पूर्व सीईसी सुनील अरोड़ा ने 2019 लोकसभा चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल उठाने वालों पर निशाना साधा

60 से अधिक सेवानिवृत्त नौकरशाहों द्वारा साल 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर लिखे गए एक पत्र में कहा गया था कि यह बीते तीन दशकों में सबसे कम स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव था. उस समय सुनील अरोड़ा तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त थे. इस पत्र में 2019 लोकसभा चुनाव के आयोजन में गंभीर विसंगतियों की ओर ध्यान आकर्षित किया गया था.

Ranchi: Chief Election Commissioner Sunil Arora after a review meeting with Jharkhand police officers and deputy commissioners to review the preparations for the upcoming Lok Sabha elections, in Ranchi, Wednesday, Jan. 30, 2019. (PTI Photo)(PTI1_30_2019_000125B)
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा (फोटो: पीटीआई)

60 से अधिक सेवानिवृत्त नौकरशाहों द्वारा साल 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर लिखे गए एक पत्र में कहा गया था कि यह बीते तीन दशकों में सबसे कम स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव था. उस समय सुनील अरोड़ा तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त थे. इस पत्र में 2019 लोकसभा चुनाव के आयोजन में गंभीर विसंगतियों की ओर ध्यान आकर्षित किया गया था.

Ranchi: Chief Election Commissioner Sunil Arora after a review meeting with Jharkhand police officers and deputy commissioners to review the preparations for the upcoming Lok Sabha elections, in Ranchi, Wednesday, Jan. 30, 2019. (PTI Photo)(PTI1_30_2019_000125B)
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्लीः पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने 15 अप्रैल को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के एक कार्यक्रम में उन आलोचकों को आड़े हाथों लिया, जिन्होंने चुनाव आयुक्त के पद पर रहते हुए उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठाए थे.

एबीवीपी भारतीय जनता पार्टी के वैचारिक स्रोत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छात्र शाखा है.

द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, नई दिल्ली में एबीवीपी से जुड़े एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में अरोड़ा ने 60 से अधिक सेवानिवृत्त नौकरशाहों द्वारा लिखे गए एक पत्र का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि बीते तीन दशकों में सबसे कम स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव थे.

दरअसल इस पत्र में 2019 लोकसभा चुनाव के आयोजन में गंभीर विसंगतियों की ओर ध्यान आकर्षित किया गया था.

जुलाई 2019 में इस पत्र को उस साल लोकसभा चुनावों के तुरंत बाद तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा और चुनाव आयुक्तों अशोक लवासा और सुशील चंद्रा को संबोधित कर लिखा गया था.

पत्र में यह कहा गया कि भले ही भारतीय नागरिकों के प्रति पारदर्शी और जवाबदेह होना चुनाव आयोग का कर्तव्य है, लेकिन आयोग की बार-बार की नाकामी ने एक छाप बनाई है कि हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के ताने-बाने को नष्ट किया जा रहा है और इसकी शुचिता की रक्षा करने वाले संवैधानिक प्राधिकरण को कमजोर किया जा रहा है.

रिपोर्ट के मुताबिक, इस पत्र के भेजे जाने के तीन साल बाद अरोड़ा ने कहा, ‘वे लोग खुद को लोकतंत्र का संरक्षक कहते हैं, लेकिन इस पत्र के दूसरे पैराग्राफ में लिखा है कि यह लोकतंत्र के इतिहास में सबसे कम निष्पक्ष चुनाव था. क्या इससे अधिक शर्मनाक कुछ हो सकता है?’

अरोड़ा ने कहा कि इसके बाद उन्होंने इस पत्र के लेखकों को उपयुक्त जवाब देने के लिए मार्गदर्शन हेतु एक सेवानिवृत्त चुनाव आयुक्त (सीईसी) को फोन किया.

अरोड़ा ने उस शख्स को ‘गिल साहब’ कहकर संबोधित किया, प्रत्यक्ष रूप से वह संभवत: एमएस गिल के बारे में बात कर रहे थे, जो 1996 से 2001 के दौरान देश के चुनाव आयुक्त थे.

रिपोर्ट के मुताबिक अरोड़ा ने कहा, ‘उन्होंने (पूर्व चुनाव आयुक्त) कहा, मैंने समझा कि तू सयाना मुंडा सी. अगर तुम उनका जवाब दोगे तो वे इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में बैठकर, तुम्हें एक और पत्र भेजेंगे. गिल साहब की बातों का यही सार था.’

हालांकि, द टेलीग्राफ अखबार ने गिल से संपर्क कर यह पुष्टि नहीं की जा सका कि अरोड़ा उन्हीं का जिक्र कर रहे थे.

अरोड़ा ने इस दौरान 2021 में हुए बंगाल विधानसभा चुनाव का भी जिक्र किया. यह एक और चुनाव था, जिस दौरान हिंसा हुई और चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल उठाए गए.

उन्होंने कहा कि पत्रकारों ने उनसे राज्य में अस्थिरता पर टिप्पणी करने के लिए कहा था और उन्हें डर था कि प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान उन पर जूता फेंक दिया जाएगा.

अरोड़ा ने कहा, ‘मैंने जवाब दिया कि बंगाल में हमेशा अस्थिरता रही है और जिसे एक निश्चित तरीके से नियंत्रित किया गया है, जिससे यहां देश के किसी अन्य हिस्से की तुलना में सामाजिक सुधार सबसे पहले हुए और बंगाल ने इतने क्रांतिकारियों को जन्म दिया. वही अस्थिरता अब भी है, उसे ठीक नहीं किया गया. यही वजह है कि आप मुझसे यह सवाल पूछ रहे हैं.’

हालांकि, द वायर के लिए लिखे एक लेख में पी. रमन ने उन घटनाक्रमों को पेश किया था, जिसमें राजनीतिक दलों ने आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन किया, लेकिन चुनाव आयोग ने दंड देने में स्पष्ट रूप से पक्षपात किया.

अयोध्या

टेलीग्राफ की रिपोर्ट में यह भी बताया गया​ कि अरोड़ा ने स्वतंत्रता सेनानी महावीर सिंह राठौड़ की जीवनी ‘विकट विप्लवी’ के लेखकों- बलबीर सिंह और गोपाल शर्मा में से एक को उद्धृत किया.

उन्होंने लेखकों में से एक के बारे में कहा, ‘वह हमारे राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार हैं, जो आरएसएस से जुड़े हुए थे. मुझे नहीं पता कि क्या अब भी वह आरएसएस से जुड़े हुए हैं या नहीं. अयोध्या में भी वह शीर्ष तक पहुंचे थे. जनसंपर्क निदेशक के रूप में मैंने अपने एक बैचमेट को बताकर उनका पास बनवाया था.’

रिपोर्ट के मुताबिक, उनकी इस टिप्पणी से दर्शकों ने तालियां बजाई, जिन्होंने शायद यह समझा कि वह (अरोड़ा) 1992 में हुए बाबरी मस्जिद विध्वंस का जिक्र कर रहे थे.