डिजिटल राइट एडवोकेसी ग्रुप एक्सेस नाउ द्वारा जारी नई रिपोर्ट बताती है कि साल 2021 में दुनियाभर के 34 देशों में लगभग 182 बार इंटरनेट को बाधित किया गया, जो 2020 की तुलना में कुछ अधिक है.
नई दिल्लीः डिजिटल राइट एडवोकेसी ग्रुप एक्सेस ग्रुप द्वारा जारी की गई नई रिपोर्ट से पता चला है कि भारत सरकार ने 2021 में कम से कम 106 बार इंटरनेट की सेवा को बाधित किया. इस तरह इंटरनेट शटडाउन को लेकर भारत लगातार चौथे साल दुनिया का सबसे बड़ा उल्लंघनकर्ता बन गया है.
इस रिपोर्ट में इकट्ठा किए गए डेटा से पता चलता है कि दुनियाभर के 34 देशों में लगभग 182 बार इंटरनेट को बाधित किया गया, जो 2020 की तुलना में थोड़ा अधिक है.
साल 2020 में 29 देशों में 159 बार इंटरनेट शटडाउन किया गया था.
रिपोर्ट में कहा गया, ‘भारत के बाद 2021 में म्यांमार ने सबसे अधिक बार इंटरनेट शटडाउन किया. इस दौरान 15 बार इंटरनेट को बंद किया गया. इसके बाद सूडान और ईरान में पांच-पांच बार इंटरनेट को बाधित किया गया. बीते पांच साल में हमारे द्वारा दर्ज दस्तावेज से पता चलता है कि देश की राजनीतिक स्थिति को प्रभावित करने वाले कार्यक्रमों जैसे चुनाव, प्रदर्शन आदि के दौरान इंटरनेट को सबसे अधिक बार बाधित किया गया.’
रिपोर्ट में यह भी कहा गया, ‘वैश्विक कोविड-19 महामारी के प्रसार के बाद स्थिति धीरे-धीरे सामान्य होने के साथ हमें 2021 में इंटरनेट शटडाउन में दोबारा वृद्धि देखने को मिली. 2021 में सरकारों द्वारा लंबे और निशाना बनाकर लागू किए जाने वाले इंटरनेट शटडाउन देखने को मिले। सरकारों ने स्वाभाविक तौर पर असंगत और इन कठोर कदमों को लागू करने के लिए एक ही तर्क दिया.’
एक्सेस नाउ की रिपोर्ट से पता चला कि यह संभव है कि सरकारी पारदर्शिता की कमी की वजह से उनकी रिपोर्ट में भारत में कुछ नेटवर्क बाधाओं के उल्लेख को शामिल नहीं किया हो.
रिपोर्ट में कहा गया कि यह केंद्र सरकार द्वारा देशभर में संबंधित प्राधिकारियों द्वारा लगाए इंटरनेट शटडाउन ‘डेटा के केंद्रीकृत भंडार’ (centralised repository of data) बनाने और उसे संभाले रखने की अनिच्छा का नतीजा है.
रिपोर्ट कहती है, ‘यह 2017 के निलंबन नियमों को पूरा करने और उसका समर्थन करने वाले सुप्रीम कोर्ट के आदेश की जरूरतों की असफलता का प्रतिनिधित्व करता है. केंद्रीकृत डेटाबेस की कमी के कारण नागरिक समाज और अन्य लोगों के लिए इंटरनेट शटडाउन पर प्रभावी रूप से नजर रखना और उसका दस्तावेजीकरण करना मुश्किल है, कई बार इनमें से कुछ शटडाउन तो रिकॉर्ड में दर्ज ही नहीं हो पाते.’
आर्थिक लागत भी
जहां नागरिक समाज हितधारक और डिजिटल अधिकार विशेषज्ञों लंबे समय से बताते रहे हैं कि किस तरह इंटरनेट शटडाउन कानून प्रवर्तन भारत सरकार की मुद्दों से निपटने की अक्षमता छिपाते हैं, वहीं इसकी एक अप्रत्यक्ष आर्थिक लागत भी है.
ब्रुकिंग्स संस्थान के साल 2016 के एक विश्लेषण से पता चला कि इंटरनेट शटडाउन से भारत को 2015-2016 में लगभग एक अरब डॉलर की चपत लगी, जो इस विश्लेषण का हिस्सा रहे 19 देशों में इंटरनेट शटडाउन से होने वाले नुकसान में सबसे अधिक है.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)