जस्टिस साधना जाधव मामले की सुनवाई से ख़ुद को अलग करने वाली तीसरी न्यायाधीश हैं. इस साल की शुरुआत में बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायाधीश एसएस शिंदे और न्यायाधीश पीबी वराले ने एल्गार परिषद मामले से जुड़ीं याचिकाओं पर सुनवाई से ख़ुद को अलग कर लिया था.
मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट की न्यायाधीश साधना जाधव ने एल्गार परिषद-माओवादी (भीमा कोरेगांव) संबंध मामले की कई याचिकाओं पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है, जो इस साल ऐसा करने वाली उच्च न्यायालय की तीसरी न्यायाधीश हैं.
मामले के आरोपियों में दिवंगत फादर स्टेन स्वामी सहित 16 विद्वान और कार्यकर्ता शामिल हैं.
इस साल की शुरुआत में बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायाधीश एसएस शिंदे और न्यायाधीश पीबी वराले ने एल्गार परिषद मामले से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था.
जस्टिस साधना जाधव और जस्टिस मिलिंद जाधव कार्यकर्ता रोना विल्सन और शोमा सेन द्वारा दायर दो याचिकाओं की अध्यक्षता कर रहे थे, जिसमें उनके खिलाफ मामले को रद्द करने की मांग की गई थी.
वकील सुरेंद्र गाडलिंग द्वारा दायर एक जमानत याचिका दायर की गई थी और फादर फ्रेजर मस्करेन्हास द्वारा दायर एक याचिका में मांग की गई थी कि उन्हें स्टेन स्वामी की ओर से दायर मुकदमे को चलाने की अनुमति दी जाए, जिनकी चिकित्सा जमानत की प्रतीक्षा में हिरासत के दौरान ही मृत्यु हो गई.
जस्टिस साधना जाधव ने मंगलवार (19 अप्रैल) को कहा कि उन्हें मामलों की सुनवाई से खुद को अलग कर लेना चाहिए और उनके सामने एल्गार परिषद या कोरेगांव भीमा मामला नहीं रखा जाना चाहिए.
उन्होंने खुद को अलग करने के अपने फैसले के लिए कोई कारण नहीं बताया.
जस्टिस शिंदे 2019 और 2021 के बीच इन मामलों की अध्यक्षता कर रहे थे. यह उनकी पीठ थी, जिसने कवि-कार्यकर्ता वरवरा राव को अस्थायी चिकित्सा जमानत दी थी और वकील सह-कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज को डिफॉल्ट जमानत दी थी, दोनों एल्गार मामले में आरोपी थे.
तब मामलों को जस्टिस पीबी वराले की अध्यक्षता वाली पीठ को स्थानांतरित कर दिया गया था, उन्होंने भी उनकी सुनवाई से इनकार कर दिया था.
हाईकोर्ट ने तब मामलों को सुनवाई के लिए जस्टिस एसबी शुक्रे के नेतृत्व में एक विशेष पीठ को सौंपा.
इस महीने की शुरुआत में न्यायाधीश शुक्रे को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में स्थानांतरित कर दिया गया था, जिसके बाद मामले को जस्टिस साधना जाधव के पास भेज दिया गया था.
याचिकाकर्ताओं के वकीलों को अब हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता के समक्ष एक आवेदन देना होगा, जिसमें मांग की जाए कि एल्गार मामले की सुनवाई के लिए एक बार फिर एक विशेष पीठ नियुक्त की जाए.
गौरतलब है कि मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में आयोजित ‘एल्गार परिषद’ सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है, जिसके बारे में पुलिस ने दावा किया था कि इसकी वजह से शहर के बाहरी इलाके में स्थित कोरेगांव भीमा युद्ध स्मारक के पास अगले दिन हिंसा हुई थी.
पुणे पुलिस ने दावा किया कि सम्मेलन को माओवादियों का समर्थन प्राप्त था.
बता दें कि एल्गार परिषद मामले में अब तक 16 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. इनमें से एक फादर स्टेन स्वामी की कोरोना की वजह से हिरासत में ही मौत हो गई थी.
बाकी अन्य कार्यकर्ताओं में लेखक और मुंबई के दलित अधिकार कार्यकर्ता सुधीर धावले, विस्थापितों के लिए काम करने वाले गढ़चिरौली के युवा कार्यकर्ता महेश राउत, नागपुर यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी साहित्य विभाग की प्रमुख रह चुकीं शोमा सेन, वकील अरुण फरेरा, सुधा भारद्वाज, लेखक वरवरा राव, कार्यकर्ता वर्नोन गॉन्जाल्विस, कैदियों के अधिकार के लिए काम करने वाले रोना विल्सन, यूएपीए विशेषज्ञ और नागपुर से वकील सुरेंद्र गाडलिंग, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, हेनी बाबू और कबीर कला मंच के कलाकार, सागर गोरखे, रमेश गायचोर और ज्योति जगताप हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)