एहतियातन हिरासत के नाम पर आरोपी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बलि नहीं दी जा सकती: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने नौकरी दिलाने के नाम पर सैकड़ों लोगों को ठगने के आरोपी की हिरासत के तेलंगाना सरकार के आदेश को निरस्त कर दिया. शीर्ष अदालत ने कहा कि संविधान सभा में इस पर व्यापक चर्चा हुई थी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हिरासत में रखने की शक्तियां प्रशासन के लिए मनमानी न हो जाएं.

(फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट ने नौकरी दिलाने के नाम पर सैकड़ों लोगों को ठगने के आरोपी की हिरासत के तेलंगाना सरकार के आदेश को निरस्त कर दिया. शीर्ष अदालत ने कहा कि संविधान सभा में इस पर व्यापक चर्चा हुई थी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हिरासत में रखने की शक्तियां प्रशासन के लिए मनमानी न हो जाएं.

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नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि एहतियातन हिरासत के नाम पर केवल इसलिए किसी आरोपी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बलि नहीं दी जा सकती कि वह आपराधिक कार्यवाही का सामना कर रहा है.

अदालत ने नौकरी दिलाने के नाम पर सैकड़ों लोगों को ठगने के आरोपी की हिरासत के तेलंगाना सरकार के आदेश को निरस्त कर दिया.

अदालत ने कहा कि केवल कानून और व्यवस्था के उल्लंघन की आशंका सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करने के मानक को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने स्वीकार किया कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति के खिलाफ आरोपों की प्रकृति गंभीर है, लेकिन हिरासत आदेश तेलंगाना अधिनियम 1986 के तहत बिना उचित विचार के पारित किया गया.

पीठ ने कहा, हम अपील को स्वीकार करते हैं और हाईकोर्ट के 25 जनवरी, 2022 के आक्षेपित फैसले को रद्द करते हैं. 19 मई, 2021 को बंदी के खिलाफ पारित किए गए हिरासत आदेश को रद्द कर दिया जाएगा.

हिरासत के आदेश को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी, जिसने 25 जनवरी, 2022 को याचिका खारिज कर दी थी.

पीठ ने अपने हालिया आदेश में कहा, ‘बंदी के खिलाफ आरोपों की प्रकृति गंभीर है. हालांकि, केवल इस आधार पर एहतियातन हिरासत के नाम पर किसी आरोपी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बलि नहीं दी जा सकती है कि व्यक्ति आपराधिक कार्यवाही का सामना कर रहा है.’

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘संविधान के अनुच्छेद 22 को विशेष रूप से शामिल किया गया और संविधान सभा में इस पर व्यापक चर्चा हुई, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हिरासत में रखने की शक्तियां प्रशासन के लिए मनमानी न हो जाएं.’

पीठ ने कहा, ‘नागरिक की स्वतंत्रता को राज्य की सुस्ती और उनकी देरी की वजह से बलि नहीं चढ़ाया जा सकता.’

पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट के समक्ष राज्य सरकार ने कहा था कि हिरासत में लिए गए शख्स को सलाहकार बोर्ड के समक्ष जाना चाहिए और समय से पहले रिट याचिका दायर की गई.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बीते पांच सालों में तेलंगाना अधिनियम 1986 के तहत जारी पांच हिरासत आदेशों को रद्द किया है.

पीठ ने कहा कि तेलंगाना अधिनियम 1986 के तहत बीते एक साल में तेलंगाना हाईकोर्ट ने 10 हिरासत आदेशों को खारिज किया है.

अपीलकर्ता मल्लादा के. श्री राम के भाई हैदराबाद के बंजारा हिल्स के मेसर्स इक्सोरा कॉर्पोरेट सर्विसेज कंपनी में एक कर्मचारी के रूप में काम करते थे.

13 अक्टूबर 2020 को कंपनी की ओर से बंजारा हिल्स के थाना प्रभारी के पास एक शिकायत दर्ज कराई गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि कंपनी के एक अन्य कर्मचारी के. महेंद्र ने बिना अनुमति के फेडरल बैंक में एक वेतन खाता खोला था और बंदी के साथ साजिश रची थी और नौकरी की चाहत रखने वाले 450 उम्मीदवारों से 85 लाख रुपये की राशि इकट्ठा की थी.

यह आरोप लगाया गया था कि कंपनी में मानव संसाधन (एचआर) विभाग के प्रभारी रहे सह-आरोपी ने बंदी के साथ मिलीभगत करके गलत तरीके से लोगों से धन इकट्ठा करने की योजना बनाई थी और नौकरी पाने की चाहत रखने वालों से कहा था कि उन्हें कंपनी में नौकरी दी जाएगी और बैंक खाता खोलने एवं वर्दी की आपूर्ति के नाम पर धन इकट्ठा किया था.

आरोपी को दर्ज मामलों में जमानत मिलने के बाद 19 मई 2021 को तेलंगाना अधिनियम 1986 की धारा 3 (2) के प्रावधानों के तहत उसे हिरासत में लेने का आदेश पारित किया गया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)