महंगाई को काबू में लाने के लिए नीतिगत दर बढ़ाना ‘राष्ट्र विरोधी क़दम’ नहीं: रघुराम राजन

आरबीआई के पूर्व गर्वनर रघुराम राजन ने स्वीकार किया जब प्रमुख ब्याज दर यानी नीतिगत दर बढ़ानी पड़ती है, कोई भी खुश नहीं होता. उन्होंने राजनेताओं और नौकरशाहों को यह समझने के लिए कहा कि यह उपाय कोई ‘राष्ट्र विरोधी गतिविधि नहीं’, जो विदेशी निवेशकों को लाभांवित करेगा, बल्कि एक निवेश है, ‘जिसका सबसे बड़ा लाभार्थी भारतीय नागरिक है’.

रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन. (फोटो: रॉयटर्स)

आरबीआई के पूर्व गर्वनर रघुराम राजन ने स्वीकार किया जब प्रमुख ब्याज दर यानी नीतिगत दर बढ़ानी पड़ती है, कोई भी खुश नहीं होता. उन्होंने राजनेताओं और नौकरशाहों को यह समझने के लिए कहा कि यह उपाय कोई ‘राष्ट्र विरोधी गतिविधि नहीं’, जो विदेशी निवेशकों को लाभांवित करेगा, बल्कि एक निवेश है, ‘जिसका सबसे बड़ा लाभार्थी भारतीय नागरिक है’.

रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन. (फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने सोमवार को कहा कि केंद्रीय बैंक को महंगाई को काबू में लाने के लिए नीतिगत दर बढ़ाने की जरूरत होगी और इस वृद्धि को राजनेताओं तथा नौकरशाहों को ‘राष्ट्र-विरोधी’ कदम के रूप में नहीं लेना चाहिए.

उन्होंने राजनेताओं और नौकरशाहों को यह समझने के लिए कहा कि यह उपाय कोई ‘राष्ट्र विरोधी गतिविधि नहीं’, जो विदेशी निवेशकों को लाभांवित करेगा, बल्कि एक निवेश है, ‘जिसका सबसे बड़ा लाभार्थी भारतीय नागरिक है’.

उन्होंने कहा कि जब ऐसा होता है तो राजनेताओं और नौकरशाहों को इसे ‘आर्थिक स्थिरता में निवेश के रूप में देखना चाहिए, जिसका सबसे बड़ा लाभ भारतीय नागरिक है.’

राजन के अनुसार, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि ‘मुद्रास्फीति के खिलाफ अभियान’ कभी समाप्त नहीं होता.

उन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइट ‘लिंक्डइन’ पर लिखा है, ‘भारत में मुद्रास्फीति (महंगाई दर) बढ़ रही है. एक समय पर आरबीआई को दुनिया के अन्य देशों की तरह नीतिगत दरें बढ़ानी ही पड़ेंगी.’

उन्होंने स्वीकार किया जब प्रमुख ब्याज दर यानी नीतिगत दर बढ़ानी पड़ती है, कोई भी खुश नहीं होता. उन्हें अभी भी राजनीति से प्रेरित आलोचनाएं सुननी पड़ती है कि आरबीआई ने उनके कार्यकाल के दौरान अर्थव्यवस्था को पटरी से उतार दिया.

उन्होंने कहा, ‘यह जरूरी है कि आरबीआई वह करे जो उसे करने की आवश्यकता है.’

खाद्य वस्तुओं की कीमतों में तेजी से खुदरा महंगाई मार्च में 17 महीने के उच्च स्तर 6.95 प्रतिशत पर पहुंच गई. यह रिजर्व बैंक के संतोषजनक स्तर से ऊपर है. वहीं कच्चे तेल और जिंसों के दाम में तेजी से थोक महंगाई दर मार्च महीने में चार महीने के उच्चस्तर 14.55 प्रतिशत पर पहुंच गई.

