शीर्ष अदालत उस याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें दिल्ली और हरिद्वार में हुए ‘धर्म संसद’ कार्यक्रमों में मुस्लिम समुदाय के ख़िलाफ़ नफ़रती भाषण की एसआईटी जांच के निर्देश देने का अनुरोध किया गया है. दिल्ली पुलिस ने इससे पहले शीर्ष अदालत को बताया था कि दिसंबर 2021 को हिंदू युवा वाहिनी द्वारा राजधानी में आयोजित कार्यक्रम में किसी भी समुदाय के ख़िलाफ़ कोई नफ़रत व्यक्त नहीं की गई थी.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट द्वारा फटकार लगाए जाने के बाद दिल्ली पुलिस ने अपने पिछले बयान से पलटते हुए अदालत को सूचित किया है कि राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित किए गए एक ‘धर्म संसद’ के दौरान भड़काऊ भाषण (Hate Speech) के मामले में उसने समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोप में एफआईआर दर्ज की है.
पुलिस ने अदालत को बताया कि उसने सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से प्रसारित वीडियो का विश्लेषण करने के बाद एफआईआर दर्ज की.
दिल्ली पुलिस ने पहले शीर्ष अदालत को बताया था कि पिछले साल 19 दिसंबर को हिंदू युवा वाहिनी द्वारा राजधानी दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में ‘किसी भी समुदाय के खिलाफ कोई विशेष शब्द नहीं बोले गए.’
दिल्ली पुलिस ने अपने ताजा हलफनामे में कहा, ‘यह सूचित जाता है कि शिकायत में दिए गए सभी ‘लिंक’ और सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध अन्य सामग्री का विश्लेषण किया गया. उक्त कार्यक्रम का एक वीडियो यूट्यूब चैनल पर पाया गया. सामग्री का बारीकी से सत्यापन करने के बाद, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153ए, 295ए, 298 और 34 के अतंर्गत चार मई को थाना ओखला औद्योगिक क्षेत्र, दक्षिण पूर्व (दिल्ली) जिले में एफआईआर दर्ज की गई है.’
गौरतलब है कि बीते 22 अप्रैल को शीर्ष अदालत ने दिल्ली पुलिस के उस हलफनामे पर अपनी नाखुशी जताई थी, जिसमें कहा गया था कि आयोजन के दौरान कोई भड़काऊ भाषण नहीं दिया गया था. अदालत ने पुलिस को ‘बेहतर हलफनामा’ दाखिल करने का निर्देश दिया था.
जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस अभय एस. ओका की पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) केएम नटराज को निर्देश प्राप्त करने और चार मई तक ‘बेहतर हलफनामा’ दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया था.
पीठ ने कहा था, ‘हलफनामा डिप्टी पुलिस कमिश्नर द्वारा दाखिल किया गया है. हमें उम्मीद है कि वह बारीकियों को समझ गए हैं. क्या उन्होंने केवल जांच रिपोर्ट फिर से पेश कर दी या दिमाग लगाया भी है. क्या आपका भी यही रुख है या सब इंस्पेक्टर स्तर के अधिकारी की जांच रिपोर्ट फिर से पेश करना है?’
तब दिल्ली पुलिस की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) केएम नटराज ने कहा था कि वे मामले पर फिर से विचार करेंगे और एक नया हलफनामा दाखिल करेंगे.
शीर्ष अदालत पत्रकार कुर्बान अली और पटना हाईकोर्ट की पूर्व न्यायाधीश एवं वरिष्ठ अधिवक्ता अंजना प्रकाश द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने दिल्ली और हरिद्वार में हुए ‘धर्म संसद’ कार्यक्रमों में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरती भाषण की घटनाओं की एसआईटी द्वारा ‘स्वतंत्र, विश्वसनीय और निष्पक्ष जांच’ के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुनवाई के दौरान ओखला औद्योगिक क्षेत्र थाने के उपनिरीक्षक के भाषण के अंश और जांच रिपोर्ट की ओर पीठ का ध्यान आकर्षित किया था.
मालूम हो कि अप्रैल महीने में दिल्ली पुलिस द्वारा इस संबंध में दाखिल किए गए हलफनामे में उसने कहा था कि दिल्ली के कार्यक्रम में कोई भी नफरत व्यक्त नहीं की गई थी, जैसा कि याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था.
