तो 2030 के बाद जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए उठाया गया कोई भी कदम वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा.

ग्रीनहाउस गैस वातावरण में गर्मी को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होती हैं और पृथ्वी के तापमान को बढ़ा देती हैं. ग्रीनहाउस प्रभाव के लिए जिम्मेदार मुख्य गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, जल वाष्प (जो सभी प्राकृतिक रूप से होते हैं) और फ्लोरिनेटेड गैसें शामिल हैं.

रिपोर्ट में पाया गया है कि दुनिया ने पिछले एक दशक में उत्सर्जन में कमी पर प्रगति की है. 2010 में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि दर 1.3 फीसदी प्रति वर्ष हो गई, जबकि 2000 के दशक में यह 2.1 फीसदी थी.

लेकिन वैश्विक उत्सर्जन रिकॉर्ड ऊंचाई पर बना हुआ है. यदि नीतिगत महत्वाकांक्षा तुरंत नहीं बढ़ती है, तो वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाएगी और तापमान वृद्धि को दो डिग्री से कम रखने का पेरिस समझौते का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाएगा.

2015 पेरिस समझौते का लक्ष्य वैश्विक तापमान में वृद्धि को पूर्व औद्योगिक समय से दो डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना है.

रिपोर्ट के अनुसार, चिंताजनक रूप से, दुनिया की मौजूदा नीतियों ने हमें 80 वर्षों के भीतर ग्लोबल वार्मिंग के मार्ग पर 2.2 डिग्री सेल्सियस और 3.5 डिग्री सेल्सियस के बीच रखा है. यह लगभग एक दशक पहले के 4 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक की आशंका से कहीं बेहतर है, लेकिन अभी भी पेरिस समझौते के अनुरूप नहीं है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2014 में इस तरह के अंतिम आकलन के बाद से वैश्विक उत्सर्जन में कटौती करने के अवसरों में तेजी से वृद्धि हुई है, लेकिन कार्रवाई करने की आवश्यकता भी कहीं अधिक जरूरी हो गई है. रिपोर्ट इस बात का निश्चित आकलन है कि बढ़ते तापमान का समाधान खोजने में दुनिया कितना अच्छा कर रही है.

रिपोर्ट में कहा गया है, सदी के अंत तक ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने की 50 फीसदी संभावना के लिए वैश्विक सीओ2 (CO2) उत्सर्जन एक दशक में आधा होना चाहिए, 2050 के दशक में शुद्ध शून्य तक पहुंचना चाहिए और उसके बाद शुद्ध नकारात्मक हो जाना चाहिए. इन परिदृश्यों में मीथेन उत्सर्जन को भी 2050 तक आधा करना होगा.

आईपीसीसी का कहना है कि 2030 तक वैश्विक उत्सर्जन को आधा करना व्यवहार्य और हासिल करने योग्य है. लेकिन इसके लिए सभी क्षेत्रों, देशों और सरकार के स्तरों पर जलवायु नीति में तत्काल परिवर्तन की आवश्यकता है. अमीर देशों को उत्सर्जन में सबसे तेजी से कटौती करनी चाहिए. इसमें ऑस्ट्रेलिया भी शामिल है, जहां 2050 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन की योजना आवश्यक महत्वाकांक्षा से कम है और अभी तक नीति द्वारा समर्थित नहीं है.

रिपोर्ट इस बात का व्यापक विश्लेषण है कि विनाशकारी जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए क्या किया जा सकता है – लेकिन ज्यादातर अभी तक नहीं किया गया है. कुछ रुझान उत्साहजनक हैं. कुछ 36 देशों ने एक दशक से अधिक समय में सफलतापूर्वक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती की है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस रिपोर्ट के प्रमुख अध्ययनकर्ताओं में से एक नवरोज दुबाश का कहना है कि निकट भविष्य में जलवायु परिवर्तन से निपटने के तरीकों को बढ़ाना प्रमुख है.

दिल्ली स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के प्रोफेसर दुबाश ने कहा, ‘रिपोर्ट से साफ तौर पर पता चलता है कि हम तापमान को 1.5 डिग्री के लक्ष्य को बनाए रखने की राह पर नहीं हैं. यह 2050 के बारे में नहीं है, लेकिन हम आगामी दशकों के बारे में जो करते हैं, वह महत्वपूर्ण है.’

उन्होंने कहा, ‘यह पहली बार है कि आईपीसीसी रिपोर्ट में सतत विकास को विस्तार से बताया गया है. उदाहरण के लिए किस तरह के शहरीकरण से जीवन स्तर बेहतर होगा, लेकिन साथ ही उत्सर्जन भी कम करना होगा.’

जाधवपुर यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स की प्रोफेसर और इस रिपोर्ट की एक और अध्ययनकर्ता डॉ. जयश्री रॉय ने जोर देकर कहा कि 1.5 डिग्री के लक्ष्य को हासिल करने के लिए उत्सर्जन को कम करने के उपायों को तुरंत बढ़ाया जाना जरूरी है.

उन्होंने कहा, ‘भारत के बुनियादी ढांचे के एक बड़े हिस्से का अभी भी निर्माण हो रहा है तो यह भारत के लिए एक अवसर है, जिसकी उसे अगुवाई करनी चाहिए.’

रॉय ने कहा, ‘हमने 60 अलग-अलग विकल्पों और उपायों के बारे में विस्तृत जानकारी दी है, जिससे वैश्विक उत्सर्जन में 40 से 70 फीसदी तक कटौती हो सकती है. ये विकल्प न सिर्फ सरकारी रणनीतियों और नीतियों को कवर करते हैं, बल्कि व्यक्तिगत स्तर पर भी इनका उपयोग कर उत्सर्जन में कटौती की जा सकती है. उदाहरण के लिए खाने की बर्बादी को कम करना एक प्रभावी अल्पीकरण कदम है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘इसी तरह पोषक आहार के लिए पौधे आधारित भोजन का विकल्प चुनने से उत्सर्जन में कटौती में मदद मिल सकती है. इस तरह के विकल्पों से अकेले पोषण क्षेत्र से ही उत्सर्जन में 45 फीसदी की कटौती हो सकती है. परिवहन में हमारे द्वारा चुने गए विकल्प जैसे साइकिलिंग और कम दूरी के लिए पैदल चलने से उत्सर्जन में कटौती में मदद मिल सकती है. हालांकि यह एक व्यक्तिगत पसंद है, शहरों को चलने योग्य बनाना होगा और यहीं पर सरकार और उपयुक्त बुनियादी ढांचे का विकास आता है.’

रिपोर्ट में बताया गया कि ऊर्जा क्षेत्र में उत्सर्जन कटौती के लिए बहुत बड़े बदलाव की जरूरत है, जिसमें फॉसिल फ्यूल यानी कोयला या तेल जैसे प्राकृतिक इंधन के उपयोग में कमी, कम उत्सर्जन के ऊर्जा स्रोतों का उपयोग, वैकल्पिक ऊर्जा कारकों का उपयोग करना और ऊर्जा दक्षता एवं संरक्षण शामिल हैं.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘मुख्य रूप से नवीकरणीय ऊर्जा से बिजली का इस्तेमाल तेजी से चलन में आ रहा है. कुछ देशों और क्षेत्रों में बिजली की प्रणालियां नवीकरणीय ऊर्जा से संचालित हैं. नवीकरणीय ऊर्जा से पूरे ऊर्जा सिस्टम को सप्लाई करना अधिक चुनौतीपूर्ण होगा.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)