प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने कॉलेजियम प्रणाली का बचाव करते हुए कहा कि न्यायिक नियुक्तियों पर उच्चतम न्यायालय के फ़ैसले जनता के विश्वास को बनाए रखने के मक़सद से होते हैं. न्यायाधीशों की नियुक्ति लंबी परामर्श प्रक्रिया के माध्यम से होती है, जहां कई हितधारकों के साथ विचार-विमर्श किया जाता है.
नई दिल्ली: प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने कॉलेजियम प्रणाली का बचाव करते हुए सोमवार को कहा कि भारत में न्यायाधीश ही न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं, यह अवधारणा गलत है और नियुक्ति लंबी परामर्श प्रक्रिया के माध्यम से होती है, जहां कई हितधारकों के साथ विचार-विमर्श किया जाता है.
उन्होंने कहा कि न्यायिक नियुक्तियों पर उच्चतम न्यायालय के फैसले जनता के विश्वास को बनाए रखने के मकसद से होते हैं.
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि चयन की प्रक्रिया आज से ज्यादा लोकतांत्रिक नहीं हो सकती.
उन्होंने दिल्ली में एक समारोह के दौरान कहा, ‘इस तरह की धारणा है कि भारत में न्यायाधीश ही न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं. यह गलत धारणा है और मैं इसे सही करना चाहता हूं. नियुक्ति एक लंबी परामर्श प्रक्रिया के माध्यम से होती है.’
उन्होंने कहा, ‘इसमें कई हितधारकों से विचार-विमर्श होता है. विधायिका भी एक प्रमुख हितधारक है.’
उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया का उल्लेख करते हुए जस्टिस रमना ने कहा, ‘जब कोई उच्च न्यायालय प्रस्ताव भेजता है तो संबंधित राज्य सरकार, राज्यपाल, भारत सरकार इसका अध्ययन करते हैं, जिसके बाद इसे उच्चतम न्यायालय को भेजा जाता है.’
उन्होंने कहा, ‘उच्चतम न्यायालय के शीर्ष के तीन न्यायाधीश सभी हितधारकों के सुझावों के आधार पर प्रस्ताव पर विचार करते हैं.’
उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने अक्टूबर 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम को असंवैधानिक करार दिया था, जिसके तहत उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका को एक प्रमुख भूमिका दी गई थी.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम, 2014 उस समय भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार द्वारा दो दशक से अधिक पुरानी कॉलेजियम प्रणाली को बदलने के लिए लाया गया था.
नियुक्ति प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताते हुए मुख्य न्यायाधीश रमना ने कहा कि सलाहकार न्यायाधीश वह है, जो उस राज्य से है या पहले उस उच्च न्यायालय में काम कर चुका है. विभिन्न स्रोतों से व्यापक राय को ध्यान में रखते हुए ही कॉलेजियम अपनी राय बनाता है. अधिकांश समय यह एक सर्वसम्मत राय है.
उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि चयन प्रक्रिया इससे अधिक लोकतांत्रिक हो सकती है. यहां मैं इस तथ्य पर जोर देना चाहता हूं कि यह सरकार है जो अंतत: भारत के राष्ट्रपति, हमारे राज्य के प्रमुख के नाम पर न्यायाधीशों की नियुक्ति करती है.’
उन्होंने कहा, ‘जैसा कि मैंने पहले कहा न्यायपालिका में लोगों का विश्वास बनाए रखना मार्गदर्शक सिद्धांत है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)