उसने कहा था, ‘दिल्ली के कार्यक्रमों में किसी समूह, समुदाय, धर्म या विश्वास के खिलाफ कोई नफरत व्यक्त नहीं की गई थी.’
हलफनामे में दिल्ली पुलिस के हवाले से आगे कहा गया था कि भाषण (कार्यक्रम के दौरान) एक धर्म को सशक्त बनाने के बारे में था, ताकि वह अपने अस्तित्व को खतरे में डालने वाली बुराइयों का सामना करने के लिए खुद को तैयार कर सके. वह किसी धर्म विशेष के नरसंहार के आह्वान से दूर-दूर तक जुड़ाव नहीं रखता.
यह भी कहा गया था, ‘दिल्ली के कार्यक्रम से जुड़े वीडियो में किसी खास वर्ग या समुदाय के खिलाफ कुछ भी नहीं बोला गया था. इसलिए जांच और कथित वीडियो के आकलन के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचा गया कि कथित घृणा भाषण में किसी समुदाय विशेष के खिलाफ नफरत भड़कने वाले शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया गया है.’
इसमें पुलिस का मानना था कि कार्यक्रम के दौरान बोला गया कोई भी शब्द किसी भी रूप में भारतीय मुसलमानों को पारिभाषित नहीं करता है, जिससे कि किसी धर्म, जाति या संप्रदाय के बीच उन्माद का माहौल पैदा हो.
इसमें कहा गया था कि भाषण का किसी धर्म विशेष के लोगों के नरसंहार के आह्वान से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं था.
मालूम हो कि बीते साल दिसंबर में उत्तराखंड के हरिद्वार में जब कट्टर हिंदुत्ववादी नेताओं ने मुस्लिम नरसंहार का आह्वान किया तो उसी दौरान राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हिंदू युवा वाहिनी के ऐसे ही कार्यक्रम में सुदर्शन टीवी के एडिटर इन चीफ सुरेश चव्हाणके ने कहा था कि वह भारत को ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने के लिए ‘लड़ने, मरने और मारने’ के लिए तैयार हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, वीडियो में चव्हाणके को यह कहते सुना जा सकता है, ‘इस देश को हिंदू राष्ट्र बनाने और हिंदू राष्ट्र बनाए रखने के लिए जरूरत पड़ने पर हमें लड़ना, मरना और मारना पड़ेगा.’ इस कार्यक्रम में मौजूद भीड़ ने भी इन्हीं शब्दों को दोहराते हुए ‘शपथ’ ली.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, शीर्ष अदालत ने इससे पहले उत्तराखंड सरकार को एक स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहा था, क्योंकि उसने कहा था कि पिछले साल दिसंबर में हरिद्वार में आयोजित एक ‘धर्म संसद’ कार्यक्रम के दौरान कथित रूप से नफरत फैलाने वाले भाषणों के संबंध में चार एफआईआर दर्ज की गई हैं.
अदालत ने 12 जनवरी को उस याचिका पर नोटिस जारी किया था, जिसमें हरिद्वार और राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित दो कार्यक्रमों (धर्म संसद) के दौरान कथित तौर पर नफरती भाषण देने वालों के खिलाफ जांच और कार्रवाई सुनिश्चित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी.
याचिका, जिसमें विशेष रूप से 17 और 19 दिसंबर 2021 के बीच हरिद्वार और दिल्ली में दिए गए घृणास्पद भाषणों का उल्लेख किया गया है, ने इस तरह के भाषणों से निपटने के लिए शीर्ष अदालत के दिशानिर्देशों का अनुपालन करने की भी मांग की है.
एक कार्यक्रम का आयोजन हरिद्वार में यति नरसिंहानंद द्वारा और दूसरा दिल्ली में हिंदू युवा वाहिनी द्वारा आयोजित किया गया था. दोनों ही कार्यक्रमों में कथित तौर पर मुस्लिम समुदाय के सदस्यों के ‘नरसंहार का आह्वान’ किया गया था.
उत्तराखंड पुलिस ने पिछले 23 दिसंबर को संत धर्मदास महाराज, साध्वी अन्नपूर्णा उर्फ पूजा शकुन पांडे, यति नरसिंहानंद और सागर सिंधु महाराज सहित कुछ लोगों के खिलाफ हरिद्वार धर्म संसद मामले में एफआईआर दर्ज की थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)