गुजरात: कोर्ट ने किसान के 31 पैसे बकाया होने पर ‘नो-ड्यूज़’ नहीं जारी करने पर एसबीआई को लगाई फटकार

गुजरात हाईकोर्ट की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए भारतीय स्टेट बैंक से कहा कि बैंकिंग नियामक क़ानून कहता है कि 50 पैसे से कम की रकम की गणना नहीं की जानी चाहिए, ऐसे में आप लोगों का उत्पीड़न क्यों कर रहे हैं? यह बैंक प्रबंधक द्वारा किए जा रहे उत्पीड़न के अलावा और कुछ नहीं है.

गुजरात हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

गुजरात हाईकोर्ट की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए भारतीय स्टेट बैंक से कहा कि बैंकिंग नियामक क़ानून कहता है कि 50 पैसे से कम की रकम की गणना नहीं की जानी चाहिए, ऐसे में आप लोगों का उत्पीड़न क्यों कर रहे हैं? यह बैंक प्रबंधक द्वारा किए जा रहे उत्पीड़न के अलावा और कुछ नहीं है.

गुजरात हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

अहमदाबाद: गुजरात हाईकोर्ट ने भूमि सौदे के एक विषय में एक किसान पर महज 31 पैसे बकाया रह जाने पर उसे ‘अदेयता प्रमाण-पत्र’ (नो ड्यूज सर्टिफिकेट) जारी नहीं करने को लेकर भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को फटकार लगाई है.

अदालत ने कहा, ‘यह उत्पीड़न के अलावा और कुछ नहीं है.’ जस्टिस भार्गव करिया ने बुधवार (27 अप्रैल) को एक याचिका की सुनवाई करते हुए बैंक के प्रति नाखुशी जताई.

न्यायाधीश ने कहा, ‘हद हो गई, एक राष्ट्रीयकृत बैंक कहता है कि महज 31 पैसे बकाया रह जाने के कारण अदेयता प्रमाणपत्र नहीं जारी किया जा सकता.’

याचिकाकर्ता राकेश वर्मा और मनोज वर्मा ने अहमदाबाद शहर के पास खोर्जा गांव में किसान शामजीभाई और उनके परिवार से वर्ष 2020 में एक भूखंड खरीदा था.

शामजीभाई ने एसबीआई से लिए गए फसल ऋण को पूरा चुकाने से पहले ही याचिकाकर्ता को जमीन तीन लाख रुपये में बेच दी थी, ऐसे में भूखंड पर बैंक के शुल्क के कारण याचिकाकर्ता (भूमि के नए मालिक) राजस्व रिकॉर्ड में अपना नाम नहीं दर्ज करवा सकते थे.

हालांकि, किसान ने बाद में बैंक का पूरा कर्ज चुकता कर दिया, लेकिन इसके बावजूद एसबीआई ने उक्त प्रमाण-पत्र कुछ कारणवश जारी नहीं किया.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, पिछले मालिक द्वारा बकाया होने के कारण जिन्होंने एसबीआई से 4.55 लाख रुपये का नकद फसल ऋण लिया था, राकेश और मनोज द्वारा राजस्व विभाग के समक्ष भूमि को उनके नाम पर बदलने के लिए आवेदन को खारिज कर दिया गया था.

इसके बाद भूमि के नए स्वामी वर्मा ने हाईकोर्ट का रुख किया. बुधवार को सुनवाई के दौरान जस्टिस करिया ने बैंक का बकाया नहीं होने का प्रमाण-पत्र अदालत में पेश करने के लिए कहा.

याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता जिनेश कपाड़िया के अनुसार, भूमि के पिछले मालिक ने बाद में बकाया राशि का भुगतान कर दिया था, इसलिए भूमि को याचिकाकर्ताओं के नाम से पर बदलने में कोई बाधा नहीं थी. लेकिन एसबीआई द्वारा लंबित 31 पैसे के बकाया राशि के कारण प्रमाण पत्र जारी नहीं किया गया.

इस पर एसबीआई के वकील आनंद गोगिया ने कहा, ‘यह संभव नहीं है, क्योंकि किसान पर अब भी 31 पैसे का बकाया है. यह प्रणालीगत मामला है.’

इस पर जस्टिस करिया ने कहा कि 50 पैसे से कम की राशि को नजरअंदाज करके इस मामले में उक्त प्रमाण-पत्र जारी करना चाहिए, क्योंकि किसान ने पहले ही पूरा कर्ज चुका दिया है.

वहीं, जब गोगिया ने कहा कि प्रबंधक ने प्रमाण-पत्र नहीं देने के मौखिक आदेश दिए हैं, तो न्यायाधीश ने नाखुशी व्यक्त करते हुए अधिवक्ता को निर्देश दिया कि वह प्रबंधक को अदालत में पेश होने के लिए कहें.

जस्टिस करिया ने कहा कि बैंकिंग नियामक कानून कहता है कि 50 पैसे से कम की रकम की गणना नहीं की जानी चाहिए, ऐसे में आप लोगों का उत्पीड़न क्यों कर रहे हैं? जस्टिस ने कहा कि यह प्रबंधक द्वारा किए जा रहे उत्पीड़न के अलावा और कुछ नहीं है.

एसबीआई ने बुधवार को कहा कि कर्जदार ने फसल ऋण के खाते में बकाया राशि का भुगतान कर दिया है.

इसके बाद अदालत ने एसबीआई को खाते के विवरण को रिकॉर्ड में रखने का निर्देश दिया और मामले को 2 मई को आगे की सुनवाई के लिए रखा.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)