आर्थिक संकट के बुरे दौर से गुज़र रहे श्रीलंका में विपक्ष के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री 73 वर्षीय रानिल विक्रमसिंघे को देश के 26वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई है. कोलंबो में भारत के उच्चायोग कहा कि वह नई सरकार के साथ काम करने के लिए आशान्वित हैं. इस बीच एक अदालत ने बीते नौ मई को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा देने वाले महिंदा राजपक्षे, उनके सांसद बेटे नमल राजपक्षे और 15 अन्य लोगों के देश छोड़ने पर रोक लगा दी.
कोलंबो: श्रीलंका के नए प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने कहा कि वह अपने कार्यकाल के दौरान भारत के साथ करीबी संबंध बनाने को लेकर आशान्वित हैं और उन्होंने देश की आर्थिक सहायता करने के लिए भारत का आभार व्यक्त किया. श्रीलंका आजादी के बाद से सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रहा है.
रानिल विक्रमसिंघे 45 साल से संसद में हैं. वकील से नेता बने विक्रमसिंघे ने अगस्त 2020 में हुए आम चुनाव में अपनी यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) के हारने और एक भी सीट न जीत पाने के लगभग दो साल बाद उल्लेखनीय रूप से वापसी की है.
73 वर्षीय विक्रमसिंघे ने देश की कर्ज से दबी अर्थव्यवस्था को स्थिर करने और राजनीतिक उथल-पुथल को खत्म करने के उद्देश्य से बृहस्पतिवार को श्रीलंका के 26वें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली.
श्रीलंका के नए प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने कहा कि वह अपने कार्यकाल के दौरान भारत के साथ करीबी संबंध बनाने को लेकर आशान्वित हैं और उन्होंने देश की आर्थिक सहायता करने के लिए भारत का आभार व्यक्त किया.
विक्रमसिंघे ने उनके देश की भारत द्वारा की गई आर्थिक सहायता का जिक्र करते हुए कहा, ‘मैं करीबी संबंध चाहता हूं और मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार व्यक्त करना चाहता हूं.’
उनकी यह टिप्पणियां शपथ लेने के बाद बृहस्पतिवार रात राजधानी कोलंबो में आयोजित एक धार्मिक समारोह में आई.
विक्रमसिंघे ने कहा कि उनका ध्यान आर्थिक संकट से निपटने पर केंद्रित है. उन्होंने कहा, ‘मैं इस समस्या को सुलझाना चाहता हूं ताकि पेट्रोल, डीजल और बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके.’
प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे ने कहा, ‘मैंने जिस काम का बीड़ा उठाया है, मैं वह करूंगा.’
यह पूछने पर कि क्या 225 सदस्यीय संसद में उनका प्रधानमंत्री पद बरकरार रह सकता है, क्योंकि उनके पास केवल एक सीट है, इस पर उन्होंने कहा, ‘जब बहुमत साबित करने की बात आएगी तो मैं साबित करूंगा.’
देशभर में प्रदर्शनों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि एक महीने से अधिक समय से राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के सचिवालय के समीप चल रहा मुख्य प्रदर्शन जारी रहने दिया जाएगा. उन्होंने कहा, ‘अगर प्रदर्शनकारी चाहेंगे तो मैं उनसे बात करूंगा.’
यह पूछने पर कि क्या उन्हें इस्तीफा देने की मांग को लेकर प्रदर्शन की आशंका है, इस पर विक्रमसिंघे ने कहा कि वह उनका सामना करेंगे. उन्होंने कहा, ‘अगर मैं आर्थिक संकट से निपटने का जिम्मा उठा सकता हूं तो मैं इससे भी निपट सकता हूं.’
भारत ने विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री नियुक्त किए जाने का स्वागत करते हुए बृहस्पतिवार को कहा था कि वह लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के अनुसार गठित नई श्रीलंका सरकार के साथ काम करने को लेकर आशान्वित है तथा द्वीप राष्ट्र के लोगों के प्रति नई दिल्ली की प्रतिबद्धता बरकरार रहेगी.
