महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख पर मुंबई के पूर्व कमिश्नर परमबीर सिंह ने पिछले साल भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे. जिसकी जांच सेवानिवृत्त न्यायाधीश केयू चांदीवाल के एक सदस्यीय आयोग को सौंपी गई थी. आयोग ने मंगलवार को अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और गृह मंत्री दिलीप वालसे पाटिल को दी. गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सिंह ने अपने आरोपों को सिद्ध करने के लिए जांच के दौरान कोई सबूत पेश नहीं किया.
नई दिल्ली: महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ मुंबई के पूर्व कमिश्नर परमबीर सिंह द्वारा लगाए भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए गठित जस्टिस केयू चांदीवाल आयोग ने अपनी रिपोर्ट में देशमुख को क्लीन चिट दे दी है. द फ्री प्रेस जर्नल ने अपनी रिपोर्ट में इसकी पुष्टि की है.
मंगलवार , 26 अप्रैल को आयोग ने अपनी जांच रिपोर्ट महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और गृह मंत्री दिलीप वालसे पाटिल को सौंपी थी, जो 201 पृष्ठ लंबी थी और उसमें 1,400 पृष्ठों के संलग्नक (Annexures) शामिल थे.
बॉम्बे हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश चांदीवाल जांच का नेतृत्व करने के लिए पिछले साल 30 मार्च को नियुक्त किए गए थे. उनकी नियुक्ति परमबीर सिंह द्वारा मुख्यमंत्री और अन्य उच्च रैंक वाले अधिकारियों को लिखे उस पत्र के बाद हुई थी जिसमें सिंह ने देशमुख पर जबरन वसूली करने का रैकेट चलाने के आरोप लगाए थे, जिसमें देशमुख ने पुलिस अधिकारियों से हर महीने बार और रेस्टोरेंट के मालिकों से 100 करोड़ रुपये वसूलने के लिए कहा था.
पत्र में सिंह ने जो आरोप लगाए थे, वे कथित तौर पर तत्कालीन सहायक पुलिस आयुक्त संजय पाटिल और तत्कालीन सहायक पुलिस निरीक्षक सचिन वझे के बयानों के आधार पर लगाए गए थे.
द फ्री प्रेस जर्नल से बात करने वाले गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, सिंह ने अपने आरोपों को सिद्ध करने के लिए जांच के दौरान कोई सबूत पेश नहीं किया.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, आयोग को तीन मुख्य बातों की जांच करनी थी: क्या 20 मार्च 2021 को लिखे अपने पत्र में सिंह ने कोई सबूत पेश किया था जिससे स्थापित हो कि देशमुख या उनके कार्यालय के किसी अधिकारी ने कोई अपराध/कदाचार किया हो जैसा कि आरोप लगाया गया, क्या सिंह द्वारा पाटिल और वझे के मैसेजेस का हवाला देकर लगाए गए आरोपों में कोई सच्चाई है, और क्या इस मामले में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो या किसी अन्य जांच एजेंसी द्वारा जांच की जरूरत है.
चांदीवाल आयोग की जांच के साथ-साथ केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की भी जांच चल रही है और क्लीन चिट के हालिया फैसले से उसके प्रभावित होने की संभावना नहीं है.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने सीबीआई को पिछले साल अप्रैल में मामले की जांच शुरू करने का निर्देश दिया था, जिसके बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता देशमुख ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.
24 अप्रैल 2021 को सीबीआई ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं के साथ-साथ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत देशमुख के खिलाफ प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज की थी. हालांकि, उन्हें तुरंत गिरफ्तार नहीं किया गया था.
देशमुख को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने पिछले साल नवंबर में 12 घंटे की पूछताछ के बाद गिरफ्तार किया था और उन पर धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत आरोप लगाया गया था. इसके बाद उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. इसके बाद उन्हें आर्थर रोड़ जेल में रखा गया, जहां वह इस साल अप्रैल तक रहे.
अप्रैल में, सीबीआई ने अतिरिक्त पूछताछ के लिए देशमुख को हिरासत में ले लिया. वझे और देशमुख के दो सहयोगी, कुंदन शिंदे और संजीव पलांडे, पहले से ही सीबीआई की हिरासत में थे.
बहरहाल, करीब एक साल तक चली जांच के दौरान आयोग ने देशमुख, बर्खास्त पुलिस अधिकारी सचिन वझे और अन्य के बयान दर्ज किए. सिंह कई बार सम्मन भेजे जाने के बाद केवल एक बार आयोग के सामने पेश हुए थे.
मुंबई के पूर्व पुलिस प्रमुख ने कई हलफनामों के माध्यम से आयोग को बताया था कि उनके पास मुख्यमंत्री को लिखे अपने पत्र में दी गई जानकारी के अलावा और कुछ नहीं है.
बता दें कि फरवरी 2021 में उद्योगपति मुकेश अंबानी के आवास ‘एंटीलिया’ के निकट एक एसयूवी से विस्फोटक सामग्री मिलने की घटना के समय सिंह मुंबई पुलिस आयुक्त थे. इस घटना के बाद मार्च में सिंह का तबादला कर दिया गया था, जिसके बाद उन्होंने आरोप लगाया था कि देशमुख ने पुलिस अधिकारियों को शहर के बार और रेस्तरां से हर महीने 100 करोड़ रुपये की जबरन वसूली करने का निर्देश दिया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