आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायक क़ानून के तहत ग्रेच्युटी के हक़दार: सुप्रीम कोर्ट

शीर्ष अदालत ने गुजरात से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून के तहत बच्चों, गर्भवती महिलाओं के साथ-साथ स्तनपान कराने वाली माताओं से संबंधित बहुत महत्वपूर्ण और नवीन प्रावधानों को लागू करने का व्यापक काम उन्हें सौंपा गया है. इस प्रकार इस तर्क को स्वीकार करना असंभव है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायकों को सौंपी गई नौकरी अंशकालिक नौकरी है.

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(फाइल फोटो: पीटीआई)

शीर्ष अदालत ने गुजरात से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून के तहत बच्चों, गर्भवती महिलाओं के साथ-साथ स्तनपान कराने वाली माताओं से संबंधित बहुत महत्वपूर्ण और नवीन प्रावधानों को लागू करने का व्यापक काम उन्हें सौंपा गया है. इस प्रकार इस तर्क को स्वीकार करना असंभव है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायकों को सौंपी गई नौकरी अंशकालिक नौकरी है.

(फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि आंगनबाड़ी केंद्रों में काम करने के लिए नियुक्त आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और आंगनबाड़ी सहायक ग्रेच्युटी भुगतान कानून, 1972 के तहत ग्रेच्युटी के हकदार हैं.

जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस अभय एस. ओका की पीठ ने कहा कि आंगनबाड़ी केंद्र भी वैधानिक कर्तव्यों का पालन करते हैं तथा वे सरकार की विस्तारित इकाई बन गए हैं. पीठ ने कहा कि 1972 (ग्रेच्युटी का भुगतान) कानून आंगनबाड़ी केंद्रों और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायकों पर लागू होगा.

पीठ ने कहा कि इन अपीलों में शामिल विषय यह है कि क्या एकीकृत बाल विकास योजना (आईसीडीएस) के तहत स्थापित आंगनबाड़ी केंद्रों में काम करने के लिए नियुक्त आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायक ग्रेच्युटी भुगतान कानून, 1972 के तहत ग्रेच्युटी के हकदार हैं.

पीठ ने कहा कि गुजरात हाईकोर्ट की एकल पीठ ने इस निष्कर्ष की पुष्टि की, लेकिन हाईकोर्ट की खंडपीठ ने जिला विकास अधिकारी द्वारा दायर अपीलों पर एकल पीठ के फैसले को खारिज करते हुए निर्णय दिया गया कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को 1972 के कानून की धारा 2(ई) के अनुसार कर्मचारी नहीं कहा जा सकता तथा आईसीडीएस परियोजना को उद्योग नहीं कहा जा सकता है.

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून, 2013 के प्रावधानों और शिक्षा का अधिकार कानून की धारा 11 के कारण आंगनबाड़ी केंद्र भी वैधानिक कर्तव्यों का पालन करते हैं.

न्यायमूर्ति ओका ने एक अलग फैसले में कहा कि इस प्रकार आंगनबाड़ी केंद्र राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून और गुजरात सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के मद्देनजर सरकार की एक विस्तारित शाखा बन गए हैं.

उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 47 के तहत परिभाषित राज्य के दायित्वों को प्रभावी बनाने के लिए आंगनबाड़ी केंद्रों की स्थापना की गई है और ऐसे में कहा जा सकता है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और आंगनबाड़ी सहायक के पद वैधानिक हैं.

शीर्ष अदालत ने कहा कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और आंगनबाड़ी सहायकों को सभी व्यापक कर्तव्यों को सौंपा गया है, जिसमें लाभार्थियों की पहचान करना, पौष्टिक भोजन पकाना, लाभार्थियों को स्वस्थ भोजन परोसना, 3 से 6 वर्ष की आयु समूह के बच्चों के लिए प्री-स्कूल आयोजित करना और विभिन्न कारणों से बार-बार घर का दौरा करना आदि शामिल है.

अदालत ने कहा, ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत बच्चों, गर्भवती महिलाओं के साथ-साथ स्तनपान कराने वाली माताओं से संबंधित बहुत महत्वपूर्ण और नवीन प्रावधानों को लागू करने का काम भी उन्हें सौंपा गया है. इस प्रकार इस तर्क को स्वीकार करना असंभव है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायकों को सौंपी गई नौकरी अंशकालिक नौकरी है.’

पीठ ने कहा, ‘25 नवंबर, 2019 का सरकारी संकल्प, जो आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायकों के कर्तव्यों को निर्धारित करता है, यह नहीं बताता है कि उनकी नौकरी एक अंशकालिक नौकरी है. इसके तहत निर्दिष्ट कर्तव्यों की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए यह पूर्णकालिक रोजगार है.’

पीठ की ओर से यह भी कहा गया कि गुजरात राज्य में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को केवल 7,800 रुपये मासिक पारिश्रमिक का भुगतान किया जा रहा है और सहायकों को केवल 3,950 रुपये मासिक पारिश्रमिक का भुगतान किया जा रहा है.

जस्टिस रस्तोगी ने एक अलग लेकिन सहमतिपूर्ण निर्णय भी लिखा और कहा कि अब समय आ गया है जब केंद्र सरकार/राज्य सरकारों को नौकरी की प्रकृति के अनुरूप आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं/सहायकों को बेहतर सेवा शर्तें प्रदान करने के तौर-तरीकों का सामूहिक रूप से पता लगाना होगा.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)