कुछ दिन पहले ही महिंद्रा राजपक्षे को देश के बिगड़ते आर्थिक हालात के मद्देनजर हुईं हिंसक झड़पों के बाद प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था.
यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) के 73 वर्षीय नेता विक्रमसिंघे को राष्ट्रपति कार्यालय में एक समारोह में राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे की उपस्थिति में शपथ दिलाई गई. इससे पहले दोनों ने आर्थिक संकट से निपटने के लिए नई सरकार बनाने के विषय पर बंद कमरे में बातचीत की थी.
राष्ट्रपति गोटबाया ने अपनी और विक्रमसिंघे की तस्वीर के साथ ट्वीट किया, ‘श्रीलंका के नवनियुक्त प्रधानमंत्री को मेरी शुभकामनाएं. उन्होंने एक संकट के काल में देश को आगे बढ़ाने के लिए इस चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी को संभाला है. मैं श्रीलंका को पुन: मजबूत करने के लिए उनके साथ मिलकर काम करने को लेकर आशान्वित हूं.’
My best wishes to the newly appointed PM of #LKA, @RW_UNP, who stepped up to take on the challenging task of steering our country through a very turbulent time. I look forward to working together with him to make Sri Lanka 🇱🇰 strong again. pic.twitter.com/ysIZGH3wfA
— Gotabaya Rajapaksa (@GotabayaR) May 12, 2022
श्रीलंका में सोमवार (9 मई) से कोई सरकार नहीं थी. उस दिन गोटबाया के बड़े भाई और प्रधानमंत्री महिंद्रा राजपक्षे ने इस्तीफा दे दिया था. उन्हें अपने समर्थकों द्वारा सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों पर हमले के नतीजतन भड़की हिंसा के बाद इस्तीफा देना पड़ा था.
इस हमले के बाद राजपक्षे के वफादारों के खिलाफ व्यापक पैमाने पर हिंसा हुई थी, जिसमें नौ लोगों की मौत हो गई और 200 से अधिक लोग घायल हो गए.
महिंद्रा ने भी विक्रमसिंघे को बधाई देते हुए कहा कि वह इस कठिन समय में उन्हें शुभकामनाएं देते हैं. उन्होंने ट्वीट किया, ‘नवनियुक्त प्रधानमंत्री को बधाई.’
कोलंबो में भारत के उच्चायोग ने कहा कि वह श्रीलंका में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के अनुसार बनी नई सरकार के साथ काम करने के लिए आशान्वित है.
High Commission of India hopes for political stability and looks forward to working with the Government of Sri Lanka formed in accordance with democratic processes pursuant to the swearing in of Hon'ble @RW_UNP as the Prime Minister of #SriLanka. (1/2)
— India in Sri Lanka (@IndiainSL) May 12, 2022
उन्होंने ट्वीट किया, ‘भारत के उच्चायोग को श्रीलंका में राजनीतिक स्थिरता की उम्मीद है और वह लोकतांत्रिक प्रकिया के अनुरूप बनी श्रीलंका की सरकार के साथ काम करने को आशान्वित है.’
उच्चायोग ने कहा कि श्रीलंका की जनता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता जारी रहेगी.
शुक्रवार को किए गए एक अन्य ट्वीट में उच्चायुक्त की ओर से कहा गया कि उच्चायुक्त ने माननीय प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे से मुलाकात कर उन्हें बधाई और शुभकामनाएं दीं. इस दौरान सभी लोगों की भलाई के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के माध्यम से श्रीलंका में आर्थिक सुधार और स्थिरता के लिए सहयोग जारी रखने पर चर्चा की गई.
High Commissioner called on Hon'ble PM @RW_UNP. Conveyed greetings and good wishes. Discussed continued 🇮🇳🇱🇰 cooperation for economic recovery and stability in #SriLanka through democratic processes towards the well being of all the people of 🇱🇰. pic.twitter.com/XJur9hGLtw
— India in Sri Lanka (@IndiainSL) May 13, 2022
भारत ने इस साल जनवरी से लेकर अब तक श्रीलंका को तीन अरब डॉलर से अधिक का कर्ज दिया है.
