रक्षा मंत्रालय ने 37 छावनी और 12 सैन्य अस्पतालों में आयुर्वेद केंद्र शुरू करने का फैसला किया

रक्षा मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि रक्षा मंत्रालय ने आयुष मंत्रालय के साथ दो समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं. इनमें एक, 37 छावनी अस्पतालों में आयुर्वेद केंद्र शुरू करने के लिए है, जबकि दूसरा समझौता ज्ञापन सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा के 12 सैन्य अस्पतालों में आयुर्वेद केंद्र शुरू करने के लिए है.

(प्रतीकात्मक फोटो: ट्विटर/@adgpi)

रक्षा मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि रक्षा मंत्रालय ने आयुष मंत्रालय के साथ दो समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं. इनमें एक, 37 छावनी अस्पतालों में आयुर्वेद केंद्र शुरू करने के लिए है, जबकि दूसरा समझौता ज्ञापन सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा के 12 सैन्य अस्पतालों में आयुर्वेद केंद्र शुरू करने के लिए है.

(प्रतीकात्मक फोटो: ट्विटर/@adgpi)

नई दिल्ली: रक्षा मंत्रालय ने 37 छावनी अस्पतालों और 12 सैन्य अस्पतालों में आयुर्वेद केंद्र शुरू करने का फैसला किया है. मंत्रालय ने बुधवार को यह जानकारी दी.

मंत्रालय ने कहा कि उसने आयुर्वेद केंद्र शुरू करने के लिए आयुष मंत्रालय (एमओए) के साथ दो समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं.

रक्षा मंत्रालय ने एक बयान में कहा, ‘रक्षा मंत्रालय ने आयुष मंत्रालय के साथ दो समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं. इनमें एक, 37 छावनी अस्पतालों में आयुर्वेद केंद्र शुरू करने के लिए है, जबकि दूसरा समझौता ज्ञापन सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा (एएफएमएस) के 12 सैन्य अस्पतालों में आयुर्वेद केंद्र शुरू करने के लिए है.’

वैश्विक आयुष निवेश एवं नवाचार शिखर बैठक के दौरान समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गए और गांधीनगर के महात्मा मंदिर में तीन दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया गया.

उद्घाटन समारोह के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभा को संबोधित किया, जहां विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक भी मौजूद थे.

आयुर्वेद, योग को आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों से जोड़ने की आवश्यकता: मांडविया

इस बीच केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने आयुर्वेद और योग जैसी स्वदेशी चिकित्सा प्रणालियों को आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों से जोड़ने की आवश्यकता पर बृहस्पतिवार को जोर दिया दिया, ताकि लोगों को समग्र स्वास्थ्य देखभाल समाधान दिया जा सकें.

दिल्ली में चिकित्सा विज्ञान राष्ट्रीय प्रतिष्ठान के 62वें स्थापना दिवस को संबोधित करते हुए मांडविया ने कहा कि औषधि की पारंपरिक और आधुनिक दोनों प्रणालियों के अपने-अपने फायदे हैं.

उन्होंने कहा कि आयुर्वेद और चिकित्सा की पारंपरिक प्रणालियां एहतियाती स्वास्थ्य देखभाल में प्रभावी हैं, जबकि आधुनिक औषधियों की बीमारियों के निदान और इलाज में अहम भूमिका है.

उन्होंने कहा, ‘हमारी अपनी स्वदेशी चिकित्सा प्रणालियों जैसे कि आयुर्वेद और योग को आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों से जोड़ना वक्त की जरूरत है.’

महामारी के खिलाफ भारत की लड़ाई पर मांडविया ने कहा कि भारत के कोविड-19 प्रबंधन और टीकाकरण अभियान से दुनिया हैरान है.

महामारी के दौरान भारत की स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में प्रगति पर मंत्री ने कहा, ‘हमने न केवल कोविड टीके बनाए बल्कि बेहद कम वक्त में उनका निर्माण और निर्यात भी किया. भारत की कोविड प्रबंधन रणनीति पर निराशाजनक अनुमान लगाए गए थे, लेकिन हम न केवल महामारी से अच्छे तरह से निपट पाए, बल्कि दुनियाभर में हमारी सर्वश्रेष्ठ कार्य प्रणाली भी साझा की.’

मांडविया ने कहा, ‘इस देश में कभी मानवश्रम या मस्तिष्क शक्ति की कमी नहीं थी. हमारे में केवल आत्म-विश्वास होना चाहिए.’

उन्होंने कहा कि अनुसंधान और नवोन्मेष किसी भी देश को आगे बढ़ाते हैं. उन्होंने कहा, ‘आज गुजरात के धोलावीरा जाते हैं, लोथल जाते हैं. धोलावीरा की 5,000 साल पुरानी सभ्यता है. यह दिखाता है कि हम कितने सभ्य थे, उस समय हमारा विज्ञान कितना विकसित था.’

मांडविया ने प्रतिष्ठान और अनुसंधानकर्ताओं को शोध और नवोन्मेष के लिए निजी क्षेत्र के साथ भागीदारी करने के लिए प्रेरित किया.

मालूम हो कि पिछले साल भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद (सीसीआईएम) द्वारा आयुर्वेद से स्नातकोत्तर (मास्टर डिग्री) की पढ़ाई करने वाले डॉक्टरों को सर्जरी करने की अनुमति देने वाले आदेश का काफी विरोध हुआ था.

आयुष मंत्रालय के अधीन भारतीय चिकित्सा प्रणालियों के नियमन से जुड़ी सांविधिक इकाई सीसीआईएम ने पिछले नवंबर 2020 में एक अधिसूचना करके 39 सामान्य सर्जरी प्रक्रियाओं को सूचीबद्ध किया था, जिनमें से 19 प्रक्रियाएं आंख, नाक, कान और गले से जुड़ी हैं.

इसके लिए भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद (पोस्ट ग्रेजुएट आयुर्वेद शिक्षा) नियमन, 2016 में संशोधन किया गया था. अधिसूचना में कहा गया था कि आयुर्वेदिक पढ़ाई के दौरान ‘शल्य’ और ‘शाल्क्य’ में पीजी कर रहे छात्रों को ऑपरेशन करने का प्रशिक्षण दिया जाएगा.

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) इस कदम का विरोध किया था. इस कदम की निंदा की थी और आधुनिक चिकित्सा प्रणालियों को पीछे की ओर ले जाने वाला कदम करार दिया था.

संगठन ने कहा था कि यह चिकित्सा शिक्षा या प्रैक्टिस का भ्रमित मिश्रण या ‘खिचड़ीकरण’ (मिक्सोपैथी) है. आईएमए ने संबंधित अधिसूचना को वापस लिए जाने की मांग की थी.

आईएमए ने बयान में कहा था कि आधुनिक चिकित्सा सर्जरी की लंबी सूची है, जिसे आयुर्वेद में शल्य तंत्र और शाल्क्य तंत्र के तहत सूचीबद्ध किया गया है, ये सभी आधुनिक चिकित्सा पद्धति के दायरे और अधिकार क्षेत्र में आते हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)