ट्रोलिंग पर विशेष सीरीज़: जेएनयू छात्रसंघ की पूर्व उपाध्यक्ष शहला राशिद बता रही हैं कि सोशल मीडिया पर अब ट्रोलिंग नहीं हो रही है बल्कि गालियां और रेप की धमकी दी जा रही हैं जो कि आपराधिक कृत्य है.
ट्रोलिंग बहुत ही सामान्य शब्द है. इंटरनेट से पहले या उसके शुरुआती दिनों में देखें तो उसमें इसका उपयोग अलग तरह से होता था. जैसे किसी फोरम पर कोई बहस चल रही है कि कॉफी सेहत के लिए अच्छी नहीं है. उस बहस में कोई बीच में आकर किसी नए एजेंडे पर बात शुरू कर दे, यानी कि उस बहस की दिशा को बदल दे तो इसे ट्रोल बोला जाता है.
अभी जो हम देखते हैं, जो चल रहा है वो है गाली देना, बलात्कार की धमकी देना और खासकर महिलाओं के लिए गंदे-गंदे शब्दों का इस्तेमाल करना. मां-बहन की गाली देने को ट्रोल का नाम दिया गया है. यह इसके असली स्वभाव को छुपाता है. इसका असली स्वभाव एकदम आपराधिक है. आप कुछ भी बकते रहिए, लेकिन ऐसे मामलों में किसी को सजा नहीं मिलती है.
ये जो लोग ट्रोल हैं और गाली गलौज करते हैं. इन्हें दरअसल सत्ता के लोगों की तरफ से संरक्षण प्राप्त होता है. पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी ने अपनी किताब ‘आई एम ए ट्रोल’ में लिखा है कि जब उनको रेप की धमकी दी गई तो उन्होंने उस पर शिकायत की. ट्विटर ने गाली देने वालों का आईपी एड्रेस दे दिया और फिर ट्विटर पर से जिम्मेदारी हट गई और दिल्ली पुलिस पर जिम्मेदारी आ गई.
दिल्ली पुलिस इतनी जानकारी होने पर उनके बारे में पता लगा सकती थी, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. क्यों नहीं किया? हम जो दंड मुक्त सिस्टम देखते हैं और भीड़ द्वारा हत्या वाला मामले देखते हैं और यह सब वैसे ही है.
सड़क पर किसी को पकड़ना और उसे कहना कि तुम बीफ खाते हो या बीफ ले जाते हो, फिर उसे पीटना या फिर सोशल मीडिया पर किसी को चिन्हित करना और उसे कहना कि तुम राष्ट्र-विरोधी हो, तुम हिंदू विरोधी हो. फिर उस पर अटैक करना और वो एक दम इसी तरह का है.
एक मशहूर पत्रकार हैं लॉरी पेनी. उन्होंने कहा था कि महिलाओं का विचार ‘शार्ट स्कर्ट ऑफ इंटरनेट.’ यह मशहूर टिप्पणी थी. इनके कहने का मतलब है कि सड़क पर जिस प्रकार महिला के खिलाफ हुई छेड़छाड़ को जस्टिफाई किया जाता है कि उसने ऐसे कपड़े पहने थे. उसी तरह से कोई भी महिला अपनी बात रख रही है और ऐसे मसले पर जो समाज में पहले से बनी सामान्य सोच और आस्था से अलग है तो उस पर अटैक हो सकता है. उनकी सोच को ही उन पर हो रहे हमले का कारण बताकर कुतर्क करने का प्रयास किया जाता है.
मैं अगर यह कहूं कि मुझे ट्रोलिंग से कोई फर्क नहीं पड़ता तो यह गलत होगा. मेरी मां फेसबुक तो नहीं पर ट्विटर को देखती रहती हैं. मैं जो भी ट्वीट करती हूं, वो नीचे देखती रहती हैं कि क्या-क्या कमेंट्स आ रहे हैं. उनको यह सब देखकर डर लगता है कि लोग ऐसी-ऐसी चीजें भी लिख सकते हैं. इतना जहर समाज में भरा हुआ है तो हम कैसे सुरक्षित हैं. वो जो लोग लिख रहे हैं, रोबोट नहीं है इसलिए ऐसी मानसिकता के लोग अगर समाज में हैं, तो हम कैसे सुरक्षित हो सकते हैं.
