भीमा-कोरेगांव हिंसा के आरोपियों में से हिंदुत्ववादी नेता संभाजी भिड़े का नाम हटाया गया: पुलिस

1 जनवरी, 2018 को महाराष्ट्र में पुणे के भीमा कोरेगांव इलाके में हुई हिंसा के बाद दलित राजनीतिक कार्यकर्ता अनीता सावले ने संभाजी भिड़े और एक अन्य हिंदुत्ववादी नेता मिलिंद एकबोटे के नाम एक एफ़आईआर दर्ज कराई थी, जिसमें उन पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया गया था, जिसमें एक व्यक्ति की जान चली गई और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे.

संभाजी भिड़े. (फोटो: पीटीआई)

1 जनवरी, 2018 को महाराष्ट्र में पुणे के भीमा कोरेगांव इलाके में हुई हिंसा के बाद दलित राजनीतिक कार्यकर्ता अनीता सावले ने संभाजी भिड़े और एक अन्य हिंदुत्ववादी नेता मिलिंद एकबोटे के नाम एक एफ़आईआर दर्ज कराई थी, जिसमें उन पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया गया था, जिसमें एक व्यक्ति की जान चली गई और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे.

संभाजी भिड़े. (फोटो: पीटीआई)

पुणे: महाराष्ट्र के पुणे जिले में हुई भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में हिंदुत्ववादी नेता संभाजी भिड़े को बरी करते हुए पुणे ग्रामीण पुलिस ने महाराष्ट्र राज्य मानवाधिकार आयोग (एमएचआरसी) को बताया है कि उसे उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला है और मामले से उनका नाम हटाया जा रहा है.

भिड़े के खिलाफ इस संबंध में एफआईआर दर्ज की गई थी, लेकिन उन्हें कभी गिरफ्तार नहीं किया गया था.

1 जनवरी, 2018 को भीमा कोरेगांव इलाके में हुई हिंसा के बाद दलित राजनीतिक कार्यकर्ता अनीता सावले ने संभाजी भिड़े और एक अन्य हिंदुत्ववादी नेता मिलिंद एकबोटे का नाम लेते हुए एक एफआईआर दर्ज कराई थी, जिसमें उन पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया गया था, जिसमें एक व्यक्ति की जान चली गई और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे.

समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, पुणे जिले की पिंपरी पुलिस ने भिड़े और अन्य के खिलाफ एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम और हत्या के प्रयास सहित आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया था.

2021 में अधिवक्ता आदित्य मिश्रा ने एमएचआरसी से संपर्क करते हुए कहा था कि महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने विधानसभा में कहा था कि भिड़े के खिलाफ मामला वापस ले लिया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

बीते चार मई को पुलिस ने इस संबंध में आयोग के समक्ष अपनी रिपोर्ट पेश की. आयोग ने मामले के अगली सुनवाई 4 जुलाई को निर्धारित की है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, यह भी आरोप थे कि भिड़े और एकबोटे को भीमा कोरेगांव इलाके में हिंसा वाले दिन देखा गया था. संयोग से पुलिस के अनुसार, उस दिन भिड़े वास्तव में सांगली में राकांपा नेता जयंत पाटिल की मां की मौत से संबंधित एक अनुष्ठान में मौजूद थे.

बीते पांच मई को भीमा कोरेगांव जांच आयोग के सामने गवाह के रूप में पेश हुए राकांपा प्रमुख शरद पवार, जिन्होंने पहले हिंसा के लिए दक्षिणपंथी ताकतों को दोषी ठहराया था, ने कहा कि वह भिड़े को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानते थे, लेकिन मीडिया के माध्यम से उनके बारे में पढ़ा था.

भिड़े ने हिंसा में किसी भी भूमिका से लगातार इनकार किया है और कहा है कि वह किसी भी जांच के लिए तैयार हैं. वह इस समय एक दुर्घटना के बाद अस्पताल में भर्ती हैं.

संभाजी भिड़े अपने भाषणों और बयानों के कारण विवादों में बने रहते हैं. अपने हिंदू दक्षिणपंथी संगठन ‘श्री शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्थान’ का गठन करने से पहले से लेकर अब तकरीबन 90 वर्ष की उम्र तक वह आरएसएस के एक सक्रिय पूर्णकालिक कार्यकर्ता थे. सांगली में रहने वाले भिड़े न केवल राज्य में बल्कि देश के अन्य हिस्सों में लाखों अनुयायी हैं.

जनवरी 2014 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी एक प्रमुख वक्ता के रूप में भिड़े के संगठन द्वारा आयोजित ऐतिहासिक रायगढ़ किले में एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे.

भिड़े के दिवंगत शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे के साथ भी संबंध थे, जो उनके बेटे और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और शिवसेना के अन्य नेताओं के साथ जारी रहे, जबकि शिवसेना अब राकांपा और कांग्रेस के साथ गठबंधन का हिस्सा है.

राकांपा और कांग्रेस दोनों के नेताओं को उनके संगठन के कार्यक्रमों, जैसे कि राज्य के विभिन्न हिस्सों में हर नवरात्रि में आयोजित ‘दुर्गा माता दौड़’ में भाग लेने के लिए भी जाना जाता है.

रिपोर्ट के अनुसार, संभाजी भिड़े अपने विवादास्पद और अक्सर अपमानजनक बयानों के लिए भी जाने जाते हैं. 2008 में हिंदी फिल्म जोधा अकबर के विरोध में उनके और उनके समर्थकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी. 2009 में उनके संगठन के सदस्यों को मिराज और सांगली हुए दंगों से जोड़ा गया था. 2017 में पुणे में एक जुलूस में कथित रूप से बाधा डालने के आरोप में भिड़े और कार्यकर्ताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी. यह मामला कोर्ट में विचाराधीन है.

मिराज मामले में पुलिस ने बाद में दंगों के मास्टरमाइंड होने के आरोप में एक स्थानीय राकांपा नेता को गिरफ्तार किया था. फिल्म जोधा अकबर के विरोध से जुड़े मामलों को सरकार ने बाद में खत्म कर दिया था.