सूत्रों के अनुसार, सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी), विपक्षी समगी जन बालावेगाया (एसजेबी) के एक धड़े और अन्य कई दलों के सदस्यों ने संसद में विक्रमसिंघे के बहुमत साबित करने के लिए अपना समर्थन जताया है.
हालांकि कई वर्ग नए प्रधानमंत्री के रूप में विक्रमसिंघे की नियुक्ति का विरोध कर रहे हैं. जेवीपी (जनता विमुक्ति पेरामुना) और तमिल नेशनल एलायंस ने दावा किया कि उनकी नियुक्ति असंवैधानिक है.
श्रीलंका के चार बार प्रधानमंत्री रह चुके विक्रमसिंघे को अक्टूबर 2018 में तत्कालीन राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने प्रधानमंत्री पद से हटा दिया था. हालांकि दो महीने बाद ही सिरीसेना ने उन्हें इस पद पर बहाल कर दिया था. उन्हें संसदीय राजनीति का 45 वर्ष का अनुभव है.
देश की सबसे पुरानी पार्टी यूएनपी 2020 के संसदीय चुनावों में एक भी सीट नहीं जीत सकी थी और यूएनपी के मजबूत गढ़ रहे कोलंबो से चुनाव लड़ने वाले विक्रमसिंघे भी हार गए थे. बाद में वह सकल राष्ट्रीय मतों के आधार पर यूएनपी को आवंटित राष्ट्रीय सूची के माध्यम से संसद पहुंच सके.
उनके साथी रहे सजीत प्रेमदासा ने उनसे अलग होकर अलग दल एसजेबी बना लिया जो मुख्य विपक्षी दल बन गया.
विक्रमसिंघे को दूरदृष्टि वाली नीतियों के साथ अर्थव्यवस्था को संभालने वाले नेता के तौर पर व्यापक स्वीकार्यता है. उन्हें श्रीलंका का ऐसा राजनेता माना जाता है जो अंतरराष्ट्रीय सहयोग भी जुटा सकते हैं.
श्रीलंका 1948 में ब्रिटेन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद से सबसे बुरे आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है.
बीते 11 मई को राष्ट्र के नाम एक टेलीविजन संबोधन में राष्ट्रपति गोटबाया ने पद छोड़ने से इनकार किया था, लेकिन एक नया प्रधानमंत्री और एक युवा मंत्रिमंडल नियुक्त करने का वादा किया, जो उनकी शक्तियों पर अंकुश लगाने के लिए महत्वपूर्ण संवैधानिक सुधार पेश करेगा.
गोटबाया ने कहा था कि नए प्रधानमंत्री और सरकार की नियुक्ति के बाद संविधान में 19वें संशोधन की सामग्री को अधिनियमित करने के लिए एक संवैधानिक संशोधन लाया जाएगा, जो संसद को और अधिक शक्तियां प्रदान करेगा.
गौरतलब है कि शुक्रवार (6 मई) को एक विशेष कैबिनेट बैठक में राष्ट्रपति राजपक्षे ने मध्य रात्रि से आपातकाल की घोषणा कर दी थी. यह दूसरी बार है जब श्रीलंका में लगभग एक महीने की अवधि में आपातकाल घोषित किया गया.
आपातकाल के तहत पुलिस और सुरक्षा बलों को मनमाने तरीके से किसी को भी गिरफ्तार करने और हिरासत में रखने की शक्ति मिल जाती है.
इससे पहले राजपक्षे ने उनके निजी आवास के बाहर जबरदस्त विरोध-प्रदर्शन के बाद एक अप्रैल को भी आपातकाल की घोषणा की थी. हालांकि, पांच अप्रैल को इसे वापस ले लिया गया था.
