रिहा होने के बाद जिग्नेश मेवाणी ने कहा, मेरे ख़िलाफ़ एफ़आईआर क़ानून के शासन की घोर अवहेलना

गुजरात के निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी को कथित तौर पर प्रधानमंत्री से जुड़े एक ट्वीट के संबंध में असम पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया था. इस मामले में ज़मानत पर रिहा होने के बाद मेवाणी ने कहा कि भाजपा और आरएसएस फासीवादी हैं. जब ऐसी मान्यताओं वाले लोग सत्ता में आते हैं तो उनके सभी प्रयास लोकतंत्र को ख़त्म करने की ओर होते हैं. उन्होंने कहा कि इसी मानसिकता के कारण उन्हें एक फ़र्ज़ी मामले में फ़ंसाया गया.

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जिग्नेश मेवाणी. (फोटो साभार: फेसबुक/@jigneshmevaniofficial)

गुजरात के निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी को कथित तौर पर प्रधानमंत्री से जुड़े एक ट्वीट के संबंध में असम पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया था. इस मामले में ज़मानत पर रिहा होने के बाद मेवाणी ने कहा कि भाजपा और आरएसएस फासीवादी हैं. जब ऐसी मान्यताओं वाले लोग सत्ता में आते हैं तो उनके सभी प्रयास लोकतंत्र को ख़त्म करने की ओर होते हैं. उन्होंने कहा कि इसी मानसिकता के कारण उन्हें एक फ़र्ज़ी मामले में फ़ंसाया गया.

जिग्नेश मेवाणी. (फोटो साभार: फेसबुक)

कोकराझार/गुवाहाटी: गुजरात के दलित नेता और निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी शनिवार को असम की कोकराझार की अदालत में जमानत संबंधी लंबित औपचारिकताएं पूरी करने के बाद अपने राज्य लौट गए. उन्होंने शनिवार को दावा किया कि पूज्य वैष्णव संत श्रीमंत शंकरदेव की भूमि पूर्वोत्तर राज्य (असम) में उनके खिलाफ ‘फर्जी मामले’ दर्ज किए गए.

मेवाणी ने कोकराझार में पत्रकारों से यह भी कहा कि भाजपा नेतृत्व ने उन्हें प्रताड़ित करने के लिए ‘साजिश रची थी.’ मेवाणी बनासकांठा की वडगाम सीट से निर्दलीय विधायक चुने गए थे. वह हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए हैं.

दलित नेता ने आरोप लगाया, ‘असम पुलिस ने अचानक मुझे गिरफ्तार क्यों किया, मामले दर्ज क्यों किए, रिमांड के लिए क्यों कहा और जमानत याचिका का विरोध क्यों किया, क्योंकि उन्हें अपने राजनीतिक आकाओं से निर्देश मिले थे.’

उन्होंने बाद में गुवाहाटी में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए यह भी कहा कि उनकी गिरफ्तारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और असम सरकार द्वारा राज्य के लोगों को एक संदेश से कम नहीं है, जिसके तहत उन्हें असंतोष के लिए कार्रवाई की चेतावनी दी गई है.

मेवाणी ने कहा, ‘मेरे खिलाफ एफआईआर कानून के शासन की घोर अवहेलना करते हुए दर्ज की गई थी. यह डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर के संविधान का अपमान है. अगर किसी अन्य राज्य के विधायक को असम पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जा सकता है, तो पूर्वोत्तर राज्य में किसी भी असंतुष्ट को भी आसानी से कुचला जा सकता है.’

जिग्नेश मेवाणी को असम पुलिस ने 19 अप्रैल को गुजरात से गिरफ्तार किया गया था और पूर्वोत्तर राज्य असम लाई थी. असम पुलिस ने मेवाणी के खिलाफ यह कार्रवाई उनके द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को लेकर एक कथित ट्वीट किए जाने के बाद की थी, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि प्रधानमंत्री मोदी ‘गोडसे को भगवान मानते हैं.’