ये जो लोग कर रहे हैं, उसमें बड़ी संख्या में बीजेपी आईटी सेल के लोग हैं और वो लोग कभी अमेरिका में होते हैं या ऑस्ट्रेलिया या थाईलैंड में यानी कि जो विश्व हिंदू परिषद का जो नेटवर्क है. उसे पूरा तैयार किया जाता है इन सभी चीजों के लिए. ये लोग सोशल मीडिया के कुछ प्लेटफॉर्म पर हैं. फेसबुक, ट्विटर और यूटुब पर हैं, लेकिन देखा जाए तो ये लोग अभी इंस्टाग्राम और कोरा पर नहीं हैं.
बीजेपी आईटी सेल का ध्यान अभी उन सभी प्लेटफॉर्म पर नहीं गया है. वहां हमे कोई गाली नहीं देता और देश की जनता हमसे नफरत नहीं करती है. यह सब माहौल जानबूझ कर बनाया जाता है.
प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर मैंने भी एक मैसेज पोस्ट किया था कि प्रधानमंत्री जी को जन्म दिवस की मुबारकबाद पर नर्मदा की घाटी में 40 हजार परिवार डूब रहे हैं. आप इसे भी ट्रोलिंग कह सकते हैं पर इसमें किसी भी प्रकार की कोई गाली नहीं है. आलोचना करते हुए ट्रोल करना ठीक है, उसमें आप व्यंग्य का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. हमें इसमें फर्क करना पड़ेगा कि गालियां देना और रेप की धमकी देना यह कहीं से भी ठीक बात नहीं है.
असंगठित रूप से अगर कोई व्यक्ति गालियां दे रहा है तो हम उसकी निंदा करते हैं, लेकिन भाजपा इसे संगठित रूप से कर रही है. मैं सोशल मीडिया पर काफी वक्त से हूं और 2012 से पहले आप गुजरात दंगों का समर्थन नहीं कर सकते थे. क्योंकि लोग फिर आपकी आलोचना करने लगते, सवाल पूछने लगते और गाली गलौज नहीं होता था.
2012 के बाद से नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार के रूप में पेश किया जाना शुरू हुआ था और उन्होंने एक पीआर कंपनी को रखा था ‘एपको’. खासकर 2012 के बाद जो लोग मोदी और गुजरात दंगों के बारे में लिखने लगे, उन्हें धमकियां मिलनी शुरू हो गई और महिलाओं को खासकर रेप की धमकी मिलना शुरू हो गई.
इससे बहुत सारे लोगों ने अपना अकाउंट बंद कर दिया या मोदी के बारे में लिखना बंद कर दिया है. कुल मिलकर ट्विटर ऐसा प्लेटफार्म बन चुका है, जहां आप मोदी के खिलाफ नहीं लिख सकते. जैसे ही आप मोदी लिखते हैं, वैसे ही रेप की धमकियां मिलनी शुरू हो जाती है. हजारों आलोचना हो तो उसमें कोई दिक्कत नहीं है. हजार रेप की धमकी आए, तो कोई भी डर जाएगा.
यह सब मैं नहीं पर बहुत सारे शोध बताते हैं कि भाजपा इसे संगठित रूप से चला रही है और संगठित गाली गलौज का काम करती है. इन सब बातों को बड़ा सामान्य माना जाने लगा है और हाल ही में एक कोई पूर्व केंद्रीय मंत्री ने भी अमर्यादित शब्द का प्रयोग कर दिया था. जब रेप की धमकी और मां-बहन की गाली को इतना सामान्य माना जा चुका है तो जो छोटी-मोटी गलियों पर लोग ध्यान नहीं देते.
मैं इसमें तीन बातें कहूंगी. पहला है राजनीतिक इच्छाशक्ति. जैसे जो भी दल सत्ता में है क्या वो ऐसे लोगों पर कार्रवाई करना चाहती है? अगर हां, तो बहुत से ऐसे लोग हैं, जिन पर कार्रवाई की जा सकती है. किसी को मां बहन को गाली देना या रेप की धमकी देना अपराध है और हमारे कानून में इसके लिए सजा का प्रावधान है.