रानिल विक्रमसिंघे का राजनीतिक सफर
भारत के करीबी माने जाने वाले 73 वर्षीय नेता को देश में सबसे खराब आर्थिक संकट के बीच राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने श्रीलंका का 26वां प्रधानमंत्री नियुक्त किया है. उन्हें राजनीतिक हलकों में व्यापक रूप से एक ऐसे व्यक्ति के रूप में स्वीकार किया जाता है जो दूरदर्शी नीतियों से अर्थव्यवस्था का प्रबंधन कर सकता है.
उनकी नियुक्ति ने नेतृत्व के शून्य को भरा है क्योंकि श्रीलंका में सोमवार से तब से सरकार नहीं थी जब गोटबाया के बड़े भाई और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने अपने समर्थकों द्वारा सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों पर हमला किए जाने से भड़की हिंसा के बाद पद से इस्तीफा दे दिया था.
विक्रमसिंघे को श्रीलंका में ऐसा नेता माना जाता है जो अंतरराष्ट्रीय सहयोग की कमान संभाल सकते हैं. उन्होंने अपने साढ़े चार दशक के राजनीतिक करिअर के दौरान कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है.
उन्होंने श्रीलंका के निकट पड़ोसी भारत के साथ व्यक्तिगत संबंध बनाए और प्रधानमंत्री के रूप में अपने पिछले कार्यकाल के दौरान चार अवसरों- अक्टूबर 2016, अप्रैल 2017, नवंबर 2017 और अक्टूबर 2018 में देश का दौरा किया.
इसी अवधि के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका की दो यात्राएं कीं और उन्होंने विक्रमसिंघे के एक व्यक्तिगत अनुरोध का भी जवाब दिया, जो द्वीपीय राष्ट्र में 1990 एंबुलेंस प्रणाली स्थापित करने में मदद करने के लिए था. यह मुफ्त स्वास्थ्य देखभाल सेवा कोविड-19 के दौरान श्रीलंका में बेहद मददगार साबित हुई.
तत्कालीन राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना के विरोध के बावजूद विक्रमसिंघे ने कोलंबो बंदरगाह के पूर्वी टर्मिनल पर भारत के साथ समझौते का समर्थन किया था, जिसे राजपक्षे ने 2020 में खारिज कर दिया था.
उनकी पार्टी यूएनपी देश की सबसे पुरानी पार्टी है, जो 2020 के संसदीय चुनाव में एक भी सीट जीतने में विफल रही थी. 1977 के बाद यह पहली बार हुआ, जब उनकी पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली.
यूएनपी के मजबूत गढ़ रहे कोलंबो से चुनाव लड़ने वाले विक्रमसिंघे खुद भी हार गए थे. बाद में वह सकल राष्ट्रीय मतों के आधार पर यूएनपी को आवंटित राष्ट्रीय सूची के माध्यम से संसद पहुंच सके थे.
श्रीलंका के पहले कार्यकारी राष्ट्रपति जूनियस जयवर्धने के भतीजे विक्रमसिंघे को राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदास की हत्या के बाद पहली बार 1993-1994 तक प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया था.
वह 2001-2004 तक भी तब प्रधानमंत्री रहे, जब 2001 में संयुक्त राष्ट्रीय मोर्चा ने आम चुनाव जीता था. लेकिन चंद्रिका कुमारतुंगा द्वारा जल्द चुनाव कराए जाने के बाद 2004 में उन्होंने सत्ता खो दी.
प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने लिट्टे के साथ शांति वार्ता शुरू की, यहां तक कि सत्ता-साझाकरण सौदे की पेशकश भी की. कुमारतुंगा और महिंदा राजपक्षे ने उन पर लिट्टे के साथ बहुत नरमी बरतने और उसे बहुत अधिक रियायतें देने का आरोप लगाया था.
विक्रमसिंघे ने 2015 के चुनाव में महिंदा राजपक्षे को करारी शिकस्त दी थी और अल्पमत सरकार का नेतृत्व किया था.
वर्ष 2018 में तत्कालीन राष्ट्रपति सिरिसेना ने प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर दिया और महिंदा राजपक्षे को नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया. सिरिसेना के इस कदम से देश में संवैधानिक संकट पैदा हो गया.
