राजस्थान में अलवर ज़िले के राजगढ़ में अतिक्रमण रोधी अभियान के तहत दो मंदिरों को आंशिक रूप से ध्वस्त किए जाने को लेकर राज्य की कांग्रेस सरकार भाजपा के निशाने पर है. कांग्रेस शासित राज्य में राजगढ़ नगरपालिका भाजपा द्वारा संचालित है. कांग्रेस का कहना है कि इस बात के दस्तावेज़ी सबूत हैं कि नगरपालिका में मंदिरों से संबंधित अतिक्रमण हटाने का प्रस्ताव रखा गया था.
जयपुर: राजस्थान में अलवर जिले में अतिक्रमण रोधी अभियान के तहत दो मंदिरों को आंशिक रूप से ध्वस्त किए जाने को लेकर राज्य की कांग्रेस सरकार भाजपा के निशाने पर है. हालांकि भाजपा के नेतृत्व वाली वसुंधरा राजे सरकार के कार्यकाल के दौरान भी धार्मिक ढांचों को या तो ध्वस्त किया गया था या कहीं और हटाया गया था.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, राजस्थान में 2012 और 2015 के बीच जब वसुंधरा राजे के नेतृत्व में भाजपा की सरकार थी, तब 2013 की शुरुआत में अकेले जयपुर में मंदिरों और मजारों सहित 93 धार्मिक ढांचों को हटाया गया था या फिर शिफ्ट किया गया था.
हालांकि, इसके अलग-अलग कारण थे, कुछ ढांचों को मेट्रो के काम और परिवहन में बाधा उत्पन्न करने की वजह से तो कुछ को सरकारी जमीन पर अवैध निर्माण या अतिक्रमण की वजह से हटाया या शिफ्ट किया गया था.
मंदिरों को ध्वस्त किए जाने के बाद राजे और आरएसएस के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गई थी, जबकि अधिकतर मंदिरों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुरूप अवैध ढांचा होने की वजह से जिला प्रशासन के अभियान के तहत ध्वस्त किया गया था. जयपुर में मेट्रो का नेटवर्क तैयार करने के लिए छह मंदिरों को ध्वस्त किया गया या उन्हें रिलोकेट किया गया.
रिपोर्ट के अनुसार, इन छह मंदिरों में रामेश्वर महादेव मंदिर, कंवल साहेब हनुमान मंदिर, बारह लिंग महादेव, श्री बड़ के बालाजी मंदिर, रोजगारेश्वर महादेव मंदिर और काश्तरन महादेव मंदिर शामिल हैं.
इनमें से दो मंदिर (रोजगारेश्वर महादेव मंदिर और काश्तरन महादेव) दो शताब्दियों से भी अधिक पुराने हैं और इन्हें छोटी चौपड़ से पुराने आतिश बाजार में शिफ्ट किया गया था.
जुलाई 2015 में आरएसएस ने राजे सरकार के इस रवैये को मुगल शासक औरंगजेब से भी बदतर बताया था और भाजपा के नौ विधायकों को जयपुर के भारती भवन स्थित अपने मुख्यालय में तलब किया था और उनसे इस विध्वंस पर उनकी निष्क्रियता का कारण पूछा था.
आरएसएस और उनके संबद्ध संगठनों ने मंदिर बचाओ संघर्ष समिति का समर्थन करते हुए दो घंटे चक्काजाम भी किया था. संघ के विवेक गुप्ता ने तर्क दिया था, ‘मंदिर टूटे हैं, समाज में आक्रोश है और संघ भी तो समाज से ही बना है.’
वहीं, जो लोग वसुंधरा राजे के करीबी थे, उन्होंने इसका विरोध करते हुए कहा कि आरएएस इस मुद्दे का इस्तेमाल सिर्फ मुख्यमंत्री को निशाना बनाने के लिए कर रही है.
उस समय भाजपा के एक नेता ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया था, ‘लोगों ने वास्तव में इन मंदिरों के विध्वंस को लेकर कोई विरोध नहीं किया. अगर उन्होंने किया होता तो प्रशासन इतनी आसानी से इसे अंजाम नहीं दे पाता. संघ को राजे को निशाना बनाने के लिए एक अवसर मिल गया है.’
इस मामले में कांग्रेस ने भाजपा को उसकी आंतरिक लड़ाई लड़ने का मौका देते हुए ज्यादा विरोध नहीं किया. हालांकि, 2018 विधानसभा चुनाव के करीब आते ही पार्टी वापस इस मामले को भुनाने लगी.
राजस्थान कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष सचिन पायलट ने अगस्त 2018 में कहा था कि मेट्रो कॉरिडोर के निर्माण के लिए जयपुर में 300 से अधिक मंदिरों को ध्वस्त किया गया था. पायलट ने यह भी कहा था कि मंदिरों को शिफ्ट करने की प्रक्रिया में कई मूर्तियों को नुकसान पहुंचा और कई चोरी हो गईं.
राजगढ़ में मंदिर तोड़े जाने को लेकर कांग्रेस व भाजपा नेताओं में बयानबाजी जारी
बहरहाल इधर राज्य में अलवर जिले के राजगढ़ नगर पालिका क्षेत्र में अतिक्रमण हटाने के अभियान के तहत एक प्राचीन मंदिर को कथित रूप से तोड़े जाने को लेकर राज्य के कांग्रेस व भाजपा नेताओं में बयानबाजी शनिवार को भी जारी रही.
सत्तारूढ़ कांग्रेस ने भाजपा पर इस मुद्दे को लेकर राज्य में माहौल बिगाड़ने की कोशिश का आरोप लगाया. वहीं, भाजपा ने कहा कि कांग्रेस राज्य में तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है.
