राजनीतिक दलों और सरकारों को मुफ़्त उपहार बांटने से रोकने की कोई शक्ति नहीं: निर्वाचन आयोग

सुप्रीम कोर्ट को सौंपे अपने एक हलफनामे में भारतीय निर्वाचन आयोग ने कहा है कि वह उन राजकीय नीतियों और फैसलों का नियमन नहीं कर सकता, जो किसी विजेता पार्टी द्वारा सरकार बनाए जाने पर लिए जाते हैं.

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(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट को सौंपे अपने एक हलफनामे में भारतीय निर्वाचन आयोग ने कहा है कि वह उन राजकीय नीतियों और फैसलों का नियमन नहीं कर सकता, जो किसी विजेता पार्टी द्वारा सरकार बनाए जाने पर लिए जाते हैं.

(फोटो: पीटीआई)नई दिल्ली: निर्वाचन आयोग ने उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) से कहा है कि चुनाव के पहले या बाद में चुनावी तोहफे की पेशकश करना या बांटना संबद्ध पार्टी का एक नीतिगत मामला है. साथ ही, क्या इस तरह की नीतियां वित्तीय रूप से व्यवहार्य हैं या उनका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, इस पर उस राज्य के मतदाताओं को फैसला करना होगा.

निर्वाचन आयोग ने अपने हलफनामे में कहा, ‘निर्वाचन आयोग उन राजकीय नीतियों और फैसलों का नियमन नहीं कर सकता, जो किसी विजेता पार्टी द्वारा सरकार बनाए जाने पर लिए जाते हैं. इस तरह की कार्रवाई, कानून में प्रावधान उपलब्ध किए बगैर, शक्तियों के दायरे से बाहर होगी.’

आयोग ने कहा, ‘यह भी बताया जाता है कि चुनाव से पहले या बाद में किसी भी चुनावी तोहफे की पेशकश/वितरण संबद्ध पार्टी का एक नीतिगत फैसला है और क्या इस तरह की नीतियां वित्तीय रूप से व्यवहार्य हैं या राज्य की आर्थिक स्थिति पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, एक ऐसा सवाल है जिस पर राज्य के मतदाताओं को विचार करना होगा और निर्णय लेना होगा.’

निर्वाचन आयोग ने कहा कि दिसंबर 2016 में चुनाव सुधारों पर 47 प्रस्तावों का एक सेट केंद्र को भेजा गया था जो राजनीतिक दलों से जुड़े सुधारों के बारे में था. इनमें से एक अध्याय में राजनीतिक दलों के पंजीकरण समाप्त करने की बात कही गई थी.

आयोग ने यह भी कहा, ‘निर्वाचन आयोग ने कानून मंत्रालय को भी यह सिफारिश की थी कि उसे किसी राजनीतिक दल का पंजीकरण समाप्त करने और पंजीकरण के नियम तथा राजनीतिक दलों के पंजीकरण समाप्त करने के लिए आवश्यक आदेश जारी करने की शक्तियों का इस्तेमाल करने में सक्षम बनाया जाए.’

आयोग ने कहा कि इस संबंध में याचिकाकर्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय का अनुरोध है कि निर्वाचन आयोग सरकारी खजाने से चुनावी तोहफे का वादा करने/बांटने वाले राजनीतिक दल का चुनाव चिह्न जब्त करने/पंजीकरण समाप्त करने का निर्देश दे सकता है, जबकि उच्चतम न्यायालय ने 2002 के अपने फैसले में निर्देश दिया था कि निर्वाचन आयोग के पास तीन आधार को छोड़ कर किसी राजनीतिक दल का पंजीकरण रद्द करने की कोई शक्ति नहीं है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, चुनाव आयोग द्वारा यह हलफनामा अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की एक याचिका के जवाब में दायर किया गया था. याचिका में कोर्ट से यह निर्देश देने के लिए आग्रह किया गया था कि चुनाव से पहले सार्वजनिक निधि से मुफ्त सेवाएं औॅर सुविधाएं देने का वादा मतदाताओं को प्रभावित करता है और स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनावों में बाधक बनता है. इसलिए ऐसे वादे या वितरण भारतीय दंड संहिता के तहत रिश्वत या अनुचित लाभ माने जाएं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)