हालांकि, उच्चतम न्यायालय के एक फैसले ने राष्ट्रपति सिरिसेना को विक्रमसिंघे को बहाल करने के लिए मजबूर कर दिया, जिससे राजपक्षे का संक्षिप्त शासन समाप्त हो गया.
श्रीलंका को अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद 1949 में जन्मे विक्रमसिंघे 1977 में 28 साल की उम्र में संसद के लिए चुने गए थे. वह विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) की यूथ लीग में शामिल हो गए थे.
उस समय श्रीलंका में सबसे कम उम्र के मंत्री के रूप में, उन्होंने राष्ट्रपति जयवर्धने के अधीन उप विदेश मंत्री का पद संभाला था.
अदालत ने पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे और 16 अन्य के देश छोड़ने पर लगाई रोक
इस बीच श्रीलंका की एक अदालत ने बृहस्पतिवार को पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे, उनके सांसद बेटे नमल राजपक्षे और 15 अन्य लोगों के देश छोड़ने पर रोक लगा दी.
अदालत ने यह रोक इस सप्ताह कोलंबो में सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों पर हुए हमले की चल रही जांच के मद्देनजर लगाई है.
न्यूज फर्स्ट वेबसाइट की खबर के मुताबिक, फोर्ट मजिस्ट्रेट की अदालत ने उनके विदेश जाने पर रोक, सोमवार को गोटागोगामा और माइनागोगामा प्रदर्शन स्थल पर हुए हमले की जांच के मद्देनजर लगाई है. इस हिंसा में कम से कम नौ लोगों की मौत हो गई, जबकि करीब 300 लोग घायल हो गए थे.
मजिस्ट्रेट अदालत का यह आदेश पुलिस की अपराध जांच शाखा के अनुरोध पर आया, जो बीते नौ मई को हुई हिंसा की जांच कर रही है.
अदालत ने सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजना पेरामुना (एसएलपीपी) का प्रतिनिधित्व कर रहे 13 विधायिका सदस्यों के देश छोड़ने पर रोक लगाई है, जिनमें जॉनशन फर्नांडो, पवित्रा वन्नीराचची, संजीवा इदिरिमाने, सनथ निशांत और सीबी रत्नायके शामिल हैं.
पश्चिमी प्रांत के वरिष्ठ पुलिस उप महानिरीक्षक (एसडीआईजी) देशबंधु तेन्नेकून का नाम भी इस सूची में रखा गया है और उन्हें हिंसा मामले की जांच के सिलसिले में देश में ही रहने को कहा गया है.
उल्लेखनीय है कि एक समूह पर महिंदा राजपक्षे के प्रधानमंत्री आवास और उसके नजदीक राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के सचिवालय के पास प्रदर्शन कर रहे लोगों पर क्रूर तरीके से हमला करने का आरोप है.
आरोप है कि महिंदा राजपक्षे ने अपनी राजनीतिक ताकत दिखाने के लिए जमीनी कार्यकर्ताओं को एकत्र किया, ताकि वे उन्हें प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा नहीं देने के लिए प्रदर्शन करें.
उसके बाद से सत्तारूढ़ गठबंधन से ही उन पर इस्तीफा देने और सभी दलों की अंतरिम सरकार बनाने के लिए रास्ता साफ करने का दबाव बढ़ गया.
महिंदा राजपक्षे ने कथित तौर पर अपने समर्थकों को दिए भाषण में सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों पर हमला करने के लिए उकसाया, जो गत एक सप्ताह से राजपक्षे परिवार से देश की खराब हुई अर्थव्यवस्था के मद्देनजर इस्तीफा देने की मांग कर रहे थे.
उल्लेखनीय है कि महिंदा राजपक्षे के समर्थकों द्वारा सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों पर किए गए हमले के बाद अचानक शुरू हुई हिंसा में सोमवार और मंगलवार को उग्र भीड़ ने कई सांसदों के घरों और कार्यालयों को आग के हवाले कर दिया था. इसके कुछ घंटे बाद महिंदा राजपक्षे ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और पूरे देश में कर्फ्यू लागू कर दिया गया.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)