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता व सांसद राज्यवर्धन राठौड़ ने इस मुद्दे को लेकर राज्य सरकार पर निशाना साधा और आरोप लगाया कि वह एक समुदाय विशेष के लिए तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है.
उन्होंने कहा, ‘तुष्टिकरण की राजनीति हो रही है… फर्क बिल्कुल साफ है, उन्हें केवल अपने वोट बैंक को संदेश पहुंचाना है.’
जयपुर में संवाददाताओं से बातचीत में राठौड़ ने कहा कि राजगढ़ में मंदिर तोड़ने की कार्रवाई द्वेषपूर्ण है और ‘बदला लेने की भावना से की गई है.’
उन्होंने कहा, ‘राजस्थान में अलग-अलग जगह ऐसा ही हो रहा है. कांग्रेस की इस मंशा को लोग समझ रहे हैं.’
राज्य में कथित तौर पर महिलाओं व दलितों के खिलाफ अत्याचार की बढ़ती घटनाओं का जिक्र करते हुए भाजपा सांसद ने आरोप लगाया, ‘रामनवमी पर राम भक्तों पर वार- रमजान पर रोजा इफ्तार, यह कांग्रेस की मानसिकता है… राजस्थान को तालिबान बना दिया.’
वहीं, राजस्थान सरकार के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने कहा कि भाजपा को पूरे देश से माफी मांगनी चाहिए.
खाचरियावास ने कहा, ‘राजगढ़ में उन्होंने (भाजपा) मंदिर तोड़ा है और मंदिर तोड़कर उन्होंने झूठ भी बोला. दस्तावेजी सबूत हैं सबके पास कि नगरपालिका में उनके ही बोर्ड ने इस आशय का प्रस्ताव रखा था.’
बता दे कि राजगढ़ कांग्रेस शासित राजस्थान में भाजपा द्वारा संचालित नगरपालिका है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अलवर के जिला कलेक्टर नकाटे शिवप्रसाद मदन ने बीते 22 अप्रैल को कहा था अतिक्रमण विरोधी अभियान का प्रस्ताव पिछले साल नगर पालिका बोर्ड द्वारा इसके अध्यक्ष सतीश दुहरिया नेतृत्व वाली एक सभा में सर्वसम्मति से पारित किया गया था. दुहरिया भाजपा नेता हैं.
खाचरियावास ने आरोप लगाया कि भाजपा पूरे राज्य में दंगे करवाने का षड्यंत्र कर रही है और सोशल मीडिया का दुरुपयोग कर राजस्थान में हारी हुई बाजी को जीतना चाहती है.
उन्होंने आरोप लगाया, ‘मैं भाजपा के लोगों से कहूंगा कि उन्होंने माहौल बिगाड़ने में जल्दबाजी कर दी, क्योंकि विधानसभा चुनाव में तो अभी डेढ़ साल है. भाजपा अगर चुनाव से छह महीने पहले यह काम करती तो उनका षड्यंत्र शायद कामयाब हो सकता था. अब कांग्रेस हर मोर्चे पर, चौराहे से लेकर खेत-खलिहान और गांव-गली तक भाजपा का जवाब देगी.’
भाजपा के राज्यसभा सदस्य किरोड़ी लाल मीणा ने शनिवार को ट्वीट किया, ‘पूर्व सांसद भंवर जितेंद्र सिंह व टीकाराम जूली ने राजगढ़ में मंदिरों के पुनर्निर्माण का आश्वासन दिया है, पर मेरी अन्य मांगों तोड़े गए मकानों का मुआवजा, इस कुकृत्य में शामिल अधिकारियों पर दंडात्मक कार्रवाई और प्रकरण की न्यायिक जांच पर अभी तक सहमति नहीं बनी है.’
इस बीच, भाजपा की तथ्यात्मक जांच समिति शनिवार को राजगढ़ पहुंची व स्थानीय लोगों से बातचीत की. समिति के सदस्य सांसद सुमेधानंद ने राजगढ़ में संवाददाताओं से कहा कि 300 साल पुराना मंदिर तोड़ा गया है और उसके लिए कांग्रेस सरकार सार्वजनिक रूप से मांगी मांगे. उन्होंने कहा कि मंदिर का पुनर्निर्माण करवाकर मूर्तियों को सम्मानपूर्वक स्थापित किया जाए.
कांग्रेस की ओर से पूर्व सांसद भंवर जितेंद्र सिंह व सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री टीकाराम जूली भी राजगढ़ पहुंचे थे.
इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में अलवर जिला कलेक्टर शिवप्रसाद मदन ने कहा था कि जिन लोगों के ढांचे अतिक्रमण का हिस्सा थे, उन्हें छह अप्रैल को नोटिस जारी किए गए थे. इसके बाद उचित प्रक्रिया का पालन करने के बाद 17 और 18 अप्रैल को अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाया गया.
उन्होंने कहा था, ‘अभियान के दौरान कोई भी कानूनी ढांचा नहीं तोड़ा गया. तब कोई विरोध नहीं हुआ था और न ही कानून-व्यवस्था की स्थिति बनी थी.’
जिला प्रशासन के अनुसार रास्ते में दो मंदिर थे. जिला कलेक्टर ने कहा था, ‘एक नई संरचना थी. अभियान से पहले इसके मालिकों ने खुद मूर्तियों को हटा दिया था. दूसरे मंदिर के लिए, केवल कुछ क्षेत्र हटा दिया गया था, जबकि इसका गर्भगृह बरकरार है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)