असम पुलिस ने गुजरात से विधायक मेवाणी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करने वाले ट्वीट से संबंधित मामले में सोमवार (25 अप्रैल) को जमानत मिलने के तुरंत बाद महिला पुलिसकर्मी से कथित तौर पर छेड़छाड़ करने के आरोप में फिर गिरफ्तार कर लिया था.

बारपेटा के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी मुकुल चेतिया ने मेवाणी को जमानत देने से इनकार करते हुए उन्हें 26 अप्रैल को पांच दिनों की पुलिस हिरासत में भेज दिया था. इसके बाद मेवाणी ने 28 अप्रैल को नई जमानत याचिका दायर की थी, जिस पर सुनवाई के बाद उन्हें जमानत मिल गई.

असम में बारपेटा जिला न्यायाधीश ने शुक्रवार को मेवाणी को जमानत दे दी थी और कथित हमले के मामले में ‘झूठी एफआईआर’ दर्ज करने के लिए असम पुलिस की खिंचाई की थी. इसके बाद मेवाणी जमानत की औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए शुक्रवार सुबह कोकराझार आए थे.

अदालत ने अपने आदेश में कहा था, ‘कोई भी समझदार शख्स दो पुरुष पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में किसी भी महिला पुलिसकर्मी से बदतमीजी नहीं करने की कोशिश नहीं करेगा. रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी दर्ज नहीं है, जिससे पता चले कि आरोपी जिग्नेश मेवाणी पागल हैं.’

दलित नेता ने कहा कि न्यायपालिका के लिए उनके मन में बहुत सम्मान है, जिसने कहा कि ‘मेरे खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का कोई कारण नहीं था और यह अदालत में स्वीकार करने योग्य नहीं है.’

मेवाणी ने कहा, ‘सरकार मेरी आत्मा और आत्मविश्वास को कुचलना चाहती थी, लेकिन इससे मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ा. मेरे खिलाफ कितनी भी एफआईआर दर्ज की जा सकती है, लेकिन मैं अपने रुख से एक इंच भी नहीं हटूंगा.’

उन्होंने कहा, ‘भाजपा और आरएसएस फासीवादी हैं. वे संविधान को हटाना और ‘मनुस्मृति’ लाना चाहते हैं. जब ऐसी मान्यताओं वाले लोग सत्ता में आते हैं तो उनके सभी प्रयास लोकतंत्र को खत्म करने की ओर होते हैं. इस मानसिकता के कारण मुझे एक फर्जी मामले में फंसाया गया.’

दलित नेता ने कहा कि असम के लोगों, पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और उन लोगों का क्या होगा जो भाजपा सरकार के खिलाफ बोलते हैं.

उन्होंने कहा, ‘असम में गैर-न्यायिक हत्याओं के कारण अदालत को कहना पड़ा कि असम धीरे-धीरे एक पुलिस राज्य बन रहा है और यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है.’

मेवाणी राज्य में हिमंता बिस्वा शर्मा की अगुवाई में भाजपा के सत्ता में आने के बाद पिछले साल से अब तक पुलिस मुठभेड़ों का हवाला दे रहे थे.

उन्होंने दावा किया कि उन पर हमले का दूसरा मामला दर्ज करना ‘कायरतापूर्ण कृत्य है क्योंकि असम पुलिस जानती थी कि ट्वीट से जुड़ा पहला मामला कहीं नहीं टिकेगा.’

उन्होंने कांग्रेस की प्रदेश इकाई, उसके वकीलों और लोगों खासतौर से युवाओं, आदिवासियों, दलितों, मुसलमानों और अहोम का उन्हें समर्थन करने के लिए आभार व्यक्त किया.

उन्होंने कहा, ‘यह महापुरुष शंकरदेव का असम है, न कि हिमंता बिस्वा शर्मा (मुख्यमंत्री) का. राज्य में सांस्कृतिक विविधता बनी रहनी चाहिए.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)