एक रिपोर्ट के अनुसार, गृह मंत्रालय का यह क़दम केंद्र द्वारा राज्यों को भेजे उस प्रस्ताव के ठीक बाद आया है, जिसमें अखिल भारतीय सेवा नियमों में संशोधन की बात कही गई थी, जो केंद्र सरकार को शक्ति देता कि वह किसी भी आईएएस, आईपीएस और भारतीय वन सेवा अधिकारी को राज्य की अनुमति या बिना अनुमति के भी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर बुला सकती है.
नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक और ऐसा कदम उठाया है, जिसका राज्य सरकारों द्वारा विरोध किया जाना तय है. मंत्रालय प्रस्ताव लाया है कि भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) का जो अधिकारी पुलिस अधीक्षक (एसपी) या उप-महानिरीक्षक (डीआईजी) स्तर पर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर नहीं आता है तो वह उसके शेष करिअर के लिए केंद्रीय नियुक्ति से प्रतिबंधित किया जा सकता है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, यह कदम केंद्र द्वारा राज्यों को भेजे उस प्रस्ताव के ठीक बाद आया है, जिसमें अखिल भारतीय सेवा नियमों में संशोधन की बात कही गई थी, जो केंद्र सरकार को शक्ति देता कि वह किसी भी आईएएस (भारतीय प्रशासनिक सेवा), आईपीएस और आईएफओएस (भारतीय वन सेवा) अधिकारी को राज्य की अनुमति या बिना अनुमति के भी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर बुला सकती है.
फरवरी में नियमों के एक अन्य संशोधन में, केंद्र ने केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर डीआईजी स्तर के आईपीएस अधिकारियों के लिए मनोनयन की जरूरत को भी खत्म कर दिया था.
प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजे गए ताजा प्रस्ताव को केंद्र में एसपी और डीआईजी स्तर के अधिकारियों की कमी को दूर करने के प्रयास के रूप में देखा गया है. सूत्रों के मुताबिक, विभिन्न केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों और केंद्रीय पुलिस संगठनों में इन दोनों स्तरों पर 50 प्रतिशत से अधिक पद खाली हैं.
वर्तमान में नियम कहते हैं कि अगर एक आईपीएस, पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) स्तर तक केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर तीन साल नहीं बिताता है, तो उसका नाम केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए आगे नहीं बढ़ाया जाएगा.
रिपोर्ट के अनुसार, गृह मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि मौजूदा नियमों के कारण ज्यादातर आईपीएस अफसर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर केवल आईजी स्तर पर आते हैं, जिसके चलते एसपी और डीआईजी स्तर पर भारी कमी हो जाती है.
ज्यादातर राज्य केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए एसपी और डीआईजी को छोड़ते नहीं हैं, क्योंकि उनके पास इन स्तर पर पर्याप्त नौकरियां हैं. चूंकि आईजी और उससे ऊपर के स्तरों पर कम पद होते हैं, इसलिए तब इन अधिकारियों को केंद्र में भेज दिया जाता है.
आईपीएस में एक सूत्र के मुताबिक, केंद्र शॉर्ट कट ले रहा है, जिससे सेवाओं को नुकसान होगा.
एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी का कहना है कि एसपी और डीआईजी स्तर के अधिकारी केंद्र में नहीं आ रहे हैं, क्योंकि राज्य उन्हें छोड़ नहीं रहे हैं.
सूत्रों ने बताया कि तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के एक फैसले के कारण हालात ऐसे बने हैं. उन्होंने खर्च में कटौती के उपायों के रूप में नए आईपीएस बैचों के आकार को छोटा कर दिया था.
80-90 नए अधिकारियों के आईपीएस बैच को 35-40 अधिकारियों का कर दिया गया था (1999-2002 में औसत 36 था). दूसरी तरफ, हर साल औसतन 85 आईपीएस अधिकारी सेवानिवृत्त होते हैं.
गृह मंत्रालय के एक पूर्व अधिकारी कहते हैं, ‘इस दौरान कुछ राज्यों में जिलों की संख्या दशक भर में दोगुनी हो गई है, जिससे अधिकारियों की उपलब्धता एक तिहाई रह गई है.’
रिपोर्ट के अनुसार, 2009 में आईपीएस अधिकारियों के स्वीकृत 4,000 पदों पर 1600 पद रिक्त थे. तत्कालीन मनमोहन सरकार ने इस विसंगति को दूर करने के लिए आईपीएस बैचों की संख्या बढ़ाकर 150 कर दी, 2020 में यह 200 थी. 1 जनवरी 2020 की स्थिति में 4982 स्वीकृत पदों पर 908 पद खाली थे.
इससे पहले कई राज्यों ने आईएएस और आईपीएस सेवा शर्तों को बदलने के केंद्र सरकार के प्रस्ताव की आलोचना की थी और इसे संविधान के संघीय ढांचे पर हमला बताया था. आलोचना करने वालों में बिहार जैसी राजग गठबंधन की सरकारें भी शामिल थीं.