राजनीतिक दल अगर कार्रवाई करना चाहती है तो बहुत से मामले हैं जैसे गुरमेहर कौर और स्वाति चतुर्वेदी हैं. यह सब हाई प्रोफाइल मामले हैं और ऐसे बहुत सारे मामले है. पार्टी की इच्छाशक्ति है तो कार्रवाई की जा सकती है लेकिन अभी हालात ये है कि पार्टी की बिलकुल भी इच्छा नहीं है कि ऐसे मामलों में कार्रवाई हो, क्योंकि उन्हें इससे फायदा मिलता है.
दूसरा, कानूनी पहलू पर बात करें तो मैं निजी तौर पर पुलिस के पास जाने से पहले दो बार सोचती हूं क्योंकि उन्होंने अभी तक जनता में वो विश्वास पैदा नहीं किया, जिससे लोग ऐसे मामलों को लेकर पुलिस के पास जाएं. पुलिस अगर सच में कार्रवाई करना चाहती है तो उन्हें महिला संगठनों के साथ मुलाकात कर विश्वास दिलाना होगा कि आप लोग ऐसे मामलों की शिकायत करें.
तीसरा तरीका यह है कि जो यह संगठन है या ताकतवर लोग हैं. उन्हें यह नियम बनाना चाहिए और अपने समर्थकों को बताना चाहिए कि वो इस तरह का काम न करें. जैसे मेरे एक-दो लाख समर्थक हैं और मुझे उनको कहना चाहिए कि तुम लोग गाली-गलौज न करो. नरेंद्र मोदी के करोड़ों समर्थक है और उन्हें यह बात अपने समर्थकों को बोलना चाहिए.
मुझे लगता है कि यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी पब्लिक फिगर पर है. सोशल मीडिया ऐसे ही चलता है जैसे किसी के 50 लाख समर्थक हैं किसी के पास 1 करोड़ समर्थक हैं. यह सब इन लोगों की जिम्मेदारी है कि वो कहें कि गाली गलौज बिलकुल भी स्वीकार नहीं किया जाएगा.
अगर आप ये पूछेंगे कि गाली-गलौज हमारे समाज में भरा पड़ा है तो इसका जवाब मैं हां भी कहूंगी और न भी कहूंगी. हमारे देश में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों का अगर हम सरकारी आंकड़ें देखेंगे, तो वो 18 प्रतिशत है.
सरकारी आंकड़ों में यह बात सबके सामने नहीं आती, जैसे अगर आपने पूरी जिंदगी में एक बार भी इंटरनेट का इस्तेमाल किया है या किसी और की मदद से किया है, तब भी आप इस्तेमाल करने वालों की सूची में शामिल हो जाते हैं. यानी देश की 10 प्रतिशत जनसंख्या इंटरनेट पर एक्टिव है. लेकिन यह जो 10 प्रतिशत हैं, यह रोबोट नहीं बल्कि जीवित इंसान है.
आपको सिम लेने के लिए आधार कार्ड की जरूरत होती है और इंटरनेट की सेवा लेने के लिए भी आपको पहचान पत्र देना होता है. इसलिए इंटरनेट पर अनजान नहीं होते. हो सकता है कि मैंने लोगों के सामने अलग नाम रखा हो, लेकिन पुलिस मुझे ट्रैक कर सकती है. फिलहाल मैं प्रार्थना करती हूं कि यह सब हमारे समाज की पहचान न बने.
हमारे समाज में बहुत सारे सभ्य लोग हैं और तहजीब से बातचीत करने की परंपरा है. अगर सोशल मीडिया हमारे समाज की पहचान बनेगा, तो यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण होगा. सोशल मीडिया पर होना यानी यह सभी चीजें अभी भी समाज का पूर्ण रूप से हिस्सा नहीं है. यह जो नफरत का माहौल है ये दरअसल सामान्य लोगों को अपराधी बना रहा है.
गौरक्षक कहीं विदेश से नहीं आ रहे हैं, बल्कि वो हमारे ही समाज का हिस्सा हैं और बेरोजगार हैं और ऐसे कामों में शामिल हो रहे हैं. सरकार जो नफरत का माहौल बना रही है उससे सामान्य लोग अब अपराधी बनने लगे हैं. ऐसा नहीं है कि मारने के लिए किराए पर लोग लाए जा रहे हैं. जुनैद को जिन लोगों के मारा वो दरअसल उसे जानते भी नहीं थे, लेकिन यह जो नफरत का माहौल है उसके वजह से हो रहा है और ये आम लोगों को अपराधी बना रही है.