फिलहाल शिकॉगो बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस के प्रोफेसर राजन ने कहा, ‘राजनेताओं और नौकरशाहों को यह समझना होगा कि नीतिगत दर में वृद्धि कोई राष्ट्र-विरोधी कदम नहीं है, जिससे विदेशी निवेशकों को लाभ हो. बल्कि यह आर्थिक स्थिरता के लिए उठाया गया कदम है, जिसका सबसे ज्यादा लाभ देश को ही होता है.’

उल्लेखनीय है कि इस महीने की शुरुआत में केंद्रीय बैंक ने द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में महंगाई में तेजी के बावजूद आर्थिक वृद्धि को गति देने के मकसद से नीतिगत दर रेपो को लगातार 11वीं बार निचले स्तर चार प्रतिशत पर बरकरार रखा था.

आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष के लिए खुदरा मुद्रास्फीति के अनुमान को बढ़ाकर 5.7 प्रतिशत कर दिया, जबकि पूर्व में इसके 4.5 प्रतिशत रहने की संभावना जताई गई थी.

राजन ने अपने कार्यकाल के दौरान ऊंची नीतिगत दर रखकर अर्थव्यवस्था को पीछे धकेलने को लेकर होने वाली आलोचनाओं का जवाब भी दिया.

उन्होंने लिखा है कि वह सितंबर, 2013 में तीन साल की अवधि के लिए आरबीआई गवर्नर बने थे. उस समय रुपये की विनिमय दर में भारी गिरावट के साथ भारत के सामने मुद्रा संकट की स्थिति थी.

पूर्व गवर्नर ने कहा, ‘जब मुद्रास्फीति 9.5 प्रतिशत थी, तब सितंबर, 2013 में महंगाई को काबू में लाने के लिए रेपो दर को 7.25 प्रतिशत से बढ़ाकर 8 प्रतिशत किया गया. जब मुद्रास्फीति घटी, हमने रेपो दर 1.50 प्रतिशत घटाकर 6.5 प्रतिशत किया.’

उन्होंने कहा, ‘हमने मुद्रास्फीति को एक दायरे में रखने के लक्ष्य को लेकर सरकार के साथ समझौते पर भी हस्ताक्षर किए.’

राजन ने कहा कि इन कदमों से केवल अर्थव्यवस्था और रुपये को स्थिर करने में मदद मिलती है. अगस्त, 2013 से अगस्त, 2016 के दौरान मुद्रास्फीति 9.5 प्रतिशत से कम होकर 5.3 प्रतिशत पर आ गई.

उन्होंने लिखा, ‘रुपये में 3 साल के दौरान केवल मामूली गिरावट 63.2 से 66.9 डॉलर तक हुई. हमारा विदेशी मुद्रा भंडार सितंबर 2013 में 275 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर सितंबर 2016 में 371 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया.’

उन्होंने कहा कि आज विदेशी मुद्रा भंडार 600 अरब डॉलर से अधिक है, इससे आरबीआई को कच्चे तेल के ऊंचे दाम के बावजूद वित्तीय बाजारों को स्थिर बनाए रखने में मदद मिली.

राजन ने कहा, ‘वर्ष 1990-91 में तेल की ऊंची कीमतों के कारण उत्पन्न संकट के कारण ही हमें मुद्राकोष के पास जाना पड़ा था. केंद्रीय बैंक के मजबूत आर्थिक प्रबंधन से यह सुनिश्चित हुआ है कि वैसी स्थिति दोबारा नहीं हो.’

कुछ दिन पहले रघुराम राजन ने आगाह किया था कि भारत की अल्पसंख्यक विरोधी छवि से भारतीय उत्पादों के लिए (अन्य देशों में) बाजार का नुकसान हो सकता है.

उन्होंने कहा था कि इसके चलते विदेशी सरकारें भारत को एक गैर-भरोसेमंद साझेदार मान सकती हैं. उन्होंने भारत में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाए जाने की चिंताओं के बीच यह बात कही थी.

उन्होंने कहा था कि भारत की साख लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के लिए रही है, लेकिन अब उसे छवि की लड़ाई लड़नी पड़ रही है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)