ओडिशा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एस. मुरलीधर ने कहा कि न्यायिक प्रणाली अमीरों और ग़रीबों के लिए अलग-अलग तरीके से काम करती है. जिन लोगों के पास क़ानूनी सहायता सेवाओं को चुनने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, उन्हें वह प्रतिनिधित्व नहीं मिलता, जिसके वे हक़दार हैं.
नई दिल्लीः ओडिशा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एस. मुरलीधर ने गुरुवार को कहा कि भारत के कानून इस तरह से तैयार किए गए हैं कि वे गरीबों के साथ भेदभाव करने वाले हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा कि न्यायिक प्रणाली अमीरों और गरीबों के लिए असमान रूप से काम करती है.
चीफ जस्टिस मुरलीधर ने कहा, ‘न्याय तक पहुंचने में कई बाधाएं है, जिनका सामना हाशिए पर मौजूद किसी शख्स को करना पड़ता है. एक शिक्षित शख्स के लिए भी कानून और उसकी प्रक्रियाएं रहस्यमयी हैं. कानून इस तरह से तैयार किए गए हैं, जिनसे गरीबों के प्रति भेदभाव हो.’
उन्होंने कहा, ‘सिस्टम गरीबों के प्रति अलग तरह से काम करता है. बेगर्स कोर्ट, किशोर न्याय बोर्ड और महिला मजिस्ट्रेट अदालतें ऐसी जगह हैं, जहां गरीब शख्स पहली बार न्यायिक व्यवस्था को देखता और समझता है.’
वह कम्युनिटी फॉर द इरैडिक्शन ऑफ डिस्क्रिमिनेशन इन एजुकेशन एंड एम्प्लॉयमेंट द्वारा आयोजित एक व्याख्यान ‘एपीयरिंग इन कोर्टः चैलेंजेज इन रिप्रेजेंटिंग द मार्जिनैलाइज्ड’ को संबोधित कर रहे थे.
जस्टिस मुरलीधर ने कहा कि आंकड़ों से सिद्ध हुआ है कि भारत में न्याय कितना अनुचित हो सकता है.
उन्होंने कहा, ‘भारत में 3.72 लाख विचाराधीन आबादी में से 21 फीसदी और सजा पाने वाले 1.13 लाख में से 21 फीसदी अनुसूचित जाति से हैं. इसके साथ ही दोषी ठहराए गए 37.1 फीसदी और 34.3 फीसदी विचाराधीन कैदी ओबीसी समुदाय से जुड़े हुए हैं. उसी तरह सजा पाने वाले 17.4 फीसदी और 19.5 फीसदी विचाराधीन लोग मुसलमान हैं.’
चीफ जस्टिस ने कहा, ‘जिन लोगों के पास कानूनी सहायता सेवाओं को चुनने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, उन्हें वह प्रतिनिधित्व नहीं मिलता, जिसके वे हकदार हैं.’
उन्होंने कहा, ‘आम धारणा यह है कि लोग कानूनी मदद या सलाह लेने को सम्मान का विषय मान लेते हैं जबकि उन्हें यह मानना चाहिए ये उनका अधिकार है. मैं इसे राशन शॉप सिंड्रोम कहता हूं. गरीबों को लगता है कि अगर आपको कोई सेवा निशुल्क मिलती है या किसी तरह की छूट मिलती है तो आप गुणवत्ता की मांग नहीं कर सकते.’
उन्होंने कहा, ‘सरकार को सकारात्मक कार्रवाई नीतियां तैयार करनी चाहिए क्योंकि कानून गरीबों और हाशिये पर मौजूद लोगों के साथ भेदभाव करता है, जिससे उनके लिए स्थिति और खराब हो जाती है.’
उन्होंने कहा, ‘इनमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, दलित, आदिवासी, सामाजिक और शैक्षिक रूपसे वंचित वर्ग, आर्थिक रूप से वंचित वर्ग और धार्मिक एवं यौन अल्पसंख्यक, विशेष तौर पर सक्षम लोग शामिल हैं. इसके अलावा सेक्स वर्कर्स, मानसिक रूप से बीमार और कई अन्य लोग भी हैं, जिनकी गतिविधियां अपराधी हैं. अक्सर ये खुद को कानून के गलत पक्ष की ओर पाते हैं. भीख मांगना, सड़कों पर रहना और वेश्यावृत्ति को कानून एवं व्यवस्था की समस्या के रूप में माना जाता है.’
चीफ जस्टिस ने कहा, ‘यह चिंता का विषय है कि देश के 20 राज्यों में अभी भी भिखारी विरोधी कानून है. सिर्फ दिल्ली और जम्मू कश्मीर में कानूनी फैसलों से इन्हें हटा दिया गया है. इसके बाद गैर अधिसूचित जनजातियां हैं, जो लंबे समय से पुलिस के अत्याचारों का शिकार रहीं. इन स्थितियों में कानून की जद में आने वाले लोग गरीबी रेखा से नीचे या उच्च जोखिम वाले समूह से जुड़े लोग होते हैं, जिन्हें कानूनी सहायती का सख्त जरूरत होती है.’